OBC आरक्षण की पूरी कहानी, फिर गरमा गया है मुद्दा, बढ़ा दी गई है क्रीमी लेयर की सीमा

628

केंद्रीय कैबिनेट ने आज एक बड़ा फैसला लेते हुए ओबीसी आरक्षण में क्रीमी लेयर की सीमा 6 लाख सालाना बढ़ाकर 8 लाख कर दी है। मंत्रिमंडल की बैठक के बाद इस बात की जानकारी वित्त मंत्री अरूण जेटली ने दी प्रेस कांन्फ्रेस में दी है। इससे अब ओबोसी कोटे के तहत कई और लोगों को लाभ मिल पाएगा। केन्द्र सरकार ने निश्चित रूप से OBC के तहत आने वाले उन लोगों को टारगेट किया है जो अब कहीं ना कहीं सम्पन्न हैं। लेकिन डर इस बात का है कि कहीं इसके कारण गरीब लोगों को नुकसान ना हो जाए।

 

20 दिसंबर 1978

सामाजिक शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति की समीक्षा के लिए मोरारजी देसाई सरकार ने बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में छह सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन की घोषणा की। यह मंडल आयोग के नाम से चर्चित हुआ।

1 जनवरी 1978
आयोग के गठन की अधिसूचना जारी।

दिसंबर 1980
मंडल आयोग ने गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को रिपोर्ट सौंपी। इसमें अन्य पिछड़े वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की गई थी।

1982

रिपोर्ट संसद में पेश हुआ।

1989
लोकसभा चुनाव में जनता दल ने आयोग की सिफारिशों को चुनाव घोषणापत्र में शामिल किया।

7 अगस्त 1990
विश्वनाथ प्रताप सिंह ने रिपोर्ट लागू करने की घोषणा की।

9 अगस्त 1990
विश्वनाथ प्रताप सिंह से मतभेद के बाद उपप्रधानमंत्री देवीलाल ने इस्तीफ़ा दिया।

10 अगस्त 1990
आयोग की सिफारिशों के तहत सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था करने के ख़िलाफ़ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू।

13 अगस्त 1990
मंडल आयोग की सिफारिश लागू करने की अधिसूचना जारी।

14 अगस्त 1990
अखिल भारतीय आरक्षण विरोधी मोर्चे के अध्यक्ष उज्जवल सिंह ने आरक्षण प्रणाली के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।

19 सितंबर 1990
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र एसएस चौहान ने आरक्षण के विरोध में आत्मदाह किया। एक अन्य छात्र राजीव गोस्वामी बुरी तरह झुलस गए।

17 जनवरी 1991
केंद्र सरकार ने पिछड़े वर्गों की सूची तैयार की।

8 अगस्त 1991
रामविलास पासवान ने केंद्र सरकार पर आयोग की सिफ़ारिशों को पूर्ण रूप से लागू करने में विफलता का आरोप लगाते हुए जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया। पासवान को गिरफ़्तार कर लिया गया।

25 सितंबर 1991
नरसिंह राव सरकार ने सामाजिक शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान की। आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 59.5 प्रतिशत करने का फ़ैसला। इसमें ऊँची जातियों के अति पिछड़ों को भी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया।

25 सितंबर 1991
दक्षिण दिल्ली में आरक्षण का विरोध कर रहे छात्रों पर पुलिस फायरिंग में दो की मौत।

1 अक्टूबर 1991
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से आरक्षण के आर्थिक आधार का ब्यौरा माँगा।

2 अक्टूबर 1991
आरक्षण विरोधियों और समर्थकों के बीच कई राज्यों में झड़प। गुजरात में शैक्षणिक संस्थान बंद किए गए।

10 अक्टूबर 1991
इंदौर के राजवाड़ा चौक पर स्थानीय छात्र शिवलाल यादव ने आत्मदाह की कोशिश की।

30 अक्टूबर 1991
मंडल आयोग की सिफारिशों के ख़िलाफ़ दायर याचिका की सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह मामला नौ न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दिया।

17 नवंबर 1991
राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और उड़ीसा में एक बार फिर उग्र विरोध प्रदर्शन। उत्तर प्रदेश में एक सौ गिरफ़्तार. प्रदर्शनकारियों ने गोरखपुर में 16 बसों में आग लगाई।

19 नवंबर 1991
दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में पुलिस और छात्रों के बीच झड़प। लगभग 50 लाख घायल। मुरादाबाद में दो छात्रों ने आत्मदाह का प्रयास किया।

16 नवंबर 1992
सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फ़ैसले में मंडल आयोग की सिफ़ारिशें लागू करने के फ़ैसले को वैध ठहराया। साथ ही आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत रखने और पिछड़ी जातियों के उच्च तबके को इस सुविधा से अलग रखने का निर्देश दिया।

8 सितंबर 1993
केंद्र सरकार ने नौकरियों में पिछड़े वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण देने की अधिसूचना जारी की।

20 सितंबर 1993
दिल्ली के क्रांति चौक पर राजीव गोस्वामी ने इसके ख़िलाफ़ एक बार फिर आत्मदाह का प्रयास किया।

23 सितंबर 1993
इलाहाबाद की इंजीनियरिंग की छात्रा मीनाक्षी ने आरक्षण व्यवस्था के विरोध में आत्महत्या की।

20 फरवरी 1994
मंडल आयोग की रिफारिशों के तहत वी राजशेखर आरक्षण के जरिए नौकरी पाने वाले पहले अभ्यार्थी बने। समाज कल्याण मंत्री सीताराम केसरी ने उन्हें नियुक्ति पत्र सौंपा।

1 मई 1994
गुजरात में राज्य सरकार की नौकरियों में मंडल आयोग की सिरफारिशों के तहत आरक्षण व्यवस्था लागू करने का फ़ैसला।

2 सितंबर 1994
मसूरी के झुलागढ़ इलाके में आरक्षण विरोधी। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच संघर्ष में दो महिलाओं समेत 6 की मौत, 50 घायल।

13 सितंबर 1994
उत्तरप्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी द्वारा घोषित राज्यव्यापी बंद के दौरान भड़की हिंसा में पाँच मरे।

15 सितंबर 1994
बरेली कॉलेज के छात्र उदित प्रताप सिंह ने आत्महत्या का प्रयास किया।

11 नवंबर 1994
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की नौकरियों में 73 फीसदी आरक्षण के कर्नाटक सरकार के फ़ैसले पर रोक लगाई।