कोर्ट में कौन कौन सा पद होता है ?

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कोर्ट में कौन कौन सा पद होता है ?
कोर्ट में कौन कौन सा पद होता है ?

कोर्ट में कौन कौन सा पद होता है ? ( What is the post in the court? )

हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है. जहां पर सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है. चुनी हुई सरकार भी लोगों के साथ गलत ना कर सके या फिर किसी भी तरह से लोगों के संविधान द्वारा दिए गए अधिकार सुरक्षित रहें. इसके लिए न्यायपालिका एक महत्वपूर्ण स्तंभ है. इसका मुख्य कार्य लोगों का शोषण होने से बचाना तथा उनके अधिकारों की रक्षा करना है.

न्यायपालिका के इतने महत्वपूर्ण होने के कारण लोगों के मन में इससे संबंधित जिज्ञासा रहती है. इसी कारण लोगों के मन में कोर्ट से संबंधित कई तरह के सवाल आते हैं. इसी तरह का एक सवाल जो आमतौर पर लोगों के मन में होता है कि कोर्ट में कौन कौन सा पद होता है ? अगर आपके मन में भी ऐसा ही सवाल है, तो इस पोस्ट में इसी सवाल का जवाब जानते हैं.

कोर्ट में
कोर्ट

भारत में कितने प्रकार के कोर्ट हैं-

कोर्ट में मौजूद पदों के बारे में जानने से पहले हमारे लिए कोर्ट के बारे में और भी जानकारी हासिल करना जरूरी हो जाता है. कोर्ट भी कई प्रकार के होते हैं. अगर भारत में कोर्ट की बात करे, तो ये 6 प्रकार के होते हैं.

  1. सर्वोच्च न्यायालय
  2. उच्च न्यायालय
  3. जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय
  4. ट्रिब्यूनल न्यायालय
  5. फास्ट ट्रैक न्यायालय
  6. लोक अदालत
961838 court room -
कोर्ट

कोर्ट में कौन कौन सा पद –

आमतौर पर लोगों का मानना होता है कि कोर्ट में एक फैसला सुनाने वाला जज होता है तथा दोनों पक्षों की तरफ से बात रखने वाले 2 वकील होते हैं. लेकिन ऐसा नहीं होता है. कोर्ट की व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए उसमें विभिन्न कर्मचारियों का योगदान होता है. जिस तरह से एक एक ईट से मकान बनता है. ठीक उसी तरह से एक एक कर्मचारी के योगदान से न्यायालय सुचारू रूप से अपना कार्य कर पाते हैं.

अगर कोर्ट में पदों की बात करें, तो इसमें Civil Judge, Typist, Copyist, Assistant & Examiner, Law Clerk , Junior Judicial Assistant, वकील , स्टेनोग्राफर इत्यादी के पद होते हैं. इसके अलावा टाईपिस्ट भी हिंदी और अंग्रेजी भाषा के अलग अलग होते हैं. अगर आप कोर्ट में नौकरी करना चाहते हैं, तो इसमें अनेंक पद होते हैं. आप अपनी योग्यता के हिसाब से इसमें काम कर सकते हैं.

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काफी लोगों के मन में लोक अदालतों को लेकर सवाल होता है कि ये क्या होती हैं. दरअसल, ये नियमित कोर्ट से थोड़ी अलग होती हैं. इसमें पदेन या सेवानिवृत जज , एक वकील तथा 1 या 2 सामाजिक कार्यकर्ता शामिल होते हैं. इसकी सबसे अहम बात यह है कि इसमें सुनवाई तभी होती है. जब इसके लिए दोनों पक्षों में सहमती होती है.

वैसे इन अदालतों को वैधानिक दर्जा है. लेकिन इनमें एक – दूसरे पक्ष को रखने के लिए वकीलों की आवश्यकता नहीं होती है. इसकी अहम बाते ये भी हैं कि इनके फैसले के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती है. इसमें न्यायालय का शुल्क भी नहीं लगता है. लेकिन इनकी सबसे बड़ी आलोचना यह होती है कि ये नियमित नहीं होती हैं.

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