जैन धर्म में शिव पूजा का क्या महत्व बताया गया है ?

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जैन धर्म में शिव पूजा का क्या महत्व बताया गया है ?
जैन धर्म में शिव पूजा का क्या महत्व बताया गया है ?

जैन धर्म में शिव पूजा का क्या महत्व बताया गया है ? ( What is the importance of Shiva worship in Jainism? )

हमारे देश में विभिन्न धर्म व समुदाय को मानने वाले लोग रहते हैं. हमारे देश के इतिहास में जाकर अगर इन धर्मों के बारे में गहराई से जानने की कोशिश करते हैं, तो कड़ी से कड़ी मिली हुई दिखाई देती हैं. जो लोग धर्म के बारे में गहराई से जानना चाहते हैं या फिर इतिहास में रूचि रखते हैं. उनके मन में इस तरह के सवाल होते हैं. इस तरह का एक सवाल जो आमतौर पर पूछा जाता है कि जैन धर्म में शिव पूजा का क्या महत्व बताया गया है ? अगर आपके मन में भी ऐसा ही सवाल है, तो इस पोस्ट में इसी सवाल का जवाब जानते हैं.

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जैन धर्म में शिव पूजा का क्या महत्व-

जैन धर्म में वैसे तो शिव की पूजा नहीं की जाती है. लेकिन फिर भी कुछ लोग जो जैन धर्म को मानते हैं, वो शिव की पूजा भी करते हैं. जैन धर्म और शिव के बीच में कुछ कड़ियां जुड़ी हुई हैं. अगर इतिहास की दृष्टि से बात करें, तो शिव को रूद्र के नाम से भी जाना जाता है. इसके साथ ही जैन धर्म में प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव अथवा वृषभ नाथ या आदिनाथ थे. डॉ. हीरालाल जैन ने शिव-रुद्र एवं जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव अथवा वृषभनाथ अथवा आदिनाथ की समानता के अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए हैं। ( देखें – रचना और पुनर्रचना, पृष्ठ 172 – 175, डॉ. भीमराव अम्बेदकर विश्वविद्यालय, आगरा, (नवम्बर, 2000).

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अगर जैन धर्म के शैव धर्म से कनेक्शन की बात करें, तो ऐसा भी माना जाता है कि जैन धर्म दो शाखाओं में विभाजित हो गया. श्वेतांबर और दिगम्बर. निर्ग्रन्थिवाद अर्थात् पहने जाने वाले कपड़ों में गांठ न बांधना, प्रचारित किया गया जो गृही लोगों ने स्वीकार नहीं किया. बाद में यह निर्ग्रन्थिवादी जैन धर्म, शैव धर्म से जोड़ दिया गया। लोग ऊपर से जैन धर्मानुयायी थे पर भीतर ही भीतर वे शैव थे.दरअसल, इतिहास की दृष्टि से देखें तो लिंग पूजा प्राचीन काल से ही भारत में रही है. जैन धर्म के प्रचार प्रसार से पहले से ही लिंग की प्राति हुई है. इसी कारण जैन धर्म को मानने वाले कुछ लोग भी लिंग की पूजा करते थे. हालांकि पूजा उन्होंने अलग अलग नाम से की . उदाहरण के लिए आदिलिंग , ज्योतिलिंग , अनादि लिंग इत्यादी.

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जैन धर्म की बात करें, तो यह हमारे देश ने निकला हुआ धर्म है. जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर आदिनाथ थे. जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत की बात करें, तो इनका मुख्य सिद्धांत अहिंसा था. हालांकि कुछ लोग इस सिद्दांत को जैन धर्म के कम प्रचार का कारण भी मानते हैं. जैन धर्म पूरी तरह से अहिंसा के सिद्धांत का पालन करता है. खेती करने के व्यवसाय को जैन धर्म में अच्छा नहीं माना जाता है. इसके पीछे का कारण भी अहिंसा का सिद्धांत ही है. ऐसा माना जाता है कि खेती के दौरान काफी जीवों की मौत होती है.

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं. News4social इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें।

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