क्या बिहार में कांग्रेस को टूटने से बचा पाएंगी सोनिया गांधी?

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बिहार में भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर महागठबंधन का सत्यानाश हो गया। इसके पीछे कई कारण रहे, जहां एक तरफ लालू अड़ गए तो नीतीश को भी बहाना मिल गया। वहीं कांग्रेस आलाकमान इन आरोपों पर असमंजस की स्थिती में रहा, वो तेजस्वी पर कोई स्पष्ट निर्णय नहीं ले पाए। लिहाजा नीतीश कुमार ने निर्णय ले लिया। 20 साल बाद मुश्किल से कांग्रेसी नेताओं ने सत्ता का स्वाद चखा था, पर अचानक वो स्वाद कडवा हो गया। राजद और जदयू की लड़ाई में कांग्रेसी कोई भूमिका अदा नहीं कर पाए। परिणाम ये रहा कि बिहार के 27 कांग्रेसी विधायक अपने आप को नेतृत्व विहीन समझ रहे हैं, क्योंकि उनके शीर्ष नेता प्रदेश की राजनीति को लेकर उदासीन हैं। वो किसी के साथ मजबूती से खड़े नहीं हैं। हालांकि राजद और कांग्रेस की यारी सीताराम केसरी 1997, के जमाने से है, पर यही तो विडंबना है कि कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व जिसके साथ है, उनसे कांग्रेस के ज्यादातर सवर्ण विधायक वैचारिक रूप से भिन्न मत रखते हैं और यही उनके स्थानीय राजनीतिक हित में भी है। लिहाजा वो भाजपा के अंदर अपना भविष्य देख रहे हैं। जहां विचारधाराओं का भी टकराव नहीं होगा और सत्ता की सौंधी-सौंधी खुशबू भी आती रहेगी। वहीं पिछड़ी जाति के विधायक अपना भविष्य जदयू में देख रहे हैं, जहां बिहार के मुख्यमंत्री का हाथ सीधा उनके सर पर होगा।

टूट की कोशिश तो सफल भी हो जाती लेकिन कांग्रेसी विधायकों की दिक्कत ये है कि उन्हें दल-बदल कानून को देखते हुए कम-से-कम 18 विधायकों के समर्थन की जरूरत पड़ेगी। इसलिए इस महान कार्य में थोड़ा समय लग रहा है। वहीं दिल्ली कांग्रेस हाईकमान ने बिहार के कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी और बिहार विधायक दल के नेता सदानंद सिंह को दिल्ली तलब किया है। इससे पहले भी हाई कमान ने जेपी अग्रवाल और ज्योतिरादित्य सिंधिया को इस बावत संज्ञान लेने के लिए भेजा था।

खबर है कि सदानंद सिंह ही हैं जो पार्टी विरोधी गतिविधियों को हवा दे रहे हैं। वहीं पार्टी अध्यक्ष अशोक चौधरी नीतीश कुमार के करीबी बताए जाते हैं। अब व्यक्तियों के करीब या दूर होना मायने नहीं रखता पर जब कोई सत्ता के करीब हो ते उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। आगे ये देखना होगा कि बिहार के शीर्ष नेताओं को दिल्ली दलब करने के बाद कांग्रेस टूट से बच पाती है या फिर तोड़ने वाले 18 विधायकों को तोड़ ले जाते हैं। लेकिन अगर बिहार कांग्रस को नुकसान होता है तो इसका असर राजद पर भी पड़ना तय है, तो हो ना हो लालू कांग्रेस को बचाने में कोई भूमिका अदा कर पाएं, जैसे उन्होंने विपक्ष को एक करना का असफल कोशिश किया अपनी रैली में।