घटना का सिर्फ वीडियो ना बनाएं बल्कि मदद का हाथ भी बढ़ाएं

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घटना का सिर्फ वीडियो ना बनाएं बल्कि मदद का हाथ भी बढ़ाएं

घटना का सिर्फ वीडियो ना बनाएं बल्कि मदद का हाथ भी बढ़ाएं

नई दिल्लीः वीडियो को जमाना है और वायरल होने के लिए तो लोग किसी भी तरह की विडियो पोस्ट कर रहे हैं। यहां तक कि दुर्घटना और अपराध की विडियोज़ और फोटोज भी क्लिक किए जाते हैं और बढ़िया से कैप्शन के साथ उन्हें अपलोड किया जाता है। यहां तक तो ठीक है क्योंकि इससे सूचना मिलती है। मगर समस्या यह है कि अपराध को देखने वाले लोग बस विडियो बनाकर आगे निकल जाते हैं कि इसे सोशल मीडिया पर अपलोड करेंगे। वह ना तो पीड़ित की ओर मदद का हाथ बढ़ाते हैं और ना ही इसकी सूचना पुलिस को देते हैं। पिछले दिनों जब दिल्ली की सड़क पर एक लड़की को जबर्दस्ती कैब में डाला जा रहा था, तब भी लोग वीडियो बना रहे थे। इससे पहले होली के दिन गुरुग्राम में जब कुछ लोग कार सवार युवकों की पिटाई कर रहे थे, तब भी लोग विडियो बना रहे थे। मार्च के शुरू में जहांगीरपुरी में झगड़े का एक विडियो वायरल हुआ। ये तो वह मामले हैं जो वायरल हुए और फिर पुलिस ने कार्रवाई की। ऐसे ना जाने कितने विडियो बनते होंगे मगर वायरल नहीं होते होंगे। सिर्फ विडियो बनाने और पुलिस में शिकायत ना करने के पीछे लोगों का तर्क होता है कि वह पुलिस और कोर्ट के चक्कर में नहीं फंसना चाहते।

‘इमोशनली सुन्न हो गए हैं लोग’

आखिर क्या वजह है कि लोग किसी अपराध, छेड़खानी वगैरह की संवेदनहीन होकर विडियो बनाते हैं और अपना कर्तव्य भूलकर पुलिस को रिपोर्ट तक नहीं करते। यहां तक कि दुर्घटना की स्थिति में वह घायल को अस्पताल तक नहीं पहुंचाते बल्कि बस विडियो बनाते हैं। जबकि बातचीत में सभी कहते हैं कि हमें मदद करनी चाहिए। इस बारे में सीनियर सायकायट्रिस्ट विपुल रस्तोगी कहते हैं, ‘ऐसे लोग जिम्मेदारियों से पीछे हटते हैं। उन्हें लगता है कि अगर आप शिकायत करेंगे तो आपसे पूछताछ होगी, आपका टाइम खराब होगा। तो जिम्मेदारी से लोग पीछे हट रहे हैं। यह सोचने वाली बात है कि आप सड़क पर खड़े होकर किसी की परेशानी का विडियो बना लेते हो लेकिन उसकी शिकायत नहीं करते। और थोड़ा सा लाइमलाइट में आने की चाहत भी इसकी वजह है। यह लोगों के लिए थ्रिल का माध्यम हो गया है। वह मोमेंट की संवेदनशीलता और गंभीरता को नहीं समझते हैं। कह सकते हैं कि लोग इमोशनली शून्य हो गए हैं कि उन्हें दिख तो रहा है लेकिन फर्क नहीं पड़ रहा है। वह स्थिति के इमोशंस से अलग हो जाते हैं। फिर अभी समाज ऐसा भी हो गया है कि किसी की परेशानी में मज़ा और अवसर ढूंढते हैं।’

‘पुलिस नहीं लगवाती चक्कर’

