Surgery By Robot: मशीन का चमत्कार! सफदरजंग अस्पताल में पहली बार रोबॉट ने निकाली डोनर की किडनी

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Surgery By Robot: मशीन का चमत्कार! सफदरजंग अस्पताल में पहली बार रोबॉट ने निकाली डोनर की किडनी

Surgery By Robot: मशीन का चमत्कार! सफदरजंग अस्पताल में पहली बार रोबॉट ने निकाली डोनर की किडनी

विशेष संवाददाता, नई दिल्ली: सफदरजंग अस्पताल में रोबॉट द्वारा किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी की गई है। केंद्र सरकार के किसी भी अस्पताल में पहली बार किडनी ट्रांसप्लांट के लिए डोनर की किडनी रिमूव करने में रोबॉट का इस्तेमाल हुआ है। फायदा यह हुआ कि ब्लड लॉस 95 पर्सेंट तक कम हुआ, 90% कम चीरा लगा, 90% रिकवरी फास्ट हुई और मरीज को दर्द 95% कम हुआ। दूसरे दिन ही डोनर ठीक हो गया। जिस 17 साल के बच्चे को किडनी लगाई गई, वह शाम तक अपने पैरों पर खड़ा हो गया, दूसरे दिन चलने लगा और चौथे दिन उसकी किडनी काम करने लगी।

सफदरजंग अस्पताल के यूरोलॉजी विभाग के यूनिट-2 के प्रमुख व ट्रांसप्लांट सर्जन डॉक्टर पवन वासुदेव ने बताया कि 17 साल का लड़के का किडनी ट्रांसप्लांट किया गया है। उसकी 41 साल की मां ने किडनी डोनेट की। अस्पताल में कैंसर के इलाज के लिए रोबॉट आया था, लेकिन धीरे-धीरे अन्य डिपार्टमेंट की एक्सपर्टीज बढ़ रही है। जब हमें लगा कि रोबॉट से ट्रांसप्लांट के लिए हमारी तैयारी पूरी हो चुकी है, तब हमने इसका इस्तेमाल किया। 8 जुलाई को सर्जरी की गई। हमने किडनी डोनर महिला के शरीर से किडनी निकालने के लिए रोबॉट का इस्तेमाल किया।

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20 सेमी की जगह बस 2-3 सेमी का चीरा
डॉक्टर पवन ने बताया कि आमतौर पर किडनी निकालने के लिए 20 सेमी का चीरा लगाना होता है। लेकिन रोबॉट से किडनी निकालने के लिए 4 की होल की गईं और किडनी निकालने के लिए 2 से 3 सेमी का चीरा लगाना पड़ा। कुल 90% से ज्यादा चीरा कम हो गया। चीरा छोटा लगने से 95% तक ब्लड लॉस भी कम हुआ। मरीज की रिकवरी इसलिए फास्ट हुई। डोनर दूसरे दिन ही ठीक हो गया और उनका 95% तक पेन कम हो गया। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में अभी किडनी ट्रांसप्लांट में रोबॉट का इस्तेमाल डोनर के शरीर से किडनी निकालने में ही किया जाता है। अभी रेसिपिएंट में किडनी ट्रांसप्लांट के लिए रोबॉट के इस्तेमाल का डेटा पर्याप्त नहीं है।

डॉक्टर पवन ने यह भी बताया कि अमूमन एक सेंटर में एक ही रोबॉट होता है। अगर रोबॉट का इस्तेमाल किडनी निकालने में किया जा रहा है तो उसका इस्तेमाल तुरंत लगाने में नहीं हो सकता, क्योंकि रोबॉट डोनर के शरीर में लगा हुआ है। जितनी देर में उससे निकालकर, साफ कर रेसिपिएंट में लगाकर सर्जरी की जाएगी, इतने समय में किडनी मरीज में ओपन करके लगा दी जाती है। जितनी जल्दी लगाई जाती है, फायदा व रिकवरी उतना ही बेहतर होता है।

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इंजरी का खतरा हो जाता है कम
उन्होंने कहा कि चूंकि रोबॉट की अपनी खासियत है, विजन बेहतर है, इनसीजर सटीक लगता है, इसीलिए इससे जब किडनी निकालते हैं तो किडनी में इंजरी का खतरा बहुत कम हो जाता है। इससे जब बीमार मरीज में एक अच्छा व बिना डैमेज हुई किडनी लगाई जाती है तो मरीज में यह बेहतर व जल्दी काम करने लगती है। यही वजह रही कि 17 साल का रेसिपिएंट पहले ही दिन सर्जरी के बाद शाम को खड़ा हो गया। दूसरे दिन चलने लगा और चौथे दिन उसमें किडनी काम करने लगी। उन्होंने कहा कि अगर जरूरत हुई तो आगे रेसिपिएंट में भी रोबॉट का इस्तेमाल करने पर विचार किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि यूरोलॉजी और नेफ्रोलॉजी की टीम ने मिलकर इसे अंजाम दिया है। वैसे तो अस्पताल में किडनी ट्रांसप्लांट फ्री है। प्राइवेट में अगर रोबॉट की मदद से सर्जरी की जाती है तो औसतन 10 लाख रुपये तक खर्च आता है, जो सफदरजंग में फ्री में किया गया। यही नहीं, एक निश्चित समय तक मरीज को फ्री में दवा भी उपलब्ध कराई जाती है।

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