‘महागठबंधन’ कम ‘मजबूर’ गठबंधन ज्यादा लगता है विपक्ष का एकजुट होना

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आगामी 3 राज्यो के चुनाव को देखते हुए विपक्ष भाजपा को किसी भी कीमत पर जीतने नहीं देना चाहता है. इसलिए गठबंधन को मजबूत बनाने की कवायते और तेज हो गयी है. सबसे बड़ी परेशानी ‘महागठबंधन’ में यह है की हर पार्टी अच्छी खासी सीटे चाहती है भले ही उनमे से किसी को लोकसभा में एक भी सीट ना मिली हो. एसा इसलिए हो रहा है क्यूंकि जिस पार्टी को सबसे ज्यादा सीटे मिलेंगी उसे उतना ही बड़ा पद मिलने की संभावना बढ़ जाएगी. ऐसे में भला कौन ही अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना चाहेगा.

राहुल बाबा के लिए खड़ी हुई परेशानी

पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष का कुनबा हिलता देख कांग्रेस ने अपने पैर पीछे करने में देरी नहीं लगाई और ममता बनर्जी या मायावती को पीएम बनाने तक के संकेत दे रही है. इसमें कोई दो मत नहीं है की तमाम विपक्षी पार्टिया एक साथ हो कर नरेंद्र मोदी को 2019 के चुनावो में हराना चाहती है लेकिन नेतृत्व कोन करेगा इसका अभी तक कोई एक जवाब नहीं है. एक आद पार्टी को छोड़ कोई भी पार्टी प्रत्येक्ष तौर पर राहुल गाँधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने को सहमत नहीं है. दूसरी तरफ भाजपा की तरफ से नरेंद्र मोदी रहेंगे यह तो तय ही है.

यह है कांग्रेस की असली रणनीति ?

यह साफ़ देखा जा सकता है की कांग्रेस किसी भी कीमत पर महागठबंधन में दरार नहीं आने देने चाहती है. इसका मुख्य कारण यह है की कांग्रेस के नेता अच्छे से जानते है की उनके अलावा कोई भी पार्टी इतनी ज्यादा सीटे नहीं ला सकती की पीएम पद की दावेदारी थोक सके. इसलिए कांग्रेस के नेताओ की यह कोशिश है उनकी पार्टी किसी तरह 120-140 सीट ला सके. बाकि पार्टी में से कोई भी 40 सीटो से ऊपर कोई नहीं ला सकेगा. ऐसे में बाज़ी कांग्रेस के हाथ में ही रहेगी.

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क्यों लगता है मजबूर गठबंधन ?

बेशक तमाम विपक्षी पार्टिया एक साथ दिख रही हो लेकिन इसमें सबके अपने हित है. 2019 में भाजपा को लोकसभा चुनाव में हराकर राज्यो में कमज़ोर करना सबसे बड़ा लक्ष्य होगा. ऐसा इसलिए क्यूंकि राज्यो कि पार्टियो को वापस अपने राज्य में भी मजबूत होने का पुरे मौका मिलेगा. जिसके सहारे वह राज्यों में फिरसे अपनी सरकार बनाना चाहेंगी.