क्यों रहती है इस मंदिर में 15 दिन तक लड़कियां बिना वस्त्र के, जानिए क्या है असल वजह

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नई दिल्ली: भारत एक विशाल देश है. जहां पर विभिन्न धर्म, भाषा और जाति के लोग रहते है. यूं तो भारत अपनी संस्कृति के लिए खूब जाना जाता है. जहां हर क्षेत्र अपनी किसी न किसी मान्यता को लेकर प्रचलित है. लेकिन आपको कुछ क्षेत्रों की ऐसी परंपरा भी देखने को मिल सकती है जिसपर लोगों को काफी आपत्ति हो. लेकिन तब भी लोग अंधविश्वास और धर्म के चलते इसका विरोध नहीं कर पाते है.आज भी हमारा समाज चाहे कितना भी विकास कर लें, लेकिन अंधविश्वास के चलते आज भी हम इन रूढीवादी परंपराओं से जुड़े हुए है.

परंपरा के नाम पर लड़कियों के साथ खिलवाड़

हम अक्सर देखा है कि अगर कोई व्यक्ति किसी मंदिर पर जाता है और वहां उसकी मनोकामना पूरी होती है तो अवश्य ही वह जाकर कुछ न कुछ भेंट भगवान को देता है. इसे गलत कहना सही नहीं है क्योंकि यह उस व्यक्ति का निजी भाव होता है. लेकिन इस आर्टिकल द्वारा अब हम आपको एक ऐसे सच से रूबरू कराएंगे जिसे पढ़कर आप भी दंग रह जाएंगे. यह अंधविश्वास की एक जीती जागती मिसाल है. हम आपको ऐसी जगह की जानकारी देंगे जहां परंपरा के नाम पर लड़कियों के साथ खिलवाड़ किया जाता है.

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तमिलनाडु का बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर

सबसे ज्यादा चौंकने वाली बात तो यह है कि यह अंधविश्वास की परंपरा भारत के विख्यात मंदिर मदुरै की है. बता दें कि यह तमिलनाडु का बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है. यह रिवाज इस मंदिर में पिछले आठ साल से चल रहा है. इस परंपरा के चलते लड़कियों को 15 दिनों तक बिना वस्त्र के रखा जाता है. इस प्रथा के अनुसार, मंदिर के पुजारी सात लड़कियों का चयन करते है. उन लड़कियों को कमर के ऊपर के सारे कपड़े उतारने होते है. इसके ऊपरी शरीर को सिर्फ फूल से ढका जाता है. इस प्रथा का हिस्सा 60 से अधिक गांवों के लोग द्वारा किया जाता है. इन में से जिस लड़की का चयन होता है उसे बहुत भाग्यशाली समझ जाता है.

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15 दिनों इन लड़कियों को मंदिर के पुजारी के साथ रहना पड़ता है

इस सबसे ज्यादा दंग करनी वाली बात तो यह हो कि इन 15 दिनों इन लड़कियों को मंदिर के पुजारी के साथ रहना पड़ता है. पहले इस परंपरा में छह साल तक की लड़कियों को शामिल किया जाता था, लेकिन बाद में पुजारियों ने इसकी सीमा बढ़कर 10 से 16 साल कर दी है.   लेकिन राहत की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर प्रशासन को यह कहते हुएफटकार लगाई है कि यह परंपरा बच्चियों को अंधविश्वास की ओर ले जा रही है.