Explained: सरकार देने जा रही जनजातीय का दर्जा, जानें कौन हैं हिमाचल प्रदेश का हाटी समुदाय और क्यों कर रहे ST की मांग?

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Explained: सरकार देने जा रही जनजातीय का दर्जा, जानें कौन हैं हिमाचल प्रदेश का हाटी समुदाय और क्यों कर रहे ST की मांग?

शिमला : हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने दावा किया है कि हाटी समुदाय के लोगों को जनजातीय दर्जा दिए जाने की वर्षों पुरानी मांग पूरी होने वाली है। सरकार के फैसले के बाद अब जल्द ही हाटी समुदाय के करीब तीन लाख लोगों को जनजातीय दर्जा मिल सकता है। 1967 से हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा और गिरि पार क्षेत्र को अनुसूचित जनजातीय क्षेत्र घोषित किए जाने की मांग उठती रही है लेकिन यह मामला मानव जाति विज्ञान संबंधी शोध यानी एथनोग्राफिक स्टडी सहित अन्य विभिन्न तकनीकी खामियों की वजह से टलता रहा।

1967 में ही उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र को अनुसूचित जनजाति क्षेत्र घोषित कर दिया गया था लेकिन उससे सटे हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के लोगों को इसका लाभ नहीं मिला। तभी से इसी तर्ज पर हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा दिए जाने की मांग उठती रही है। जौनसार बावर क्षेत्र उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, हाटी समुदाय के लोगों की संख्या ढाई लाख के करीब थी लेकिन अब यह तीन लाख हो गई है।

जौनसार बाबर और को जनजाति का दर्जा
1815 में सिरमौर रियासत से अलग होने वाला जौनसार बाबर को 1967 में केंद्र सरकार ने जनजाति का दर्जा दिया था। जौनसार बाबर और सिरमौर के गिरिपार की लोक संस्कृति, लोक परंपरा, रहन-सहन एक तरह का है। इनके गांवों के नाम और भाषा में भी समानता है। गिरिपार क्षेत्र में दुर्गम पहाड़ पर उत्तराखंड की सीमा से सटा एक छोटा सा गांव है शरली। बीच में टौंस नदी और सामने है उत्तराखंड के जोंसार बाबर क्षेत्र का सुमोग गांव।

दोनों ही गांवों के लोगों की बोली, पहनावा, परंपराएं, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज एक जैसा है। टौंस नदी के उस पार जौनसार समुदाय को एसटी का दर्जा है और इस पार हाटी समुदाय जनजातीय दर्जे के लिए करीब 49 साल से संघर्ष कर रहे हैं।

ऐसे पड़ा हाटी समुदाय नाम
गिरीपार क्षेत्र के निवासियों के लिए दुर्गम क्षेत्रों में कहीं भी बाजार उपलब्ध नहीं था। यहां के लोग ग्रुप में आवश्यक वस्तुओं की खरीद करने और अपने उत्पादों को बेचने के लिए समीपवर्ती बाजारों में जाते थे। ये लोग लोग अपनी पीठ पर सामान लाद कर लाते और ले जाते थे। इस समुदाय के लोग छोटे बाजारों में सब्जियां, फसल, मांस और ऊन आदि बेचते थे। हाट बाजारों में दुकानें लगाते थे। लोग इन्हें बुलाने के लिए हाटी कहने लगे।इस तरह हाट में सामान बेचने पर इस समुदाय का नाम हाटी पड़ा।

समुदाय को लेकर कट्टर
हाटी समुदाय के पुरुष खास मौकों पर अपने सिर पर विशिष्ट सफेद रंग की टोपी पहनते हैं। हाटी समुदाय अपनी जाति को लेकर बहुत सख्त होते हैं।

1978 से मामला लंबित क्यों?
1978 में पहली बार गिरीपार क्षेत्र के लिए जनजातीय दर्जे की मांग उठी। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को इसके लिए लेटर लिखा गया। 1979 में जब पहली रिपोर्ट आई तो राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग जनजाति के लिए सिफारिश की गई। इसके बाद विधानसभा में इसके तहत एक कमिटी बनाई गई। ट्राइबल कमीशन के सदस्य टीएस नेगी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी। 1983 में केंद्रीय हाटी समिति बनाई गई। 2011 में केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी। राज्य सरकार ने प्रदेश विश्वविद्यालय के जनजातीय शोध एवं अध्ययन संस्थान को यह जिम्मा सौंपा।

2016 में इसकी रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी गई। जिसके बाद मामले की फाइल रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के पास लंबित थी। सितंबर 2018 में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने हाटी मुद्दे को लेकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह से चर्चा की। दिसंबर 2018 को सांसद वीरेंद्र कश्यप के नेतृत्व में केंद्रीय हाटी समिति का एक प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री से मिला। आरजीआई को गृहमंत्री ने कार्रवाई के लिए कहा।



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