चुनाव को लेकर सियासी जंग शुरू हो गई है. दिल्ली में विधानसभा चुनाव को लेकर औपचारिक ऐलान हो चुका है. आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी जीत को लेकर भले ही अश्वस्त हो गए हो, लेकिन 2015 के बाद दिल्ली की सियासत में काफी कुछ बदल गया है. राजनीतिक में इन पांच सालों में जो भी हुआ है उसके आंकडे आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को सियासत के तौर पर डरा सकते है. वो इसलिए क्योंकि 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली में तीन चुनाव हो चुके है इन चुनाव में अरविंद केजरीवाल का जादू दिल्ली के लोगों पर नहीं चल सका है. दिल्ली नगर निगम और लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के वोट में जबदस्त गिरावट देखने को मिली.
विधानसभा चुनाव 2015 में आम आदमी पार्टी दिल्ली की कुछ 70 में से 67 सीटें जीतने में कामयाब रही थी और पार्टी के खाते में 54.34 फीसदी वोट आए थे विधानसभा चुनाव के दो साल बाद 2017 में दिल्ली नगर निगम चुनाव किए गए. जिसमें केजरीवाल की पार्टी ने एमसीडी पर अपनी पूरी ताकत लगा दी थी, लेकिन यहां पर उस वक्त बीजेपी ने बाजी मार ली थी. दिल्ली के लोगों ने आम आदमी पार्टी की सरकार को पूरी तरह से नकार दिया था. एमसीडी चुनाव में बीजेपी ने 26 फीसदी वोट के साथ 45 सीटें से जीत हासिल की थी. इसमें दिलचस्प की बात तो यह है कि विधानसभा चुनाव में महज 9.65 प्रतिशत वोट हासिल करने वाली कांग्रेस एमसीडी चुनाव में 21 फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रही थी.
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आम आदमी पार्टी के सात्ता में विराजमान होने के बाद दिल्ली में दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए हैं. दिल्ली के रजौरी गार्डन सीट से आप के विधायक जनरैल सिंह इस्तीफा देकर पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ चुनाव लडने गए थे वेद प्रकाश शर्मा केजरीवाल का साथ छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे. जिसके चलते राजौरी गार्डन और बवाना सीट पर उपचुनाव हुए. अरविंद केजरीवाल ने अपने पांच साल किए विकास कार्यों को लोगों के बीच रखा है. जिसमें सरकारी स्कूल में शिक्षा, अस्पताल, मोहल्ला क्लिनिक, फ्री बस यात्रा, फ्री पानी, 200 यूनिट फ्री बिजली आदि जैसे मुद्दे के दम पर आम जनता पर्टी दिल्ली का दिल जीतना चाहती है.