चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
आदिशक्ति माँ दुर्गा के छठे स्वरूप को माँ कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं इसीलिए ये कात्यायनी नाम से प्रसिद्ध हुईं। मां कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। यह दानवों, असुरों और पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी भी कहलाती हैं।
चार भुजाधारी और सिंह पर सवार हैं मां
अपने सांसारिक स्वरूप में मां कात्यायनी शेर पर सवार रहती हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। इनके बांए हाथ में कमल और तलवार है। दाहिने हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है। दुर्गा पूजा के छठे दिन इनके स्वरूप की पूजा की जाती है।
मां के इस स्वरूप को पूजने वाले में होती है यह खूबी
मान्यता के अनुसार, नवरात्र के छठे दिन साधक का मन ‘आज्ञा चक्र’ में स्थित रहता है। योग साधना में आज्ञा चक्र का महत्वपूर्ण स्थान है। आज्ञाचक्र मानव शरीर में उपस्थित 7 चक्रों में सर्वाधिक शक्तिशाली है। इस दिन ध्यान का प्रयास करने से भक्त को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं। जो भी भक्त मां के इस स्वरूप का पूजन करते हैं, उनके चेहरे पर एक अलग कांति रहती है। वह इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक सुख का अनुभव करता है। उसका तेज देखते ही बनता है।
आज इस मंत्र से करें मां का पूजन, मिलेगा लाभ
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
यह है शुभ रंग
नवरात्र के छठे दिन लाल रंग के वस्त्र पहनें। यह रंग शक्ति का प्रतीक होता है। मां कात्यायी को मधु यानी शहद युक्त पान बहुत पसंद है। इसे प्रसाद स्वरूप अर्पण करने से देवी अति प्रसन्न होती हैं।