जानें मुंशी प्रेमचंद अपना राजनीतिक गुरु किसे मानते थे

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मुंशी प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद

जानें मुंशी प्रेमचंद अपना राजनीतिक गुरु किसे मानते थे

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई , 1880 को हुआ था. ये हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे. भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के लमही ग्राम में जन्मे प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था. आरंभ में वे उर्दू की पत्रिका ‘जमाना’ में नवाब राय के नाम से लिखते थे.पहले कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ पर अंग्रेज सरकार द्वारा जब्त किए जाने तथा लिखने पर प्रतिबंध लगाने के बाद वे प्रेमचंद के नए नाम से लिखने लगे.अब जानते हैं कि इनके राजनैतिक गुरू कौन थे.

मुंशी प्रेमचंद
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आपको बता दें कि प्रारंभिक दिनों में मुंशी प्रेमचंद तिलक के समर्थक थे. तिलक कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे थे. तिलक एक ऐसे रूझान के प्रतिनिधि थे जो यह सोचते थे कि हिंदू कट्टरता और जाति व्यवस्था की रक्षा करके तथा ‘पश्चिमीकरण’ का विरोध करके ही अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई चलाई जा सकती है. उनका विचार था कि दलित जातियाँ अपने नीचे के स्थान को स्वीकार कर चलेंगी. लेकिन महाराष्ट्र तथा अन्यत्र गैर-ब्राह्मण आन्दोलन के उठ खड़े होने से खुद उनके जीवन-काल में ही उनका भ्रम टूट गया.

मुंशी प्रेमचंद
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अगर राजनैतिक गरू की बात करें तो मुंशी प्रेमचंद महात्मा गांधी के एक निष्ठावान अनुयायी थे. राष्ट्रीय आंदोलन में प्रेमचंद महात्मा गांधी जी को सबसे विश्वासयोग्य नेता मानते थे. सामाजिक मामलों में तिलक से काफी आगे होने तथा छुआछूत के खिलाफ बहुत ही उत्तेजना के साथ प्रतिवाद करने के बावजूद 1921 में महात्मा ने खुद को एक सनातनी हिंदू घोषित किया था. उन्होंने कहा था कि “मैं सनातनी हिंदू हूँ,” क्योंकि

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  1. मैं वेद , उपनिषद , पुराण और समस्त हिंदू शास्त्रों में विश्वास करता हूँ औ इसलिए पुनर्जन्म तथा अवतारों में भी मेरा विश्वास है.
  2. मैं वर्णाश्रम धर्म में विश्वास करता हूँ- उस रूप में, जो मेरी राय में सर्वथा बेद सम्मत रूप है, न कि उसके मौजूदा प्रचलित और भौंडे रूप में.
  3. मैं प्रचलित अर्थ से कहीं अधिक व्यापक अर्थ में गो-रक्षा में विश्वास करता हूँ.
  4. मूर्ति पूजा में मुझें अविश्वास है.
    ये मुंशी प्रेमचंद के राजनैतिक गुरू का दृष्टीकोण था. जिसे प्रेमचंद बहुत प्रभावित थे.
    तो हम ये कह सकते हैं कि मुंशी प्रेमचंद के राजनैतिक गुरू महात्मा गांधी जी थे. (प्रेमचंद: विगत महत्ता और वर्तमान अर्थवत्ता किताब से लिया गया )

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