राजा के लिए चाणक्य की 6 नीतियां क्या थी ?

346
चाणक्य
चाणक्य
Advertising
Advertising

चाणक्य की बुद्धिमानी के बारे में तो आपने सुना होगा. चाणक्य का भारतीय इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. उनकी सहायता से ही मगध में नंद वंश का अंत करके चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश की स्थापना की. चंद्रगुप्त मौर्य को भारत का प्रथम सम्राट भी कहा जाता है. चंद्रगुप्त को इस लायक बनाने में चाणक्य का बहुत ब़ड़ा योगदान था. चाणक्य ने राजा को विभन्न परिस्थितियों से लड़ने के लिए 6 नीतियां बताई हैं. अगर राजा इन सबका पालना करता है, तो राजा का साम्राज्य बहुत समृद्ध होता है तथा वहाँ की प्रजा भी खुश रह पाती है.

चाणक्य

अगर चाणक्य की 6 नीतियों की बात करें, तो सबसे पहली नीति है- संधि – इसके अनुसार यदि शत्रु शासक मजबूत हो और हमसे ज्यादा ताकतवर हो तो हमें उसके साथ संधि कर लेनी चाहिएं. दूसरी निति- विग्रह या दुश्मनी की थी. जिसके अनुसार यदि सामने वाला शासक या शत्रु कमजोर हो तो उसके साथ दुश्मनी की नीति अपनानी चाहिएं. तीसरी नीति की बात करें, तो आसन्न होती है. जिसका अर्थ है कि यदि सामने वाला शत्रु बराबर शक्ति वाला हो तो कुछ भी नहीं करना चाहिएं.

चाणक्य
Advertising

चौथी नीति यान ( सैन्य अभियान की नीति बताई) यह तब प्रयोग की जानी चाहिएं, जब सामने वाला शासक बहुत ही ज्यादा कमजोर हो. पांचवी नीति संश्रय के अनुसार यदि सामने वाले शासक से हम बहुत ज्यादा कमजोर हों, तो हमें उसके आश्रय में चले जाना चाहिएं. छटवीं नीति की यदि बात करें, तो वह द्वैधीभाव अर्थात् एक राजा के साथ संधि तथा दूसरे राजा के साथ विग्रह की नीति है.

यह भी पढ़ें: परशुराम द्वारा कर्ण को श्राप देने के पीछे का रहस्य ?

चाणक्य के अनुसार यदि कोई राजा इन 6 नीतियों के अनुसार काम करेगा, तो उसके साम्राज्य पर कभी कोई संकट नहीं आएगा. इसके साथ ही एक दिन वह राजा जरूर बहुत बड़ा प्रतापी राजा बनेगा.

Advertising
Advertising