आयुर्वेद के अनुसार अंडे को किस तरीके से खाना चाहिएं ?

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आयुर्वेद मे अंडा
आयुर्वेद मे अंडा

आयुर्वेद के अनुसार अंडे को किस तरीके से खाना चाहिएं ? ( How to eat eggs according to ayurveda )

वर्तमान समय में लोगों का रूझान आयुर्वेद की तरफ बढ़ा है. आयुर्वेद में अनेंक बीमारियों का जड़ से इलाज का दावा किया जाता है. इसके अलावा लंबी उम्र और रोगों से बचने के लिए अनेंक उपाय आयुर्वेद में मौजूद हैं. आयुर्वेद में बन रहे लोगों के भरोसे के कारण ही दिन प्रतिदिन लोगों के मन में इससे संबंधित कुछ सवाल भी पैदा होते हैं. ऐसा ही एक सवाल है कि आयुर्वेद के अनुसार अंडे को किस तरीके से खाना चाहिएं. इस पोस्ट में इसी सवाल का जवाब जानते हैं.

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आयुर्वेद

अंडे को किस तरह से खाना चाहिएं-

अंड के बारे में हमें जानना जरूरी है कि एक अंडे के बीच वाले भाग यानी पीले भाग में लगभग 186 मिलीग्राम कोलेस्ट्रॉल की मात्रा पाई जाती है, जो एक व्यक्ति के लिए उपयोगी दैनिक आवश्यकता का 62% है. इसके विपरीत, अंडे के सफेद भाग में अधिकतम प्रोटीन और कम कोलेस्ट्रॉल पाया जाता है. इसलिए आमतौर पर सलाह दी जाती है कि अंडे का सफेद भाग खाना चाहिए क्योंकि इसमें कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है तथा अत्यधिक मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है. अगर आप कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढाना चाहते हैं, तो अंडे का पीला भाग भी खा सकते हैं.

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अंड़े

आयुर्वेद में अंडा कैसा खाना है –

यहां यह बात भी ध्यान रखने की है कि आयुर्वेद और योगा में पशु उत्पादों को तामसिक या tamasic भोजन का हिस्सा माना जाता है. आयुर्वेद के अनुसार अंडा भी तामसिक (tamasic foods basically turn you into a couch potato) भोजन का ही हिस्सा होता है. ऐसा माना जाता है कि तामसिक भोजन शरीर और दिमाग में जड़ता पैदा करता है. आयुर्वेद के अनुसार हमें हमें सात्विक (शुद्ध), राजसिक (ऊर्जावान) और तामसिक (अशुद्ध) खाद्य पदार्थों की आवश्यकता है, लेकिन अनुपात को संतुलित करना महत्वपूर्ण है. इसलिए यदि हम अंड़ा खाते हैं, तो उसको एक निश्चित मात्रा में ही प्रय़ोग करना चाहिए.

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आयुर्वेद क्या होता है-

आयुर्वेद (आयुः + वेद = आयुर्वेद) विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है. यह चिकित्सा विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है. ‘आयुर्वेद’ नाम का अर्थ है, ‘जीवन से सम्बन्धित ज्ञान’. आयुर्वेद, भारतीय आयुर्विज्ञान है. आयुर्विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जिसका सम्बन्ध मानव शरीर को निरोग रखने, रोग हो जाने पर रोग से मुक्त करने तथा आयु बढ़ाने से होता है. आयुर्वेद के ग्रन्थ तीन शारीरिक दोषों (त्रिदोष = वात, पित्त, कफ) के असंतुलन को रोग का कारण मानते हैं. इसके साथ ही जब इनका संतुलन होता है, तो ऐसी स्थिति को स्वास्थ होना माना जाता है.

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं. News4social इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.

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