देश के प्रथम आम चुनाव को इतिहास का सबसे बड़ा जुआ क्यों कहा जाता था

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भारत का इतिहास
भारत का इतिहास

भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ. 26 जनवरी,1950 को भारत का संविधान लागू हुआ. जिसके अनुसार भारत को एक लोकतांत्रिक देश घोषित किया गया. जिसका मतलब था कि अब भारत में जो भी सरकार बनेगी. वो भारत के लोगों द्वारा चुनी हुई होगी. सुनने में बहुत अच्छा और आसान काम लगता है. लेकिन जब उस समय एक नवनिर्मित देश भारत के सामने यह एक बहुत बड़ी समस्या थी. इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश में चुनाव तथा इससे पहले स्वतंत्र भारत के रूप में कोई अनुभव भी नहीं था. इस समय चुनाव करवाने की जिम्मेदारी भारत के उस समय मुख्य चुनाव आयुक्त रहे सुकुमार सेन पर थी.

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भारत में चुनाव

पहले आम चुनाव के समय समस्या सिर्फ यह नहीं थी कि जनसंख्या अधिक है और भारत को ऐसा कोई अनुभव नहीं है. सबसे बड़ी समस्या तो ये थी कि उस समय भारत की जनता गरीब और अनपढ़ थी. ऐसे समय में लोकतंत्र की सबसे बड़ी परीक्षा की घ़ड़ी थी. इतना ही नहीं उस समय तक लोकतंत्र अमीर देशों में ही सामने आया था. यहां तक की यूरोप के देशों में लोकतंत्र तो था, लेकिन महिलाओं को वोट डालने का अधिकार नहीं था. कहीं पर सिर्फ अमीर लोग ही वोट डाल सकते थे. ऐसे समय में भारत में सार्वभौमिक वोट का अधिकार एक बहुत बड़ी परीक्षा का समय था.

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सुकुमार सेन प्रथम मुख्य चुनाव आयुक्त

इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए एक भारतीय संपादक ने देश के प्रथम आम चुनाव को इतिहास का सबसे बड़ा जुआ कहा था. आर्गनाइजर नाम की पत्रिका में लिखा गया कि जवाहर लाल नेहरू अपने जीते जी देख लेगें और पछताएंगें कि भारत में सार्वभौमिक मताधिकार असफल रहा.

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इंडियन सिविल सर्विस के एक अंग्रेज अधिकारी ने कहा कि “आने वाला वक्त और अब से कहीं ज्यादा जानकार दौर बड़े विस्मय से लाखों अनपढ़ लोगों के मतदान की यह बेहूदी नौटंकी देखेगा”.  लेकिन आखिरकार भारत के प्रथम आम चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न हुए. हारने वाले उम्मीदवारों ने भी चुनाव को निष्पक्ष बताया. यह सफलता भारत की काबलियत और उसका मजाक बनाने वाले लोगों के मुँह पर तमाचा थी.