रावण की नाभि में छिपा अमृत का क्या रहस्य था?

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रामायण की गाथा वाक्ये तोर पर रावण के जिक्र के बिना अधुरा है। ऐसा कहा जाता है कि रावण की कमजोरी उसकी नाभि में छिपी थी। इस बारे में सिर्फ उसका परिवार ही जानता था। रावण को मरना असम्भव था क्योंकि रावण की जान नाभि में थी। जब राम-रावण युद्ध अंतिम समय पर पहुंचा तो श्रीराम ने रावण पर ‘बाणों की बारिश’ कर दी किंतु उसके सिर और भुजाएं कटने पर भी वे फिर से प्रकट हो जाते थे।

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श्रीराम इस चिंता में पड़ गए कि आखिर उसे किस तरह से मारा जाए। तब विभीषण ने कहा कि “हे राम, ब्रह्माजी ने इसे वरदान दिया है कि इसकी भुजाएं और मस्तिष्क बार- बार कट जाने के बाद भी पुनः उग आएंगे, रावण की नाभि में अमृत घट है इसे आप आग्नेय शस्त्र से सुखा दीजिए तभी इसकी मृत्यु संभव है।” विभीषण की यह बात सुन राम ने ऐसा ही किया और रावण की नाभि काे लक्ष्य कर तीर चलाया जिसके कारण उसकी मृ्त्यु हो गई।

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कहते हैं रावण ने अपनी बहन शूर्पणखा और भाइयाें कुंभकरण तथा विभीषण के साथ ब्रह्मा जी का तप किया था। उससे खुश होकर ब्रह्माजी ने चारो से वरदान मांगने को कहा। तब विभीषण ने ज्ञान, शूर्पणखा ने सुंदरता और कुंभकरण ने निंद्रा में लीन होने का वर मांगा था लेकिन रावण ने अमृत और ज्ञान का वरदान मांगा था।अमृत उसने अपनी नाभि में रख लिया था ताकि उसकी मृत्यु न हो सके। रावण के आख्यानों में उसके मर्म स्थानों का उल्लेख मिलता है। जिसके अनुसार रावण की मृत्यु किसी प्रकार के आयोजन अथवा उसके शरीर के किसी विशेष अंग को भेदन करने से ही हो सकती है।

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रामायण की बहुत सी गाथाए अपरम पार है , यह दर्शाता है की कोई भी वरदान प्राप्त हो और बुराई अपने पंचम पर हो तो कोई भी वरदान या अमृत आपको बचा नहीं सकता. रावण के दहन से हमें समझ आता है कि बुराई ज्यादा दिनों तक नहीं टिकती और सच हमेशा विजयी होता है।