Opinion: उमा भारती का दुख दूर करेगी बीजेपी या फिर बेकार जाएगी उनकी धमकी

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Opinion: उमा भारती का दुख दूर करेगी बीजेपी या फिर बेकार जाएगी उनकी धमकी

भोपालःउमा भारती दुखी हैं। अपनी पार्टी से और अपनी पार्टी की सरकार से। वे काफी समय से इसके संकेत भी दे रही हैं, लेकिन कहीं असर नहीं हो रहा। अब उनका दर्द खुलकर सामने आ गया है। उमा ने कहा है कि सरकार वे बनाती हैं, चलाता कोई और है। उमा दरअसल ये बताना चाह रही हैं कि उनके कामों का श्रेय उन्हें नहीं मिलता। उन्होंने यह बयान तो केन-बेतवा लिंक परियोजना को मंजूरी पर खुशी जताते हुए दिया है, लेकिन उनकी यह शिकायत साल 2004 से ही चली आ रही है जब उन्हें एक साल से भी कम समय तक पद पर रहने के बाद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी।

साल 2003 में जब एमपी में बीजेपी की सरकार बनी थी, तब पार्टी का नेतृत्व उमा भारती के ही हाथों में था। विधानसभा चुनावों में वे पार्टी की मुख्य प्रचारक थीं। लगातार 10 साल तक मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय के सामने बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश किया था। कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने में उनकी भूमिका सबसे महत्वपूर्ण थी। उन्हें इसका ईनाम भी मिला और 8 दिसंबर, 2003 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन करीब नौ महीने बाद ही उन्हें पद छोड़ना पड़ा। पहले बाबूलाल गौर और फिर शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने। उमा का नंबर दोबारा नहीं आया।

अगस्त, 2004 में उमा भारती को मुख्यमंत्री का पद ही नहीं गंवाना पड़ा, इसके बाद परिस्थितियां ऐसी बदलीं कि उन्हें बीजेपी से भी बाहर होना पड़ा। उन्होंने भारतीय जनशक्ति पार्टी बनाई और चुनाव भी लड़ा था। चुनावों में करारी हार के बाद वे बीजेपी की वापसी के लिए जोर लगाती रहीं, लेकिन विरोदी इसमें भी अड़ंगा लगाते रहे। काफी मशक्कत के बाद पार्टी में पुनर्वापसी हुई, लेकिन प्रदेश की राजनीति में जगह नहीं बन पाई। वे उत्तर प्रदेश में विधायक बनीं। फिर सांसद बनीं और केंद्र में मंत्री भी रहीं, लेकिन 2019 में लोकसभा का टिकट नहीं मिला। तब से वे नई जिम्मेदारी का इंतजार कर रही हैं।

उमा एमपी की राजनीति में लौटना चाहती हैं। पार्टी का ध्यान खींचने के लिए वे समय-समय पर शराबबंदी और अन्य मुद्दों पर बयान देती रहती हैं, लेकिन कोई ध्यान तक नहीं देता। अब तो विरोधी भी कहने लगे हैं कि वे केवल धमकी देती हैं, इस पर अमल नहीं करतीं। उमा भारती का दुख दरअसल यही है। पार्टी में उनकी पूछ नहीं रही और अब विपक्षी भी उन्हें तवज्जो नहीं दे रहे।

शायद यही कारण है कि उमा बीजेपी में अपनी अनदेखी की खुलेआम चर्चा करने लगी हैं। इतना ही नहीं, उन्हें अपने किए कामों को याद भी दिलाना पड़ रहा है। टीकमगढ़ में अपने ताजा बयान में उन्होंने यही कहा भी है। उमा ने कहा कि उनके साथ यह सुखद संयोग होता रहता है कि काम वे करती हैं और क्रेडिट कोई और ले जाता है।

उमा ने कहा कि ललितपुर और सिंगरौली के बीच रेल लाइन के लिए उन्होंने जोरदार तरीके से आवाज उठाई थी, लेकिन जब इसका शिलान्यास हुआ तो वे बीजेपी से बाहर थीं और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। जब इसका उद्घाटन हुआ तब बीजेपी के लोगों ने उनका नाम तक नहीं लिया। केन-बेतवा लिंक परियोजना का जब शिलान्यास होगा, तब भी उनका नाम नहीं लिया जाएगा। इसमें प्रोटोकॉल की समस्या आएगी। इसलिए वे प्रोजेक्ट को मंजूरी मिल जाने से ही खुश हैं।

उमा ने इसके साथ 2024 में चुनाव लड़ने का ऐलान कर यह जता दिया है कि अब वे चुप बैठने वाली नहीं हैं। उनका यह बयान जितनी उनकी पीड़ा है, उससे कहीं ज्यादा पार्टी नेतृत्व के लिए चेतावनी है। अब तक की उनकी चेतावनियों का खास असर नहीं हुआ। देखना यह है कि इस बार पार्टी का क्या रवैया होगा।

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