MCD चुनावः कभी थे हजारों चाहने वाले, अब न रमेश दत्ता रहे और न ही उनकी सीट…

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MCD चुनावः कभी थे हजारों चाहने वाले, अब न रमेश दत्ता रहे और न ही उनकी सीट…

MCD चुनावः कभी थे हजारों चाहने वाले, अब न रमेश दत्ता रहे और न ही उनकी सीट…

नई दिल्लीः राजधानी में एमसीडी चुनावों का प्रचार आज खत्म हो जाएगा। ऐसे में सियासत में दिलचस्पी रखने वालों को रमेश दत्ता याद आ रहे हैं। वे पहली बार मिंटो रोड सीट से नगर निगम का चुनाव 1971 में जीते थे। उसके बाद वे मिंटो रोड सीट से अजेय रहे। उनका करीब 2 साल पहले निधन हो गया था। वे डिप्टी मेयर भी रहे। उनके राजनीतिक कद और जनता के बीच प्रभाव का अंदाजा इस बात से नहीं लगाया जा सकता कि वे सांसद या मंत्री नहीं रहे। उनके दिल्ली में हजारों दोस्त, चाहने वाले और समर्थक थे। मिंटो रोड इस चुनाव में दिल्ली गेट सीट का हिस्सा हो गया है। यानी न रमेश दत्ता रहे और न ही उनकी सीट। एमसीडी से लेकर लोकसभा के चुनाव के वक्त उनके मिंटो रोड के टैगोर रोड वाले घर में राजनीतिक गहमा-गहमी शुरू हो जाती थी। कांग्रेस के सैकड़ों कार्यकर्ता उनके घर में चुनाव तैयारियों में भाग लेने के लिए आते-जाते थे। पर अब वहां पर सिर्फ सन्नाटा है और शेष हैं रमेश दत्ता की यादें। रमेश दत्ता ने अपने पहले नगर निगम के चुनाव में जनसंघ के दिग्गज नेता नकुल भार्गव को हराया था। वे फकीर किस्म के शख्स थे। उन्होंने सिर्फ समाज को दिया ही। उनके पास अपने लिए फूटी कौढ़ी भी नहीं थी।

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कूचा पाती राम का वो यादगार चुनाव
दिल्ली नगर निगम चुनाव की हलचल को देखना है तो दिल्ली-6 हो आइए। पान और चाय की दुकानों में अखंड चुनावी चर्चाएं जारी हैं। इस चर्चा में कुछ पुराने-तपे हुए राजनीतिक कार्यकर्ता याद कर रहे हैं 1983 का कूचा पाती राम का निगम चुनाव। उस चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार हरि चंद वर्मा और जनता पार्टी के सतीश चंद्र खंडेलवाल आमने-सामने थे। हालांकि दोनों मित्र थे पर सियासत में दोनों के अलग रास्ते थे। वर्मा ओजस्वी वक्ता भी थे। दोनों पक्षों की तरफ से घमासान चुनाव प्रचार चला था। वर्मा की तरफ से स्वाधीनता सेनानी और चांदनी चौक से सांसद रहीं सुभद्रा जोशी, सज्जन कुमार, एचकेएल भगत, जय प्रकाश अग्रवाल वगैरह प्रचार कर रहे थे। खंडेलवाल की तरफ से विजय कुमार मल्होत्रा और मदन लाल खुराना की सरपरस्ती में कैंपेन चला। खंडेलवाल निवर्तमान निगम के डिप्टी मेयर भी थे। इसलिए उन्हें हैवीवेट कैंडिडेट माना जा रहा था। पर नतीजा चौंकाने वाला आया। हरिचंद वर्मा की जीत हुई। हालांकि चुनाव नतीजे आने के बाद वर्मा और खंडेलवाल पहले की तरह मिलने-जुलने लगे। वर्मा का कुछ साल पहले निधन हो गया था।

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जब राम बाबू शर्मा बने निगम पार्षद
रामबाबू शर्मा को यमुना पार की राजनीति में एचकेएल भगत के बाद सबसे असरदार नेता माना जाता रहा है। वे 1997 में पहली बार निगम का चुनाव नंद नगरी से लड़े और जीते। ये कभी समझ नहीं आया कि उन्हें कांग्रेस ने 1992 में टिकट क्यों नहीं दिया था। बहरहाल, 1997 के चुनाव के वक्त कहा जा रहा था कि ‘राम बाबू का कद बढ़ा है और पद छोटा।’ उनकी जीत को लेकर किसी को कोई शक नहीं था। उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार ईश्वर सिंह यादव को हराया। निगम पार्षद बनने से पहले ही राम बाबू शर्मा के शाहदरा वाले घर में रोज दर्जनों लोग अपने काम के सिलसिले में आते थे। वे युवा कांग्रेस में पहले से ही सक्रिय नेता थे। राम बाबू शर्मा अपने करीबियों को कहा करते थे, ‘मुझे कभी आजमा लेना।’ राम बाबू शर्मा 1997 में भी आराम से नंद नगरी से जीते थे। वे निगम की स्थायी समिति के अध्यक्ष बने, पर उन्होंने फिर दिल्ली विधानसभा का चुनाव रोहतास नगर से लड़ा और जीता। समाज सेवी सुशील तिवारी कहते हैं कि दिन-रात जनता के बीच में रहने वाले राम बाबू जैसा नेता अब पैदा नहीं होते।

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