बवाना सीट की कीमत समझो तिवारी जी

923

राजनीति में हार जीत तो चलता ही रहता है लेकिन ये भी सही है कि एक जीत या हार से राजनीतिज्ञों की राजनीति पर बहुत फर्क पड़ जाता है। उन्हें उर्जा मिल जाती है, संघर्ष को मन प्रेरित हो जाता है। जैसे दिल्ली विधानसभा में चौंका देने वाली जीत के साथ केजरीवाल अपने आप को देश के बड़े नेता के रूप में समझने लगे और मोदी के समकक्ष मानने लगे थे। विधानसभा चुनाव में हार के असर के कारण ही मनोज तिवारी को बीजेपी अध्यक्ष बनने का मौका मिला और एमसीडी चुनाव में जीत ने ना केवल केजरीवाल की कमर तोड़ दी थी बल्कि मनोज तिवारी के कद को बहुत ऊंचा भी कर दिया था। एमसीडी में आप की हार का ही असर था कि आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता शांत और संयमित हो गए थे। वहीं बीजेपी में जान आ गई थी। लेकिन सोमवार को जैसे ही बवाना चुनाव का परिणाम घोषित हुआ ‘आप’ के “पौ बारह हो गए” उन्होंने फिर से बीजेपी के केंद्र सरकार को नसीहत देना शुरू कर दिया। यही नहीं उन्होंने अपने काम का भी डंका पिटना शुरू कर दिया और पीटे भी क्यों ना जीत तो आखिर जीत होती है।

हालांकि दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने बवाना उपचुनाव में पार्टी की हार को बड़ी सज्जनता से स्वीकारा और कहा कि हम हार की समीक्षा करेंगे। साथ ही उन्होंने केजरीवाल पर तंज कसते हुए कहा कि ‘आप’ को हार को स्वीकार करना भी सीखना चाहिए ये नहीं कि हार के बाद इवीएम को दोष देने लगे।

हार को हल्के में ना लें मनोज तिवारी

मनोज तिवारी को इस हार को हल्के में नहीं लेना चाहिए और एमसीडी में जीतकर आए अपने नेताओं से काम पर ध्यान देने को कहना चाहिए, क्योंकि एमसीडी में चुनाव के बाद स्थिति जस के तस बनी हुई है। चारो तरफ वही गंदगी का माहौल है। एमसीडी कर्मचारी किसी की सुनने को तैयार नहीं हैं, सफाई कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाते नहीं हैं वहीं नेता और अधिकारी अपनी जिम्मेदारियों से कन्नी काटते रहते हैं। अगर स्थिति यही बनी रही तो वो दिन दूर नहीं कि बवाना की जीत और एमसीडी के हालात से जनता को लगे कि बीजेपी और कांग्रेस से अच्छा विकल्प तो आम आदमी पार्टी ही है।

एमसीडी में जीत से बढ़ी थी ताकत

बता दें कि मनोज तिवारी केवल उनकी काबिलियत पर दिल्ली भाजपा का अध्यक्ष नहीं बनाया गया बल्कि बीजेपी के शीर्ष नेताओं को मालूम है कि दिल्ली में ज्यादातर सीटों पर पूर्वांचली ही हार-जीत का फैसला करते हैं, और उनके बीच में मनोज तिवारी काफी लोकप्रिय हैं। ऐसे में उन्हें इस लोकप्रियता का लाभ भी मिला। बीजेपी की हार एमसीडी चुनाव में तय मानी जा रही थी लेकिन तथाकथित रूप से मनोज तिवारी को अध्यक्ष बनाने के बाद पासा ही पलट गया। लेकिन बवाना चुनाव में ऐसा नहीं हुआ। इसलिए मनोज तिवारी को केवल ये भरोसा नहीं होना चाहिए कि पूर्वांचली हैं तो हमें ही वोट देंगे, उनको ये भी सोचना चाहिए कि जिस तरह से पूर्वांचल की जनता का एक बड़ा वोट बैंक है उसके अनुसार वो विकास भी चाहते हैं। वो केवल आपको इसलिए वोट नहीं दे सकते कि आप पूर्वांचल के हैं। अगर यही सोचते रहे तो बवाना की तरह पूरी दिल्ली आपके हाथों से फिसल जाएगी। जो कि पहले से ही आपकी नहीं बल्कि “आप” की है।