पुलिस नहीं लगवाती चक्कर

दिल्ली पुलिस का कहना है कि लोगों में यह गलत धारणा है कि पुलिस शिकायत करने वालों को परेशान करती है, जबकि पुलिस इस धारणा के विपरीत शिकायत करने वालों के साथ सहयोग करती है। दिल्ली पुलिस में आउटर डिस्ट्रिक्ट के डीसीपी हरेंद्र कुमार सिंह कहते हैं, ‘अगर कोई पुलिस में किसी घटना-दुर्घटना की शिकायत करता है तो उसे पुलिस स्टेशन के चक्कर हरगिज नहीं लगवाए जाते हैं। मान लीजिए कि अगर किसी ने फोन करके एक लाइन में बता दिया कि किसी ने किसी को छेड़ दिया है, तो अगर हमें कुछ और सूचना चाहिए होती है घटना की, तो हम उनसे फोन करके पूछ लेते हैं। अगर घटना के बारे में विस्तार से बात करनी हो तो हमारा जो इनवेस्टिंगेटिंग ऑफिसर है, वह शिकायतकर्ता के घर या जहां भी उन्हें सुविधाजनक है, वहां जाता है। मसलन अगर किसी ने मंगोलपुरी की सड़क पर हो रही अपराध की शिकायत की है और एक घंटे बाद वह कालकाजी है, तो हम उसे वापस मंगोलपुरी नहीं बुलाते बल्कि हम उनके पास जाते हैं। अब हालिया घटना को ही लीजिए, तो हमने उन्हें पुलिस स्टेशन के चक्कर नहीं कटवाए बल्कि फोन पर ही पूछ लिया कि वह किस तरफ गए थे। तो हम फोन करके सूचना ले लेते हैं। यह गलत धारणा है कि किसी घटना की शिकायत करने पर थाने या कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ेंगे। दिल्ली पुलिस हमेशा लोगों का सहयोग करती है और उम्मीद करती है कि लोग आगे आकर ऐसे मामलों की रिपोर्ट करें। हां अगर कोई चाहता है और लिखित में देता है तो उसकी पहचान नहीं उजागर की जाती है।’

शिकायतकर्ता और गवाह के पास हैं अधिकार

शिकायतकर्ता और गवाह के पास हैं अधिकार

यदि कोई व्यक्ति किसी मामले में शिकायत करता है या गवाह बनता है तो उसके पास क्या अधिकार हैं कि उन्हें पुलिस, कोर्ट या आरोपी पक्ष परेशान नहीं करेगा? इस सवाल के जवाब में सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट राजेश शर्मा बताते हैं, ‘कानून में शिकायतकर्ता, आरोपी और गवाह के अधिकार साफ-साफ बताए गए हैं। यदि कोई व्यक्ति शिकायत करता है और पुलिस उसे बुलाना चाहती है तो वह उस व्यक्ति के कम्फर्ट जोन के अनुसार ही बुलाएगी, ऐसा नहीं है कि वह आधी रात को बुला ले। यहां तक कि अगर वह महिला है तो उसे थाने में बुलाया ही नहीं जाएगा बल्कि उसके ऑफिस या घर जाकर उसका बयान रिकॉर्ड किया जाएगा। इसी तरह यदि महिला गवाह भी है तो भी पुलिस उसे थाने में नहीं बुलाएगी। हां अगर जघन्य अपराध है तो सिर्फ यह नहीं कहा जा सकता कि कोर्ट में नहीं आऊंगा। लेकिन उसमें भी कोर्ट का निर्देश है कि गवाह का बयान और क्रॉस एग्जामिनेशन एक ही दिन में कर लिया जाए ताकि वह शोषण जैसा ना फील करे। शिकायतकर्ता और गवाह को अगर यह लगता है कि आरोपी पक्ष उसे परेशान कर रहा है या उसके खतरा है, तो यह भी अधिकार हैं कि वह अपने और परिवार की सुरक्षा के लिए पुलिस में डीसीपी या कमिश्नर को आवेदन दे सकता है। पुलिस उनके और उनके परिवार की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी। अगर वहां सुनवाई नहीं होती है तो वह कोर्ट को कह सकता है कि उसे और उसके परिवार को सुरक्षा मुहैया करवाई जाए। इस तरह शिकायतकर्ता और गवाह के पास पर्याप्त अधिकार हैं कि उन्हें केस की वजह से परेशान नहीं किया जाएगा।’

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