जानिए क्या भारतीय इतिहास से छेड़छाड़ हुई है?

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जानिए क्या भारतीय इतिहास से छेड़छाड़ हुई है?

अगर बात करें इतिहास के छेड़छाड़ को लेकर, तो जी हां यह बिल्कुल सही बात है कि भारत के इतिहास के साथ बहुत ज्यादा छेड़छाड़ की गई है. उपनिवेशवाद के दौर में ब्रिटिश लोगों ने हिन्दुस्तान पर अपनी हुकूमत को दीर्घकालीन रखने के लिए तथा भारत के समृद्ध आर्थिक-सामजिक तथा सांस्कृतिक ढांचे को ध्वस्त करने की साजिश के तहत व्यापक तौर पर ‘भारतीय इतिहास’ को निशाना बनाते हुए जमकर छेड़खानी की.

इससे भी अधिक हैरत वाली बात तो यह है कि आजादी के बाद भी हमारे देश के इतिहासकारों ने लिखा और जनता के समक्ष प्रस्तुत किया इतिहास के साथ हुई इसी छेड़छाड़ के परिणामस्वरूप विभिन्न सामाजिक विषमताओं और बुराइयों से जूझ रहे हैं. यही नहीं, भारतवर्ष की अखंडता और एकता की जड़ें भी इसी बौद्धिक प्रहार के कारण कमजोर हुई हैं.

आप आज भी ग्रामीण परिवेश में लोगों को किसी तरह के सामजिक और बौद्धिक परिचर्चा में ‘पौराणिक आख्यानों’ का प्रमाण देते हुए देख सकते हैं. राजा बली, भगवान राम, कृष्ण या अन्य पौराणिक किरदारों को लोग मिथक के रूप में नहीं, अपितु इतिहास के रूप में ही स्वीकारते हैं. सदियों से इन्ही किरदारों ने उन्हें उनके नैतिक मूल्यों से जोड़ रखा है. परन्तु पश्चिम प्रभावित तथाकथित आधुनिक शिक्षाविदों ने हमारे ‘प्राच्य’ ग्रंथों को सरासर पक्षपाती होते हुए मिथक करार दे दिया.

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भारत में रूचि लेने वाले जर्मन और ब्रिटिश इतिहासकार इस बात को पचा नहीं पा रहे थे कि दुनिया में ज्ञान और चेतना की पहली किरण एक गैर-क्रिश्चियन खंड में फूटी. अपनी इसी ‘कुंठा’ को शांत करने के लिए पश्चिमी विद्वानों ने भारत की प्राचीन संस्कृति और धर्म की जानबूझकर गलत व्याख्याएं किया.

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आजादी के बाद इन्ही ‘अंगरेजी’ शिक्षा प्राप्त ‘तथाकथित शिक्षितों’ ने यूरोपीय कृत “हिस्ट्री” को प्रसारित करने में महान सहयोग उपलब्ध कराया. ग्रामीणों के प्रति हिकारत भरे अंगरेजी दृष्टिकोण को शहरी और प्रगतिशील भारतीयों ने पर्याप्त स्वीकृत किया. यही कारण है कि मूल भारतीय इतिहास अब भी ‘आम भारतीय’ को सुलभ नहीं है. ऐसे ही और भी तथ्य है जिसमें इतिहास के बारें में छेड़छाड़ को लेकर काफी कुछ कहा गया है.