भारत के चौबे गोत्र का इतिहास क्या है?

12373
गोत्र
गोत्र

भारत के प्राचीन इतिहास और वर्तमान की बात करें, तो भारत में गोत्र व्यवस्था का विशेष स्थान रहा है. भारत में अनेंक गोत्र पाए जाते हैं. ऐसे ही चौबे गोत्र भी भारत में पाया जाता है. अगर आप भी चौबे गोत्र से संबंध रखते हैं या फिर इसके बारे में जानने के इच्छुक हैं, तो आपको इसके विषय में जानते हैं.

download 4 -
ब्राह्मण

ऐसा माना जाता है कि  ईसा पूर्व अयोध्या साम्राज्य के गुरुकुल आश्रमों से कई विद्यार्थियों को ब्राह्मण वृत्ति के लिए मथुरा सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों में भेजा गया. इन विद्यार्थियों में चौबे और चतुर्वेदी भी थे. पांच शताब्दी पूर्व मथुरा के चौबेपाड़ा गांव से कुछ चौबे इस सुदूरवर्ती पर्वतीय क्षेत्र में आए. अल्मोड़ा के देघाट क्षेत्र में इन्हें चतुर्वेदी तथा लोहाघाट के सुई, बागेश्वर के मंडलसेरा, मनकोट, छाती आदि गांवों में चौबे कहा जाता है.

pandit 55fdf5c67b501 -
ब्राह्मण

साढ़े चार दशकों तक चौबे लोगों के जरिए कुमाऊं और मथुरा के बीच गहरे संबंध रहे. 1955 में संबंधों की यह कड़ी टूट गई. देघाट के कोटस्यारी निवासी गिरीश चतुर्वेदी और कविदत्त चतुर्वेदी के अनुसार कोटस्यारी गांव में चतुर्वेदियों के सात और पिपौड़ा गांव में 22 परिवार रहते हैं. यहां 1873 के कई दस्तावेज हैं. जिनमें कहीं चतुर्वेदी तो कहीं चौबे जाति अंकित है.

यह भी पढ़ें: क्या अंग्रेजों ने भारत को बस 99 साल के लिए आजाद किया था?

मंडलसेरा निवासी भुवन चौबे का कहना है कि उनके पूर्वज स्वयं को भगवान राम द्वारा ब्राह्मण वृत्ति के लिए स्थापित किए गए लोगों के वंशज मानते हैं. जो मथुरा में रहते थे. पांच सौ साल पहले वे कैलाश मानसरोवर यात्रा पर आए और यहीं बस गए. सुईं लोहाघाट निवासी प्रेम चौबे के अनुसार सुई में 30 चौबे परिवार हैं. पिथौरागढ़ महाविद्यालय में अवकाश प्राप्त हिंदी विभागाध्यक्ष सुई निवासी डा. परमानंद चौबे ने बताया कि मथुरा में चौबे लोगों का चौबेपाड़ा गांव है. राजाओं के आमंत्रण पर पुरोहित के कार्यों लिए वहीं से चौबे लोग कुमाऊं में आए थे.