जानिए उत्तराखंड में कितनी भाषाएं बोली जाती है

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जानिए उत्तराखंड में कितनी भाषाएं बोली जाती है

उत्तराखंड में गढ़वाली और कुमाऊँनी दो प्रमुख क्षेत्रीय भाषाएं है, शायद ही लोग जानते होगें कि यहां पर सबसे अधिक हिन्दी भाषा ही बोली जाती है. और गढ़वाल में अलग-अलग बोलियां बोली जाती है. ठीक इसी तरह कुमाऊं में भी बोली जाती है. चलिए हम आपको ऐसी ही कुछ बोलियों के बारे में बताते है, जो गढ़वाल और कुमाऊं में बोली जाती है. बता दें की उत्तराखंड में कुल 13 भाषाएं बोली जाती है.


इन 13 भाषाओं में गढ़वाली, कुमांउनी, जौनसारी, जौनपुरी, जोहारी, रवांल्टी, बंगाड़ी, मार्च्छा, राजी, जाड़, रंग ल्वू, बुक्साणी और थारू शामिल हैं. यह सभी जानते है कि उत्तराखंड में दो मंडल हैं. एक गढ़वाल और दूसरा कुमांऊ इन दोनों की अपनी अलग-अलग भाषाएं हैं. जो इस प्रकार है.


गढ़वाली
गढ़वाल मंडल के सातों​ जिले पौड़ी, टिहरी, चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, देहरादून और हरिद्वार गढ़वाली भाषी लोगों के मुख्य क्षेत्र हैं. गढ़वाली का अपना शब्द भंडार है जो काफी विकसित है.


कुमांउनी
कुमांऊ मंडल के छह जिलों नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत और उधमसिंह नगर में कुमांउनी बोली जाती है. वैसे इनमें से लगभग हर जिले में कुमांउनी का स्वरूप थोड़ा बदल जाता है. लोग गढ़वाली और कुमांऊनी दोनों ही भाषा को बोल और समझ लेते हैं. कुमाउं में कुछ दस उप भाषाएं बोली जाती है. जिन्हें पूर्वी और पश्चिमी दो वर्गों में बांटा गया है.

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जौनसारी
गढ़वाल मंडल के देहरादून जिले के पश्चिमी पर्वतीय क्षेत्र को जौनसार भाबर कहा जाता है. यहां पर जौनसारी भाषा बोली जाती है. यह भाषा मुख्य रूप से तीन तहसील चकराता, कालसी और त्यूनी में बोली जाती है.


जौनपुरी

टिहरी जिले के जौनपुर विकासखंड में इस भाषा का प्रयोग किया जाता है. टिहरी रियासत के दौरान काफी पिछड़ा क्षेत्र रहा है. लेकिन इससे यहां की अलग संस्कृति और भाषा भी विकसित हुई है.


रवांल्टी
उत्तरकाशी जिले के पश्चिमी क्षेत्र को रवांई कहा जाता है. यह यमुना और टौंस नदियों की घाटियों तक फैला हुआ है. जहां से गढ़वाल के 52 गढ़ों में से एक राईगढ़ स्थित था, जिसके कारण इसका नाम रवांई पड़ा है. इस क्षेत्र में गढ़वाली भाषा बोली जाती है और अन्य क्षेत्रों में भिन्न भाषा बोली जाती है.


जाड़
उत्तरकाशी जिले के जाड़ गंगा घाटी में रहने वाले लोग जाड़ जनजाति के है और जाड़ भाषा ही बोली जाती है. यहां पर उत्तरकाशी के जादोंग, निलांग, हर्षिल, धराली, भटवाणी, डुंडा, बगोरी आदि में इस भाषा के लोग मिल जाएंगे. ये सभी जाड़ भोटिया जनजाति का ही एक अंग है.


बंगाणी
उत्तरकाशी जिले के मोरी तहसील के अंतर्गत पड़ने वाले क्षेत्र को बंगाण कहा गया है. इसमें मासमोर, पिंगल तथा कोठीगाड़ सामिल है. जिनमें बंगाणी बोली जाती है.


मार्च्छा
गढ़वाल मंडल के चमोली जिले की नीति और माणा घाटियों में रहने वाली भोटिया जनजाति मार्च्छा और तोल्छा भाषा बोलती है. इतना ही नहीं इस भाषा के तिब्बती में कई शब्द मिलते हैं.


जोहारी
यह भी भोटिया जनजाति की एक भाषा है ​जो पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी क्षेत्र में बोली जाती है.


थारू
उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के तराई क्षेत्रों, नेपाल, उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्राों में ​थारू जनजाति के लोग रहते हैं. कुमांऊ मंडल में यह जनजाति मुख्य रूप से उधमसिंह नगर के खटीमा और सितारगंज विकास खंडो में रहती है. यहां पर मौजूद सभी लोग थारू भाषा बोलते है.


बुक्साणी
कुमाऊं से लेकर गढ़वाल तक तराई की पट्टी में रहने वाले लोग बुक्साणी भाषा को बोलते है. इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से काशीपुर, बाजपुर, गदरपुर, रामनगर, डोईवाला, सहसपुर, बहादराबाद, दुगड्डा, कोटद्वार आदि शामिल हैं.


रंग ल्वू
कुमांऊ में मुख्य रूप से पिथौरागढ़ की धारचुला तहसील के दारमा, व्यास और चौंदास पट्टियों में रंग ल्वू भाषा बोली जाती है. इसे तिब्बती बर्मी भाषा का अंग माना जाता है.

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राजी
राजी कुमांऊ के जंगलों में रहने वाली जनजाति थी. यह नेपाल की सीमा से सटे उत्तराखंड़ के पिथौरागढ़ के लोगो की भाषा राजी होती है, लेकिन यह भाषा अब वहां से खत्म होती जा रही है. क्योंकि वहां पर इस भाषा को लोग बहुत कम इस्तेमाल करते है.