Flashback: मदन लाल खुराना जब पहाड़गंज से जीते थे MCD चुनाव
कब छोड़ा मदनलाल खुराना ने पहाड़गंज
मदन लाल खुराना ने 1967 के बाद फिर कभी दिल्ली नगर निगम के लिए चुनाव नहीं लड़ा। फिर वे महानगर परिषद के मोती नगर सीट से निर्वाचित हुए थे। वे पहाड़गंज से मोतीनगर शिफ्ट कर गए थे। खुराना जी की संगठन की क्षमताओं का पहली बार पता चला 1977 में। देश से 19 महीनों के बाद इमरजेंसी हटा ली गई थी। जेलों में बंद विपक्ष के नेता छूट गए थे और लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। खुराना भी जेल से रिहा होकर आए थे। खुराना सदर बाजार सीट से जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़े और जीते। वे ही उन दिनों जनता पार्टी के नेताओं की रामलीला मैदान से लेकर बोट क्लब में होने वाली बड़ी सभाओं की व्यवस्था करते। हर सभा में गजब की जन भागेदारी रहती। वे घर-घर जाकर लोगों को बड़ी सभाओं में शामिल होने का आहवान करते। दिल्ली की पंजाबी और वैश्य बिरादरी में उनकी कमाल की पकड़ थी। ये ही दोनों वर्ग जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े समर्थक थे। मदन लाल खुराना को दर्जनों बार दिल्ली बंद करवाने का भी श्रेय जाता है। पंजाब में आतंकवाद के दौर में जब भी कोई बड़ी घटना होती तो वे दिल्ली बंद का आह्वान कर देते। मजाल है कि उनका बंद कभी असफल रहा हो। वो उनके संगठन पर पकड़ का ही कमाल था। उनके बंद के आह्वान के चलते दिल्ली में जिंदगी थम जाती थी, बाजार बंद हो जाते।
जब किया सिखों का बचाव
मदन लाल खुराना ने दिल्ली में 1984 में इंदिरा गांधी की नृशंस हत्या के बाद भड़के सिख विरोधी दंगों के दौरान अपने गढ़ मोतीनगर को दंगाइयों से दूर रखा। करोल बाग से लेकर राजौरी गार्डन तक कहीं कोई दंगे नहीं हुए। जब दंगे भड़के हुए थे तो वे 1 नवंबर, 1984 को सुबह अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने उनके 6, रायसीना रोड़ के आवास पर गए। वे और अटल बिहारी वाजपेयी बंगले के बाहर खड़े होकर किसी मसलेपर बात कर रहे थे। तब दोनों ने देखा कि प्रेस क्लब से सटे टैक्सी स्टैंड के सिख ड्राइवरों को मारने के लिए कुछ गुंडे खड़े हैं। वे उन ड्राइवरों से लड़ रहे हैं। बस, तब ही दोनों टैक्सी स्टैंड पर पहुंच गए। उनके वहां पर पहुंचते ही मौत के सौदागर चलते बने। उस भीड़ ने अटल जी को तुरंत पहचान लिया था। दोनों ने भीड़ को खरी-खरी सुनाई भी। खुराना जी उसी शाम को अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, विजय कुमार मल्होत्रा वगैरह के साथ गृह मंत्री पी.वी.नरसिंह राव से मिले। उनसे गुजारिश की कि वे दिल्ली को बर्बाद होने से बचा लें। उस भयानक दौर में वे दिन-रात दिल्ली के चप्पे-चप्पे में जाकर दंगों में तबाह हुए सिखों के पुनर्वास की व्यवस्था कर रहे थे।