तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, चौंकाने वाला!

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तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसवला आ चुका है। पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने मंगलवार को अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने तीन तलाक को बरकरार रखा है। साथ ही ये भी कहा कि इसे रोकने के लिए सरकार कानून बनाए। कोर्ट को ये तय करना था कि तीन तलाक महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का हनन करता है या नहीं, यह कानूनी जायज है या नहीं और तीन तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा है या नहीं? इस मामले में कोर्ट ने मई में 6 दिन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा था कि वह तीन तलाक को जायज नहीं मानती और इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने माना था कि वह सभी काजियों को एडवायजरी जारी करेगा कि वे तीन तलाक पर न सिर्फ महिलाओं की राय लें, बल्कि उसे निकाहनामे में शामिल भी करें।

बता दें कि कोर्ट ने कहा कि सरकार 6 महीने के भीतर तीन तलाक पर उचित कानून बनाए तब तक के लिए तीन तलाक कानून पर बैन लगा रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को इस कानून को बनाने में सरकरा की मदद करनी चाहिए। कोर्ट के कहा अगर 6 महीने के भीतर सरकार इस पर कानून बनाने में सफल नहीं हो पाती है तो तीन तलाक पर बैन जरी रहेगा। बता दें कि लोग ये सोच रहे थे कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट कोई सख्त फैसला लेगी और तीन तलाक पर पूरी तरह से बैन लग जाएगा। लेकिन इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने बड़े ही विवेक से फैसला लिया और गेंद केंद्र सरकार के पाले में फेंक दिया।

2016 में दायर हुई थी पिटीशन

फरवरी 2016 में उत्तराखंड की रहने वाली शायरा बानो (38) वो पहली महिला बनीं, जिन्होंने ट्रिपल तलाक, बहुविवाह (polygamy) और निकाह हलाला पर बैन लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर की। शायरा को भी उनके पति ने तीन तलाक दिया था।

ट्रिपल तलाक यानि पति तीन बार ‘तलाक’ लफ्ज बोलकर अपनी पत्नी को छोड़ सकता है। निकाह हलाला यानी पहले शौहर के पास लौटने के लिए अपनाई जाने वाली एक प्रॉसेस। इसके तहत महिला को अपने पहले पति के पास लौटने से पहले किसी और से शादी करनी होती है और उसे तलाक देना होता है। बहुविवाह यानी एक से ज्यादा पत्नियां रखना। कई मामले ऐसे भी आए, जिसमें पति ने वॉट्सऐप या मैसेज भेजकर पत्नी को तीन तलाक दे दिया।

कई पिटीशन दायर हुई थीं?

मुस्लिम महिलाओं की ओर से 7 पिटीशन्स दायर की गई थीं। इनमें अलग से दायर की गई 5 रिट-पिटीशन भी हैं। इनमें दावा किया गया है कि तीन तलाक अनकॉन्स्टिट्यूशनल है।

सबसे पहली सुनवाई

जजों ने कहा

‘अगर हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि तीन तलाक मजहब से जुड़ा बुनियादी हक है तो हम उसकी कॉन्स्टिट्यूशनल वैलिडिटी पर सवाल नहीं उठाएंगे। एक बार में तीन तलाक बोलने के मामले में सुनवाई होगी, लेकिन तीन महीने के अंतराल पर बोले गए तलाक पर विचार नहीं किया जाएगा।”

पहली पिटीशन दायर करने वाली शायरा बानो के वकील ने कहा-

“तीन तलाक का रिवाज इस्लाम की बुनियाद से जुड़ा नहीं है। लिहाजा, इस रिवाज को खत्म किया जा सकता है। पाकिस्तान-बांग्लादेश में भी ऐसा नहीं होता। तीन तलाक गैर-इस्लामिक है।”

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड:

“कोई भी समझदार मुस्लिम किसी भी दिन उठकर सीधे तलाक-तलाक-तलाक नहीं कहता। यह कोई मुद्दा ही नहीं है।”

दूसरी सुनवाई

सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद ने कहा-

“एक साथ तीन तलाक कहना खुदा की नजर में गुनाह है, लेकिन पर्सनल लॉ में जायज है।” बता दें इस केस में सलमान ने एक वकील तौर पर दलीलें दी थीं।

राम जेठमलानी ने कहा-

“तीन तलाक कुरान शरीफ के खिलाफ है, कोई भी दलील इस घिनौनी प्रथा का बचाव नहीं कर सकती। तीन तलाक महिलाओं को तलाक में बराबरी का हक नहीं देता।”

जोजों ने कहा-

“जो काम खुदा की नजर में गुनाह है, क्या उसे कानूनी तौर पर जायज मान सकते हैं?”

