Mukesh Ambani vs Govt: मुकेश अंबानी ने आखिर सरकार के खिलाफ क्यों खोल रखा है मोर्चा?

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Mukesh Ambani vs Govt: मुकेश अंबानी ने आखिर सरकार के खिलाफ क्यों खोल रखा है मोर्चा?

Mukesh Ambani vs Govt: मुकेश अंबानी ने आखिर सरकार के खिलाफ क्यों खोल रखा है मोर्चा?


नई दिल्ली: देश के दूसरे सबसे बड़े रईस मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और सरकार के बीच एक मुद्दे पर ठनी हुई है। यह मामला केजी-डी6 बेसिन से गैस एक्सप्लोरेशन से जुड़ी कॉस्ट रिकवरी से संबंधित है। रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) ने इस मामले में सरकार को इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन में घसीटा था। गैस उत्पादन में ब्रिटेन की बीपी एक्सप्लोरेशन (BP Exploration) और कनाडा की निको रिसोर्सेज (Niko Resources) रिलायंस की साझीदार कंपनियां हैं। सरकार का आरोप है कि इन कंपनियों ने केजी बेसिन से लक्ष्य से कम गैस का उत्पादन किया। इस कारण सरकार ने उन्हें एक्सप्लोरेशन कॉस्ट देने से इनकार कर दिया था। इसके खिलाफ रिलायंस ने इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन शुरू किया था। सरकार ने इसे रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।

सरकार की तरफ से पेश वकील ए के गांगुली ने कहा कि दोनों विदेशी आर्बिट्रेटर भारत के प्रति पूर्वाग्रह रखते हैं। उन्होंने जो ऑर्डर दिए हैं, उससे यह बात साबित होती है। इस मामले में ऑस्ट्रेलिया की पूर्व जज माइकल किर्बी और ब्रिटेन के पूर्व जज सर बर्नार्ड रिक्स विदेशी आर्बिट्रेटर हैं। इस आर्बिटल ट्रिब्यूनल में पूर्व सीजेआई वी एन खरे केंद्र के नॉमिनी हैं। गांगुली की शिकायत थी कि इस ट्रिब्यूनल ने प्रॉसीडिंग के दौरान रिलायंस के गवाहों से पूछताछ के लिए सरकार को कम समय दिया जबकि सरकारी गवाहों से पूछताछ के लिए रिलायंस को ज्यादा समय दिया गया।

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सरकार का तर्क

इस मामले में सरकार ने पहले दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया था लेकिन उसने आर्बिट्रेशन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इसके खिलाफ केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी लेकिन वहां भी उसे राहत नहीं मिली। इससे पहले रिलायंस ने अपने वकील हरीश साल्वे के जरिए कोर्ट को बताया था कि आर्बिट्रेशन की प्रक्रिया 2011 में शुरू की गई थी लेकिन इतने साल बाद भी यह चल रही है। हाल-फिलहाल इसके खत्म होने की उम्मीद नहीं दिख रही है। सरकार इसे रोकने के लिए पूरा प्रयास कर रही है।

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रिलायंस ने 2009 में केजी-डी6 ब्लॉक के धीरूभाई अंबानी 1 और 3 गैस फील्ड्स से उत्पादन शुरू किया था लेकिन एक साल बाद ही उत्पादन अनुमान से कम होना शुरू हो गया था। कंपनी ने फरवरी 2020 में इससे उत्पादन बंद कर दिया। सरकार का कहना था कि कंपनी ने मंजूर डेवलपमेंट प्लान के मुताबिक काम नहीं किया। सरकार ने तीन अरब डॉलर से अधिक एक्सप्लोरेशन कॉस्ट देने से इनकार कर दिया। कंपनी ने इसका विरोध किया और सरकार को आर्बिट्रेशन में घसीट लिया।

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