थनैला रोग क्या है और इसका आयुर्वेदिक उपचार ?  ( What is Thanella disease and its Ayurvedic treatment? )

थनैला रोग – वर्तामान समय में हमने बहुत तरक्की कर ली है. लेकिन विकास के साथ साथ यह भी सच ही है कि हमने प्रकृत्ति का अत्यधिक शोषण भी किया है. जिसके परिणाम के तौर पर हमें कई तरह की बीमारियां देखने को मिलती हैं. ये बीमारियां सिर्फ मानुष्य तक ही सीमित नहीं हैं. इससे हमारा पूरा पर्यावरण प्रभावित होता है.

मनुष्य को अपने स्वस्थ्य जीवन के साथ साथ अपने पशुओं का ध्यान रखना भी जरूरी होता है. इसी कारण पशुओं में आने वाली अनेंक बीमारियों के बारे में भी पशुपालकों में कई तरह के सवाल होते हैं. इसी तरह का एक सवाल जो आमतौर पर पूछा जाता है कि थनैला रोग क्या है और इसका आयुर्वेदिक उपचार क्या है. अगर आपके मन में भी ऐसा ही सवाल है, तो इस पोस्ट में इसी सवाल का जवाब जानते हैं.

थनैला रोग
थनैला रोग

थनैला रोग क्या है-

किसी भी बीमारी के इलाज के बारे में जानने से पहले हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक हो जाता है कि आखिर यह बीमारी है क्या. दरअसल, थनैला बीमारी हमें दूधारू पशुओं में देखने को मिलती है. इस रोग को हम स्तनशोथ भी कहते हैं. जब पशु इस रोग से प्रभावित होते हैं, तो शुरूआत में उनका थन गर्म हो जाता है तथा इसके साथ ही उसमें दर्द और सूजन की हो जाती है.

इसके अलावा इसकी वजह से पशुओं के शरीर का तापमान भी बढ़ जाता है. दूधारू पशुओं की दूध की गुणवत्ता पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इसके अलावा पशु खाना पीना भी कम कर देते हैं या फिर चरते ही नहीं हैं.

थनैला रोग क्या है
थनैला रोग

थनैला रोग के कारण –

अगर इस रोग के होने के पीछे के कारण की बात करें, तो कई प्रकार के जीवाणु , विषाणु , फफूँद इत्यादि की वजह से यह रोग हो सकता है. इसके सात ही किसी चोट के कारण या फिर प्रतिकूल मौसम की वजह से भी यह बीमारी हो सकती है. यह रोग आमतौर पर उन सभी पशुओं में पाया जाता है, जो दूधारू पशु हैं तथा अपने बच्चों को दूध पिलाते हैं. इस बीमारी के प्रकोप का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि श्वेत क्रांति के दौरान यह बीमारी बड़ी बाधक बनी थी.

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थनैला रोग का उपचार –

थनैला रोग के आयुर्वेदिक उपचार की बात करे, तो इसके लिए आंवला उपयोगी साबित हो सकता है. थनैला रोग से प्रभावित दूधारू पशुओं को 150-250 ग्राम आंवला प्रतिदिन बीज निकालकर देना चाहिएं. इससे थनैला रोग से पीड़ित पशुओं को बहुत आराम मिलता है. इसके अलावा पशु के रहने के स्थान की नियमित तौर पर सफाई करनी चाहिएं.

रोगी पशुओं को स्वस्थ्य पशुओं से दूर रखना चाहिएं. इसके अलावा अगर समस्या ज्यादा दिखाई देती हैं, तो तुरंत पशुओं के चिकित्सक से संपर्क करना चाहिएं. इस मामले में ज्यादा लापरवाही की वजह से पशुओं का थन हमेशा के लिए भी जा सकता है.

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