Women’s day Special: मुझे कैब चलाता देख लोग खुश होते हैं, महिलाएं सुरक्षित महसूस करती हैं… मिलिए दहलीज लांघ मिसान बनी कैब ड्राइवर शिवानी से
नई दिल्ली: ‘बुकिंग मिलने के बाद मैं जब भी सवारी को पिक करने पहुंचती हूं, तो ज्यादातर लोग पहले हैरान होते हैं। मगर जब मैं उन्हें बताती हूं कि मैं ही कैब ड्राइवर हूं, तो वे काफी खुश होते हैं और तारीफ भी करते हैं। दिन में दो-चार सवारियां ऐसी मिल ही जाती हैं, जिन्हें मुझे बताना पड़ता है कि मैं कैब क्यों चलाती हूं। कई बार बुकिंग कन्फर्म होने के बाद जब लोग देखते हैं कि किसी महिला का नाम और नंबर आया है, तो लोग फोन करके पहले कन्फर्म करते हैं कि मैं ड्राइवर ही हूं या कहीं उनके पास कोई गलत मेसेज तो नहीं आ गया। हालांकि, आज तक किसी ने मेरे साथ जाने से मना नहीं किया। उल्टे लोग बहुत खुश होते हैं कि मैं ड्राइव कर रही हूं। खासकर महिलाएं और लड़कियां मेरे साथ जाते वक्त ज्यादा सुरक्षित महसूस करती हैं।’
यह कहना है शिवानी का। शिवानी पिछले तीन साल से उबर के साथ जुड़कर दिल्ली में कैब चला रहीं हैं। मूलरूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली शिवानी (35) की कहानी महिलाओं के जज्बे की मिसाल है। वह बताती हैं कि महज 10 साल की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया। जिसके बाद उनकी मां उन्हें और उनकी छोटी बहन को लेकर काम की तलाश में दिल्ली आ गईं। घर में कोई कमाने वाला नहीं था। ऐसे में वह अपनी मां साथ मिलकर घरों में मेड का काम करने लगीं। बाद में उन्होंने एक एक्सपोर्ट कंपनी में भी काम किया, लेकिन पैसों की तंगी हमेशा बनी रही। शादी के बाद भी शिवानी की मुश्किलें कम नहीं हुईं। दो बच्चे हो गए, लेकिन पति की काम करने में कभी ज्यादा दिलचस्पी नहीं रही। ऐसे में घर की जिम्मेदारी उन्हें ही निभानी पड़ी। परिवारिक झगड़ों से तंग आकर 2009 में उन्होंने तलाक ले लिया। अब वह सिंगल मदर हैं और अपनी मां और दो बच्चों के साथ-साथ अपनी विधवा बहन और उसके बच्चों का भी पालन पोषण अकेले अपने दम पर कर रही हैं।
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लाजपत नगर के नेहरू नगर की झुग्गियों में रहने वाली शिवानी ने बताया कि कुछ साल पहले एक सहेली ने उन्हें दूसरों के लिए काम करने के बजाय कैब चलाने के लिए प्रेरित किया। सहेली की मदद से शिवानी ने पहले आजाद फाउंडडेशन में 6 महीने तक ड्राइविंग सीखी, जिसके बाद उन्हें ड्राइविंग लाइसेंस मिल गया। फिर उन्होंने सखा फाउंडेशन में तीन महीने तक ड्राइवर की जॉब की। शिवानी ने बताया कि ट्रेनिंग के दौरान उन्हें टायर बदलने और गाड़ी ठीक करने के अलावा सेल्फ डिफेंस और फर्स्ट ऐड की ट्रेनिंग भी मिली। साथ ही उन्हें यह भी सीखने को मिला कि एक महिला ड्राइवर को लोगों से कैसा बर्ताव करने और कितना सतर्क रहने की जरूरत है। कुछ समय बाद एक सहेली की मदद से वह उबर के दफ्तर तक पहुंचीं, जहां उन्हें ड्राइवर का काम करने का मौका मिला और उनकी अच्छी इनकम होने लगी।
शिवानी की तीन साल की कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि पहले जहां वह किसी और की टैक्सी किराए पर लेकर चलाती थी। वहीं, आज उन्होंने अपनी खुद की एक सेकंडहैंड कार खरीद ली है, जिसकी लोन की किश्तें भरने और घर के अन्य खर्चे निकालने के बाद भी वह हर महीने 5-7 हजार रुपए की बचत कर लेती हैं। शिवानी के मुताबिक, ‘महिलाओं को यह नहीं सोचना चाहिए कि हम इस तरह काम काम कर पाएंगी कि नहीं। कोई काम छोटा नहीं होता है। बस, उसे करने का जज्बा होना चाहिए। ऐसा कोई काम नहीं, जिसे महिलाएं नहीं कर सकती हैं।’
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यह कहना है शिवानी का। शिवानी पिछले तीन साल से उबर के साथ जुड़कर दिल्ली में कैब चला रहीं हैं। मूलरूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली शिवानी (35) की कहानी महिलाओं के जज्बे की मिसाल है। वह बताती हैं कि महज 10 साल की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया। जिसके बाद उनकी मां उन्हें और उनकी छोटी बहन को लेकर काम की तलाश में दिल्ली आ गईं। घर में कोई कमाने वाला नहीं था। ऐसे में वह अपनी मां साथ मिलकर घरों में मेड का काम करने लगीं। बाद में उन्होंने एक एक्सपोर्ट कंपनी में भी काम किया, लेकिन पैसों की तंगी हमेशा बनी रही। शादी के बाद भी शिवानी की मुश्किलें कम नहीं हुईं। दो बच्चे हो गए, लेकिन पति की काम करने में कभी ज्यादा दिलचस्पी नहीं रही। ऐसे में घर की जिम्मेदारी उन्हें ही निभानी पड़ी। परिवारिक झगड़ों से तंग आकर 2009 में उन्होंने तलाक ले लिया। अब वह सिंगल मदर हैं और अपनी मां और दो बच्चों के साथ-साथ अपनी विधवा बहन और उसके बच्चों का भी पालन पोषण अकेले अपने दम पर कर रही हैं।
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शिवानी की तीन साल की कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि पहले जहां वह किसी और की टैक्सी किराए पर लेकर चलाती थी। वहीं, आज उन्होंने अपनी खुद की एक सेकंडहैंड कार खरीद ली है, जिसकी लोन की किश्तें भरने और घर के अन्य खर्चे निकालने के बाद भी वह हर महीने 5-7 हजार रुपए की बचत कर लेती हैं। शिवानी के मुताबिक, ‘महिलाओं को यह नहीं सोचना चाहिए कि हम इस तरह काम काम कर पाएंगी कि नहीं। कोई काम छोटा नहीं होता है। बस, उसे करने का जज्बा होना चाहिए। ऐसा कोई काम नहीं, जिसे महिलाएं नहीं कर सकती हैं।’