क्या बम्बई शहर को दहेज में दिया गया था?

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क्या बम्बई शहर को दहेज में दिया गया था?

मुंबई को हिन्दुस्तान के आर्थिक केंद्र के रूप में जाना जाता है, आज से ठीक 350 साल पहले उसी मुंबई को पुर्तगाली शासकों ने ब्रिटिश शासक चार्ल्स द्वितीय को पुर्तगाल की कैथरीन डी ब्रि‍गांजा से हुई शादी के दौरान दहेज में दे दिया था। दहेज के रूप में मिली मुंबई को चार्ल्स द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया और इसके बदले में कंपनी ने उन्हें 50 हजार पौंड की राशि को 6 प्रतिशत की ब्याज दर पर लोन के रूप में दे दिया। इसके अलावा मुंबई के किराए के रूप में ब्रिटिश शासक को हर साल 10 पौंड की राशि देने की भी शर्त रखी गई थी।

27 मार्च 1668 को चार्ल्स ने मुंबई का सारा स्वामित्व ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया, जिसके किराए के रूप में हर साल ईस्ट इंडिया कंपनी के सामने 10 पौंड की राशि को जमा करने की शर्त रखी गई। इतिहासकारों के मुताबिक चार्ल्स के निर्णय के इस दिन को हिन्दुस्तान के शहरीकरण के युग की पहली शुरुआत के रूप में जाना जाता है।

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इतिहासकारों के मुताबिक ब्रि‍गांजा और चार्ल्स की शादी 31 मई 1662 को हुई थी लेकिन उन्हें दहेज के रूप में मिले मुंबई पर अपना दावा मजबूत करने में करीब 6 साल का वक्त लग गया। विवाद की वजह पुर्तगाली शासकों और ब्रिटिश लोगों के बीच का वह मतभेद था जिसमें यह तय नहीं हो पा रहा था कि मुंबई के जिस क्षेत्र को दहेज के रूप में दिया गया है।

नक्शे में ठाणे समेत कुछ अन्य इलाकों को मुंबई का हिस्सा बताया गया था, इसके अलावा कुछ अन्य क्षेत्रों को लेकर भी विवाद की स्थिति थी जिस पर आम राय बनाने में करीब 6 साल का वक्त लग गया। इसके बाद 27 मार्च 1668 को चार्ल्स ने मुंबई पर अपना दावा करते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी को इसके मालिकाना हक सौंप दिये।

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HDR image of Gate Way of India and Taj Mahal Hotel, Mumbai

आपको बता दें की बॉम्बे को दहेज़ में देने से पहले अंग्रेज़ों ने सन 1612 तक पुर्तगालियों से जंग लड़ी थी, लेकिन इस दौरान बॉम्बे काफी हद तक सुरक्षित था. इस दौरान अंग्रेज़ों ने बॉम्बे के बारे में सिर्फ़ इतना ही सुना था कि पुर्तगाली बॉम्बे नाम की जगह पर अपने जहाज़ों की मरम्मत करते हैं. सन 1626 में पहली बार अंग्रेज़ों ने मुंबई की ओर रुख़ किया. जब अंग्रेज़ों को इस शहर की शानों शौक़त के बारे में पता चला तो उन्होंने बॉम्बे पर हमला कर दिया. इस दौरान अंग्रेज़ों ने पुर्तागालियों के दो नए जहाज़ जला दिए, बिल्डिंगों में आग लगा दी. बावजूद इसके वो यहां से खाली हाथ ही वापस लौटे.

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