महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव आंबेडकर दोनों का देश के निर्माण में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है. दोनों ने ही अपने जीवन को देश को समर्पित कर दिया. ऐसा नहीं है कि इन दोनों नेताओं की विचारधार में कोई समानता ही नहीं थी. जहाँ तक गाँधी जी की बात है, तो उन्होंने विदेशी कपड़ों की होली जलाई और जहाँ तक डॉ. भीमराव आंबेडकर जी की बात है, तो उन्होंने मनुस्मृति जलाई दोनों में ही एक समानता ये थी कि दोनों भारतीय दास्ता एवं बंधन के खिलाफ थे.
डॉ. भीमराव आंबेडकर की विचारधारा में भारतीय भिन्नता एवं अखण्डता के पहलू उजागर होते थे. इसका मतलब यह था कि वे सोचते थे कि भारत कई हिस्सों में या वर्गों में बंटा हुआ है. जिनमें दलित और समाज में शोषित वर्ग आते हैं. जबकि गाँधी जी की विचार धारा भारतीय एकता और अखंडता दिखाती है. उनका मानना था कि हमारा समाज एक है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि गाँधी जी ने दलित समाज के लिए कोई काम नहीं किए.
साधारण शब्दों में समझे तो गांधी जी दलित समुदाय को हिंदू धर्म का हिस्सा मानते थे तथा उनके उपर हो रहे अत्याचारों को खत्म करना चाहते थे. अंबेडकर जी का विचार था कि दलित समुदाय हिंदू धर्म से अलग एक अल्पसंख्यक वर्ग है. जिनका सदियों से शोषण होता आया है. दलित या अछूत समझे जाने वाले समुदाए के लिए सबसे पहले हरिजन शब्द का प्रयोग महात्मा गांधी जी ने किया था. इसके अलावा महात्मा गांधी जी अंबेडकर के वेदों को छोडने के आहान से भी सहमत नहीं थे.
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महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव आंबेडकर की विचारधार में कुछ अंतर जरूर था. कई बार दोनों नेताओं में मतभेद भी खुलकर सामने आए. लेकिन जहाँ तक उद्देश्य की बात करें, तो दोनों ने देश के निर्माण में अपना पूरा जीवन लगा दिया.