कैसे पड़ा बुंदेलखंड का यह नाम ?

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कैसे पड़ा बुंदेलखंड का यह नाम ?

भारत के मानचित्र में विशिष्ट पहचान लिए हुए बुंदेलखंड जहां आल्हा उदल, रानी लक्ष्मी बाई की वीर गाथाएं आज भी गूंजती है। बुंदेलखंड मध्य भारत का एक प्राचीन क्षेत्र है। जिसका विस्तार उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में है। उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भू-भाग को व मध्प्रदेश के उत्तरी भू-भाग को मिला कर बुंदेलखंड की रचना हुई है। पर्यटन की दृष्टि से भी बुंदेलखंड विश्व भर में जाना जाता है। झांसी, ओरछा, कालिंजर के किले, चित्रकूट, खजुराहो, पन्ना के मंदिर, पन्ना के हीरे, टाइगर रिजर्व, पान्ड पोल, महोबा और सागर के विशाल तालाब विश्व भर के पर्यटकों को आकर्षित करते है। बुंदेलखंड के लोगो ने विश्व में बुंदेलखंड को प्रसिद्ध किया है जैसे रानी लक्ष्मी बाई, गोस्वामी तुलसीदास, राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त और हॉकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद।

बुंदेलखंड का इतिहास
बुंदेलखंड के इतिहास पर अगर हम नजर डाले तो हमे अनेकों ऐतहासिक कथाये जानने को मिलेगी। बुन्देलखण्ड, विधेलखण्ड का अपभ्रंश है। विध्येलखण्ड, विंध्यभूमि विंध्याचल पर्वत अंचलीय क्षेत्र को कहा जाता था, ‘विंध्य’ और ‘इला’ से बना ‘विंध्येला’ अर्थात विंध्याचल पर्वत और उसकी श्रेणियों वाली भूमि अर्थात विंध्याचल पर्वत के आसपास वाली समग्र भूमि का नाम ‘विंध्येला’ था जो कालान्तर में क्रमशः ‘विंध्येलखण्ड’ व ‘बुन्देलखण्ड’ कहलाया। अनेक शासकों और वंशों के शासन का इतिहास होने के बावजूद भी बुन्देलखण्ड की अपनी समृद्ध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व सामाजिक पहचान को नकारा नहीं जा सकता। बुन्देली साहित्य व संस्कृति को नष्ट करने के लिये आक्रमणकारियों ने अनेकों बार बुन्देलखण्ड पर आक्रमण किये, किन्तु वीर बुन्देलों ने अपने प्राणों की बलि देकर अपने धर्म, संस्कृति और रीति-रिवाजों की रक्षा की। समय-समय पर अनेकों शासकों ने इस भू-भाग पर राज्य स्थापित कर अपनी छाप छोड़ी है, कभी गुप्त साम्राज्य तो कभी वाकाटक, नागवंशी, प्रतिहार, चन्देल, खंगार, बुन्देला आदि। इस प्रकार ऐतिहासिक घटनाओं के उत्थान पतन से ओतप्रोत बुन्देलखण्ड अपनी आलोकित छटा लिये आज भी कायम है। यहां पर चन्देलों व बुन्देलों की पीढ़ियों ने शासन करके इसको समृद्धि, सम्पत्ति और गरिमा प्रदान की है।

बुंदेलखंड न्यूज़ डॉट कॉम से मिली जानकारी के अनुसार पुरातन काल से बुन्देलखण्ड अब तक अनेक शासकों के अधीन रहा। इसी कारण इसके नामों में परिवर्तन होता रहा। पौराणिक काल में इसे ‘चेदि’ जनपद के नाम से उल्लेखित किया गया तो कभी इसे दस नदियों वाला प्रदेश होने के कारण ‘दशार्ण’ प्रदेश भी कहा गया। विंध्य पर्वत श्रेणियों के होने के कारण इसे ‘विंध्य भूमि’ भी कहा जाने लगा। चंदेली शासन के दौरानय यह क्षेत्र ‘जुझौति’ के नाम से जाना जाता रहा। किन्तु गहरवार शासक हेमकरन ने जब विंध्यवासिनी देवी की आराधना की तथा हेमकरन ने देवी को पांच नरबलियां दीं तभी उसका नाम ‘पंचम सिंह’ पड़ा। बाद में विंध्यवासिनी देवी की भक्ति में लीन होकर उसने अपने नाम के बाद ‘विन्ध्येला’ शब्द जोड़ लिया। कालांतर में यही विंध्येला शब्द ‘बुन्देला’ के रूप में परिवर्तित हो गया और जिस क्षेत्र में पंचम सिंह बुन्देला या उनके वंशजों ने राज्य विस्तार किया वह ‘बुन्देलखण्ड’ कहलाया।