कर्नाटक में ऐसे हुई बीजेपी की हार और कांग्रेस की जीत!

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कर्नाटक में 2018 में विधानसभा चुनान होने जा रहा है, कांग्रेस की स्थिति अच्छी है नहीं लेकिन मुख्यमंत्री सिद्दारमैया चुनाव से पहले कुछ ऐसा मुद्दा उठा रहे हैं जिससे कहीं ना कहीं उनकी स्थिति मजबूत होती दिख रही है।

कर्नाटक में यह लड़ाई भाषा की है। जहां बीजेपी को कांग्रेस से मुंह की खानी पड़ गई है। दरअसल बेंगलूरू मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन ने अपने स्टेशनों और ट्रेनों के अंदर हिंदी में संकेतक (साइनेज) लगाया गया था। ये देखते हुए कर्नाटक कांग्रेस ने भाषा के विवाद को छेड़ दिया और नि: संदेह इसमें स्थानीय संगठनों और लोगों का साथ भी मिल गया। अब साल विधानसभा चुनान को देखते हुए “कन्नड़ गौरव” में अचानक बढ़ोतरी का इस्तेमाल वहां के मुख्यमंत्री भाजपा के खिलाफ कर रहे हैं।

भाषा की लड़ाई को देखते हुए, कन्नड़ की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए मुख्यमंत्री कार्यालय ने यूट्यूब पर एक वीडियो भी पोस्ट किया है। सिद्धारमैया ने जोर देते हुए कहा, “हम भाषा पर किसी भी तरह के हमले बर्दाश्त नहीं कर सकते। कन्नड़ लोगों को भाषा और संस्कृति पर गर्व होना चाहिए।” इस मुद्दे पर भाजपा कोई भी स्पष्ट जवाब नहीं दे पायी।

हालांकि सड़कों पर विरोध प्रदर्शनों के बाद बीएमआरसी ने अपने सभी स्टेशनों और कोचों से हिंदी संकेतकों को हटा दिया। इस कदम का बेंगलूरू में स्थित अन्य केंद्रीय सरकारी प्रतिष्ठानों पर भी प्रभाव पड़ा भाजपा अभी भी इस मसले पर निराश है पर सिद्धारमैया और कांग्रेस ने भाषा की इस लड़ाई का एक दौर तो जीत ही लिया है।

आगे का ये सीन हुआ कि कन्नड़ डेवलपमेंट अथॉरिटी ने एक पत्र जारी कर कहा कि राज्य के सभी राष्ट्रीयकृत बैंकों के कर्मचारी कन्नड़ में लेनदेन करें या नौकरी छोड़ दें। यही नहीं कन्नड़ समर्थकों ने बेंगलूरू औऱ राज्य के अन्य व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को कन्नड़ साइनबोर्ड लगाने का हुक्म दे दिया।

बैंकों के लिए केडीए की ओर से जारी निर्देशों को भी व्यापक समर्थन मिला है। इसके प्रमुख एस. जी. सिद्दारमैया कहते हैं, “सभी लोगों के लिए स्थानीय भाषा और संस्कृति का सम्मान करना अनिवार्य है।” इससे इतर मुख्यमंत्री  ने राज्य के लिए अलग झंडे के मुद्दे को भी हवा दे दिया है, जिसमें उन्हें स्थानीय लोगों का अच्छा-खासा समर्थन मिल रहा है। जो कि चुनाव के वक्त बहुत ही जरूरी है।

ये मुद्दे कुछ ऐसे हैं, जिस पर भाजपा बैकफुट पर है। इनको (बीजेपी) समझ में नहीं आ रहा है कि इसका विरोध कैसे करें और किस प्रकार स्थानीय लोगों में अपनी पकड़ बनाएं।