जब ब्रह्मा पर क्रोधित हुए थे तब शिव ने लिया था काल भैरव का जन्म

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भगवान शिव का अवतार काल भैरव किसी रहस्य से कम नहीं है. भैरव सबसे बड़े लोक देवत माने जाते है. देश में पुराने समय के हर नगर और गांव में एक स्थानीय भैरव देवता का एक स्थान जरूर मिलेगा. ऐसा कहा जाता है कि यह भैरव उन नगरों या गांवों की मुसीबतों से रक्षा करते है. अब सवाल आता है कि काल भैरव आखिर कौन हैं? तो आईए आपको बताते है कि काल भैरव के रहस्य के बारें में.


शास्त्रों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि काल भैरव भगवान शिव का ही साहसिक और युवा रूप हैं. जिसे रुद्रावतार भी कहा जाता है. जो शत्रुओ और संकट से मुक्ति दिलाते है. इनकी कृपा होती है, तो बड़े से बड़े काम का हल हो जाता है. वहीं धर्मग्रंथों के अनुसार ऐसा कहा गया है कि शिव के रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई थी. भैरव दो प्रकार के होते हैं- काल भैरव और बटुक भैरव. देश में काल भैरव के सबसे जागृत मंदिर उज्जैन और काशी में हैं. जबकि बटुक भैरव का मंदिर लखनऊ में है. सभी शक्तिपीठों के पास भैरव के जागृत मंदिर जरूर होते हैं. इनकी उपासना के बिना मां दुर्गा के स्वरूपों का पूजन अधूरा माना जाता है. हिन्दू और जैन दोनों भैरव की पूजा करते हैं. जिनकी कुल गिनती 64 है.

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ऐसी कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ था. जिसे सुलझाने के लिए तीनों लोकों को देव ऋषि मुनि के पास पहुंचे. ऋषि मुनि ने विचार-विमर्श कर बताया कि भगवान शिव ही सबसे श्रेष्ठ हैं. ये बात सुनकर ब्रह्मा नाराज हो गए और उन्होंने भगवान शिव के सम्मान को ठेस पहुंचाना शुरू कर दिया. ये देखकर भगवान शिव को क्रोध में आ गया. भोलेनाथ का ऐसा स्वरूप देखकर समस्त देवी-देव घबरा गए. कहा जाता है कि शिव के इसी क्रोध से कालभैरव का जन्म हुआ था.

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दार्शनिक रूप से काल भैरव ऐसे देवता हैं जो काल यानी समय से परे हैं. समय की गति के कारण ही किसी भी व्यक्ति की मौत आती है, लेकिन जब कोई व्यक्ति अपनी योग शक्ति से समय से परे चला जाता है तो वो काल भैरव हो जाता है. भैरव का स्वरूप भयानक जरूर है, लेकिन सच्चे मन से जो भी इनकी उपासना करता है उसकी सुरक्षा का भार वह स्वयं उठाते हैं. वह अपने भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं और अगर भैरव नाराज हो जाएं तो अनिष्ट भी हो सकता है.