तीसरी सुनवाई

बेंच-

“अभी हमारे पास वक्त कम है। इसलिए ट्रिपल तलाक पर ही सुनवाई होगी। अभी हम यहां ट्रिपल तलाक के मामले में ही सुनवाई कर रहे हैं। बहुविवाह (पॉलीगैमी) और हलाला पर बाद में सुनवाई होगी।”

“हां, अगर तीन तलाक जैसी प्रथा को खत्म कर दिया जाता है तो किसी भी मुस्लिम पुरुष के लिए क्या तरीके मौजूद हैं?”

केंद्र-
“अगर सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक को अमान्य या असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर देता है तो केंद्र सरकार नया कानून लाएगी। यह कानून मुस्लिमों में शादी और डिवोर्स को रेगुलेट करने के लिए होगा।”

चौथी सुनवाई

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा-

“अगर राम का अयोध्या में जन्म होना आस्था का विषय हो सकता है तो तीन तलाक भी आस्था का मामला है। इस पर सवाल नहीं उठाए जाने चाहिए। ”

 

बेंच-
“तो क्या आप कहना चाहते हैं कि हमें इस मामले में सुनवाई नहीं करनी चाहिए?”

पांचवीं सुनवाई

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड-

“मुस्लिमों की हालत एक चिड़िया जैसी है, जिसे गोल्डन ईगल यानी बहुसंख्यक दबोचना चाहते हैं। उम्मीद है कि चिड़िया को घोंसले तक पहुंचाने के लिए कोर्ट न्याय करेगा।”

केंद्र-
“यहां तो टकराव मुस्लिम महिलाओं और पुरुषों के बीच ही है।”

बेंच-
“केंद्र ने मुस्लिमों में शादी और तलाक के लिए कानून क्यों नहीं बनाया, इसे रेगुलेट क्यों नहीं किया? आप (केंद्र) कहते हैं कि अगर कोर्ट ट्रिपल तलाक को अमान्य घोषित कर दे तो आप कानून बनाएंगे, लेकिन सरकारों ने पिछले 60 साल में कोई कानून क्यों नहीं बनाया?”

छठी सुनवाई

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा-

“मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड काजियों को एडवायजरी जारी करेगा कि तीन तलाक पर न सिर्फ महिलाओं का मशविरा लिया जाए, बल्कि उसे निकाहनामे में भी शामिल किया जाए।”

शायरा बानो के वकील-

“इस्लाम ने कभी औरत और मर्द में भेदभाव नहीं किया। मेरी राय में तीन तलाक एक पाप है। यह मेरे और मुझे बनाने वाले (ईश्वर) के बीच में रुकावट है।”

 

बेंच:
– “कोई चीज मजहब के हिसाब से गुनाह है तो वह किसी कम्युनिटी की रिवाज का हिस्सा कैसे बन सकती है?”

मामले में पक्ष कौन-कौन हैं?

केंद्र-

इस मुद्दे को मुस्लिम महिलाओं के ह्यूमन राइट्स से जुड़ा मुद्दा बताता है। ट्रिपल तलाक का सख्त विरोध करता है।

पर्सनल लॉ बोर्ड-

इसे शरीयत के मुताबिक बताते हुए कहता है कि मजहबी मामलों से अदालतों को दूर रहना चाहिए।

जमीयत-ए-इस्लामी हिंद-

ये भी मजहबी मामलों में सरकार और कोर्ट की दखलन्दाजी का विरोध करता है। यानी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ खड़ा है।

मुस्लिम स्कॉलर्स-

इनका कहना है कि कुरान में एक बार में तीन तलाक कहने का जिक्र नहीं है।

बेंच ने इन 3 सवालों के जवाबों पर विचार किया

– क्या तीन तलाक इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं?
तीन तलाक मुसलमानों के लिए प्रवर्तनीय मौलिक अधिकार है या नहीं?
 क्या यह मुद्दे महिला के मौलिक अधिकार हैं? इस पर आदेश दे सकते हैं?

कितने जज थे शामिल?

बेंच में चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं। इस बेंच की खासियत यह है कि इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई और पारसी धर्म को मानने वाले जज शामिल हैं।