बैंगलूरू में पत्रकार गौरी लंकेश को गोलियों से भूना, सड़क से सोशल मीडिया तक में ऊबाल

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कर्नाटक की राजधानी बैंगलूरू में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई, खबर के मुताबिक हमलावरों ने उनपर 4 गोलियां चलाईं जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई। रात के वक्त जब वो कार से उतर कर अपने घर का दरवाजा खोल रही थीं तभी कुछ बाइक सवार हमलावरों ने उन्हें गोली मारी। मामले में अबतक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है, पुलिस का कहना है कि हमने जांच के लिए तीन टीम बनाई है। राज्य की सभी सीमाएं सील कर दी गई हैं।

 

इस हत्या को लेकर पूरा देश गुस्से में है। सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक लोगों में उबाल है। बता दें कि गौरी लंकेश कन्नड़ भाषा की साप्ताहिक पत्रिका ‘लंकेश पत्रिके’ की संपादक थी। 55 साल की लंकेश को दक्षिणपंथ विचारधारा के प्रखर आलोचक के रूप में जाना जाता था। उन्हें लेफ्ट विचारधारा के समर्थक के रूप में जाना जाता था। लंकेश विभिन्न अखबारों में भी लिखा करती थीं, वहीं वो टीवी न्यूज चैनलों के डिवेट में भी एक्टिविस्ट के रूप में हिस्सा लिया करती थीं।

पहले से भी मिली थी जान से मारने की धमकी

अपनी पत्रिका में हिंदुत्ववादी विचारधारा की आलोचक और सोशल मीडिया में बेबाक तरीके से अपनी बातों को रखने वाली गौरी लंकेश को पहले भी कई बार फोर और सोशल मीडिया के माध्यमे से जान से मारने की धमकी दी गई थी, जिसे उन्होंने लोगों के साथ साझा भी किया था। लेकिन वो डरी नहीं और अपनी बातों को दृढ़ता के साथ रखती रहीं।

 

मानहानी केस में दोषी ठहराया गया था  

बीजेपी नेता प्रहलाद जोशी की एक मानहानि की याचिका पर कोर्ट ने गौरी लंकेश को साल 2016 में दोषी ठहराया था। बता दें कि लंकेश पर प्रहलाद जोशी ने ये आरोप लगाया था कि लंकेश अपनी पत्रिका में बीजेपी नेता के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से द्वेषपूर्ण बातें लिखती हैं।

हत्या के पीछे हो सकते हैं तीन कारण

 

  • हो सकता है कि हिंदूत्ववादी विचारधारा का प्रखर विरोधी होने के कारण कट्टरपंथियों ने उनकी हत्या की हो।
  • हाल के ही महिनों में गौरी लंकेश ने तीन नक्सलियों को हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में लौटने में मुख्य भूमिका अदा की थी, यही नहीं उन्होंने नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने की जैसे एक मुहिम चला रखी थी। इस को लेकर वो नक्सलियों के संपर्क में भई रहती थीं। हो ना हो इस कारण उनसे झल्लाए नक्सलियों ने उनकी हत्या कर दी हो।
  • तीसरा ये कि दक्षिण पंथियों को बदनाम करने के लिए हो ना हो किसी तीसरे ने उनकी हत्या करवा दी हो, ताकि शक हिंदूत्ववादियों के ऊपर जाए और वो बदनाम हो जाएं। इसके माध्यमे से सियासी फायादा उठाने की कोशिश की गई हो।

खैर जो भी हो ये तो जांच के बाद ही पता चलेगा। लेकिन हमारे देश में अगर इसी तरह से पत्रकारों की हत्या होती रही तो, लोकतंत्र की ताकत दूर्बल हो जाएगी, क्योंकि हमें नहीं भूलना चाहिए लोकतंत्र रूपी इस खाट का ये चौथा पौवा (स्तंभ) पत्रकार और पत्रकारिता ही है।