क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सवालों से कतराते हैं

250

जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे तब यह कहा जाता था की देश में भ्रष्ट्रचार और घोटाले इसलिए हो रहे है क्योंकि प्रधानमंत्री कुछ बोलते नहीं हैं। विपक्ष नें तो उन्हें एक गूंगा प्रधानमंत्री तक कह दिया था। नरेंद्र मोदी जब देश के प्रधानमंत्री बने तब यह कहा गया की वह अपने भाषण और बोलने की शैली से लोगों का विश्वास जितने में कामयाब रहे है। तब नरेंद्र मोदी देश के पत्रकारों से खूब बातचीत करते थे। लेकिन पिछले चार सालों में ऐसा क्या हो गया है की खुद प्रधानमंत्री पत्रकारों के सवालों से बच रहे हैं। लोग अब सोचने लगे है की पिछले चार सालों में प्रधानमंत्री नें कितनी बारी पत्रकारों से बातचीत की हैं। उन्होंने काफी बार पत्रकारों को इंटरव्यू  भी दिए हैं। लेकिन उन इंटरव्यू में नरेंद्र मोदी एक तरह से भाषण देते हुए ही दिखे और दुसरी तरफ़ इंटरव्यू लेने वाले पत्रकारों नें उन्हें भाषण देने की अवस्था से बाहर निकालने की कोशिश भी नहीं की। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नें एक प्रतिष्ठित अख़बार को इंटरव्यू दिया हैं। जिसमें उन्होंने सवालों के जवाब ई-मेल के जरिए दिए न की आमने सामने बैठकर। तो क्या पिछले चार साल में देश में चल रहीं गतिविधियों नें प्रधानमंत्री को इतना ताकतवर या कमज़ोर बनाया है की वह इंटरव्यू को भी भाषण बना देते है या फिर वह सिधे सवालों से बचते हैं। जो भी हो दोनों ही परिस्थिति में प्रधानमंत्री के सामने बैठा हुआ शख्स पत्रकार नहीं हैं या फिर वह प्रधानमंत्री के ताकतवर कुनबे में रहने के लिए पत्रकार बनना ही नहीं चाहता हैं।

narendra modi 2 news4social -

प्रधानमंत्री का पत्रकारों से सीधे सवालों से बचने का यही एक उदाहरण नहीं हैं। खुद वरिष्ठ पत्रकार करन थापर तो यह तक कह चुके है कि 2007 में नरेंद्र मोदी का उनके द्रारा लिया गया विवादास्पद इंटरव्यू नें उनकी पत्रकारिता करियर को ही भाजपा के क्रार्यकाल में समाप्त कर दिया हैं। जिसमें नरेंद्र मोदी इंटरव्यू को बीच में ही छोड़कर चले गए थे। तो क्या पत्रकारों को ड़र लगता है की अगर वह सीधे तौर पर प्रधानमंत्री से सवाल करते है तो उनका भी यही हाल होगा जो करन थापर का हुआ हैं।

narendra modi 4 news4social -

दुसरा सवाल उठता है की क्या प्रधानमंत्री पत्रकारों के सीधे सवालों से इसलिए बच रहें है, या फिर पत्रकार उनसे सीधे सवाल इसलिए नहीं करते है की उन्हें लगता है की कांग्रेस और मनमोहन सिंह को अगर देश नें 10 साल दिए थे तो नरेंद्र मोदी और भाजपा को भी 10 साल देने चाहिए। ताकि एक वक्त के बाद खुद देश ऐसी अवस्था में आ जाए की वह दोनों ही पाट्रियों के बीच फर्क करके यह पता लगा सके की देश किस विचारधारा या किस पार्टी से चलना ठीक रहेगा। शायद कुछ लोगों को और प्रधानमंत्री को भी लगता है की सरकार नें अगर बहुत शानदार सफलता हासिल नहीं की है तो बहुत कुछ कांग्रेस की तरह लुटाया भी नहीं है। पत्रकार हो या फिर समाज क्या हम मानें की जब तक नरेंद्र मोदी की सरकार मनमोहन सिंह नहीं हो जाती है तब तक कोई भी इंसान पत्रकार नहीं बनना चाहेगा और लोग सड़कों पर नहीं उतरना चाहेंगे। तो क्या तब तक देश में बढती बेरोजगारी के ऊपर प्रधानमंत्री से सिधा सवाल नहीं पुछा जाएगा?

narendra modi 1 news4social 1 -

तो क्या मॉब लिंचिंग के ऊपर कोई भी सवाल उनसे नहीं पुछा जाएगा? तो क्या उनसे यह नहीं पुछा जाएगा की सरकारी कार्यालयों में इतने सीटे खाली होने के बाद भी केंद्र सरकार उन्हें भरने के लिए वज्ञापन क्यों नहीं देती? शायद खुद प्रधानमंत्री भी जानते है की जहां पर उनसे सवाल पुछकर उन्हें टीवी या अख़बार में अस्थिर किया जाएगा तो शायद वही वक्त उनका प्रधानमंत्री के तौर पर अंतिम वक्त भी होगा क्योंकि कौन भुल सकता है की मनमोहन सिंह की सरकार को 2014 में हराने के लिए खराब अर्थव्यवस्था और घोटाले जितने ज़िम्मेदार थे उतना ही ज़िम्मेदार मीडिया भी था। शायद प्रधानमंत्री इसी वजह से सवालों से कतराते हैं।