Shiv Sena Crisis: किसान नगर और कला नगर की अदावत, एकनाथ शिंदे-उद्धव ठाकरे के रिश्ते को ऐसे समझिए

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Shiv Sena Crisis: किसान नगर और कला नगर की अदावत, एकनाथ शिंदे-उद्धव ठाकरे के रिश्ते को ऐसे समझिए

मुंबई: महाराष्ट्र (Maharashtra) की सियासत में इन दिनों एक ही शख्स की चर्चा है और वह हैं शिवसेना (Shivsena) के बागी नेता एकनाथ शिंदे। फिलहाल एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे देश की सियासत में छाए हुए हैं। लेकिन एकनाथ शिंदे ने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया? इसके पीछे भी एक अलग कहानी है। दरअसल शिंदे उस जगह से आते हैं जो कभी दिवंगत धर्मवीर आनंद दिघे का गढ़ था। एकनाथ शिंदे, आनंद दिघे को अपना गुरु और मेंटर मानते हैं। कहा जाता है कि उनके नक्शे कदम पर ही वह आज भी चल रहे हैं। महाराष्ट्र की सियासत में एकनाथ शिंदे को आनंद दिघे (Anand Dighe) का वारिस भी माना जाता है। इसके अलावा एकनाथ शिंदे ने अपना हाव भाव, हुलिया और दाढ़ी बिल्कुल उसी अंदाज में रखते हैं जैसे कभी आनंद दिघे रखा करते थे। आनंद दिघे के बारे में कहा जाता है कि उनके द्वारा लिए फैसलों में खुद बालासाहेब ठाकरे भी हस्तक्षेप नहीं करते थे। खासतौर पर ठाणे जिले से जुड़े मसलों पर।

एकनाथ शिंदे के बारे में तो हम सब देख और सुन रहे हैं। लेकिन आज हम आपको शिंदे के राजनीतिक गुरु आनंद दिघे के बारे में। कैसे पहले भी मातोश्री में बाल ठाकरे और ठाणे के किसान नगर से ठाणे पर राज करने वाले आनंद दिघे के बीच में कैसे पावर शेयरिंग होती थी।

दिघे की वजह से ठाणे में शिवसेना की सत्ता बनी
महाराष्ट्र की सियासत में शिवसेना की स्थापना के बाद ठाणे शहर में पहली बार शिवसेना ने सत्ता का स्वाद चखा था। शिवसेना सत्ता में आए, उसका महापौर बने। इसके लिए दिवंगत एक आनंद दिघे ने काफी मेहनत की थी। यह उन्हीं की मेहनत का नतीजा है कि ठाणे का आज भी शिवसेना का वर्चस्व है। इस जीत के बाद से आनंद दिघे का कद लगातार बढ़ता चला गया। एक समय ऐसा भी आया जब उनकी तुलना शिवसेना बाल ठाकरे के बराबर होने लगी थी।

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राजनीतिक विश्लेषक अशोक वानखेड़े ने नवभारत टाइम्स ऑनलाइन को बताया कि एक समय शिवसेना में 2 पावर सेंटर हुआ करते थे। एक बांद्रा का मातोश्री था तो दूसरा ठाणे जिले में धर्मवीर आनंद दिघे का आनंद आश्रम। महाराष्ट्र के वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार सचिन परब ने भी एनबीटी ऑनलाइन को बताया कि अधिकारिक रूप से हम आनंद दिघे और बालासाहेब ठाकरे के बीच में किसी भी प्रकार की रंजिश का जिक्र नहीं मानते। हालांकि यह बात हर कोई जानता है कि आनंद दिघे, बालासाहेब ठाकरे को अपना गुरु और भगवान मानते थे।

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हालांकि यह भी सच है कि आनंद दिघे का ठाणे और आसपास के इलाकों को लेकर एक गहरा लगाव था। इस बात को बालासाहेब भी बखूबी समझते थे। दिघे यह चाहते थे कि मातोश्री की तरफ से भी कभी ठाणे और आसपास के जिलों में उनके फैसलों पर उंगली ना उठाई जाए। या उनको बताए बिना पार्टी कोई फैसला करे। इस संदर्भ बालासाहेब ठाकरे ने भी कभी आनंद दिघे की अनदेखी नहीं की ।

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…तो शिंदे का भी आनंद दिघे वाला हश्र होता
शिवसेना में तकरीबन 40 गुजारने वाले मौजूदा केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता नारायण राणे ने बीते दिनों एक अहम ट्वीट किया। इसके अलावा उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कुछ बड़ी बातें कहीं। उन्होंने कहा कि एकनाथ शिंदे यदि बगावत नहीं करते तो उनका भी आनंद दिघे के जैसा ही हाल होता। राणे यहीं नहीं रुके, उन्होंने यह भी कहा कि आनंद दिघे की जब मौत हुई तो उसके पहले ही मातोश्री के दरवाजे उनके लिए बंद कर दिए गए थे।

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उन्होंने यह भी कहा कि आनंद दिघे को शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे से मिलने के लिए इजाजत भी नहीं दी जाती थी। राणे ने यह भी कहा कि इसी वजह से आनंद दिघे पर बनी धर्मवीर फिल्म को भी उद्धव ठाकरे बीच में ही छोड़कर चले आए थे। वह इस फिल्म का क्लाइमेक्स नहीं देखना चाहते थे।

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धर्मवीर फ़िल्म में भी बगावत दिखाई गई
हाल में दिवंगत आनंद दिघे को लेकर बनाई गई फिल्म धर्मवीर में भी आनंद दिघे को बालासाहेब ठाकरे के समकक्ष ही दिखाने का प्रयास किया गया। फिल्म में यह भी दिखाया गया कि किस तरह से उन्होंने अपने ही गुरु बालासाहेब ठाकरे के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था। जब उन्हें यह लगा कि ठाणे जिले के संदर्भ में उनके द्वारा लिए गए फैसले को लेकर मातोश्री की तरफ से दखलंदाजी की जा रही है। फ़िल्म में यह भी दिखाने का प्रयास हुआ कि शिवसेना में मातोश्री के बाद दूसरा पावर सेंटर मुंबई से सटा ठाणे जिला था। जिसकी कमान आनंद दिघे के हाथ में थी।

कौन थे आनंद दि‍घे?
श‍िवसेना में आनंद दि‍घे का कद इतना बड़ा था क‍ि उन्‍हें लोग ठाणे का ठाकरे कहते थे। बालासाहेब ठाकरे के बाद उन्‍हें श‍िवसेना का सबसे कद्दावार और दबंग नेता कहा जाता था। 27 जनवरी 1951 को जन्‍मे दिघे पर श‍िवसेना के कार्यकर्ता की हत्‍या का आरोप लगा था। इसकी वजह से वे श‍िवसेना से नाराज भी थे। बाद में उन्‍होंने कई मौकों पर कांग्रेस का साथ दिया। उन्‍हें टाडा के तहत भी ग‍िरफ्तार किया गया था। बाद में जमानत पर रिहा हुए।

साल 2001 के अगस्‍त महीने में कार एक्‍सीडेंट में वे घायल हो गये थे। इलाज के दौरान उनकी मौत हो जाती है। श‍िवसेना ने आरोप लगाया था क‍ि इजाज में लापरवाही के कारण उनकी मौत हुई। नाराज कार्यकर्ताओं ने पूरे अस्‍पताल को आग के हवाले कर दिया था।

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