स्वाभिमान ,संघर्ष और सफलता की एक अनोखी कहानी

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स्वाभिमान और संघर्ष की कई कहानियाँ आपने पढ़ी भी होंगी और सुनी भी l जैसे चितौर की महारानी पद्मावती की स्वाभिमान गाथा ,जहाँ उन्होंने अपने साहस ,धैर्य ,पराक्रम से जीते हुए अलाउद्दीन खिलजी को हरा दिया l जैसे झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी झाँसी के खातिर हंसते -हंसते अपने प्राण गवां दिए l आज़ादी के लिए संघर्ष की कहानी ,इंसाफ के लिए संघर्ष की कहानी इत्यादि l

दुर्गापुर की बेबी की कहानी
स्वाभिमान और संघर्ष की एक ऐसी ही अनोखी कहानी है ,दुर्गापुर की रहने वाली बेबी की l जिन्होंने अपने स्वाभिमान को प्राथमिकता देकर अपना घर छोड़ दिया ,और अपने ही संघर्ष की कहानी ने उन्हें सफलता के शिखर पर लेजा कर खड़ा कर दिया l

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पति ने ही किया बलात्कार ,घरेलू हिंसा का भी हुई शिकार
आपको बता दें कि बंगाल के दुर्गापुर में रहने वाली बेबी की जिंदगी काफी उतार-चढ़ाव से भरी हुई रही हैl दरअसल जब वो मात्र 4 साल की थीं तो उनकी मां उन्हें छोड़कर चली गईंl 12 साल की छोटी उम्र में उनकी शादी करा दी गईl बेबी ने अपनी छोटी सी जिंदगी में उतनी तकलीफें सही है ,जिसकी कहानी सुनकर आपकी रूह तक काँप जायेगी l शादी की पहली रात को ही उनके पति ने 12 साल की मासूम बेबी का बलात्कार किया l हाँ ये और बात है कि आज भी हमारे देश में मैरिटीयल रेप को रेप नहीं माना जाता l लगभग 25 साल तक पति द्वारा प्रताड़ित होने के बाद ,आखिरकार एक दिन बेबी ने अपने स्वाभिमान के खातिर घर से भागने का फैसला किया l

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ट्रेन में टॉयलेट के पास बैठकर आ गयीं दिल्ली
आपको बताएं कि बेबी ट्रेन में टॉयलेट के पास बैठकर दिल्ली आ गईंl जहां उन्हें प्रमोद कुमार के घर में आश्रय मिलाl प्रमोद कुमार रिटायर्ड मानव विज्ञान प्रोफेसर है और महान लेखक मुंशी प्रेमचंद के पोते हैंl प्रबोध कुमार ने बेबी को दिल्ली में अपने घर काम पर रख लिया और तब आया दुर्गापुर की बेबी की जिंदगी में एक खुबसूरत मोड़ l

प्रेमचंद के पोते ने दिया घर में आश्रय
बेबी का पूरा नाम बेबी हैल्डर हैl दरअसल जब भी वो प्रबोध के घर साफ-सफाई किया करती तो बुक के शेल्फ को देखने लगतीं थी l कभी बंगाली किताबों को खोलकर पढ़ने लगतींl जब प्रमोद कुमार ने बेबी को किताबें पढ़ते हुए देखा तो उन्होंने बेबी को बांग्लादेशी ऑथर तसलीमा नसरीन की किताब दी और पढ़ने को कहाl पूरी किताब पढ़ने के बाद प्रबोध ने उनको खाली नोटबुक दी और उस खाली नोटबुक में अपनी कहानी लिखने को कहा l पहले बेबी घबरा गई थीं क्योंकि उन्होंने सिर्फ 7वीं क्लास तक ही पढाई की है l लेकिन जैसे ही वो किताब लिखने बैठीं तो उनमें एक अलग ही आत्मविश्वास आ गयाl

प्रमोद कुमार ने जगाया अन्दर का लेखक
बेबी की कहानी पढ़कर प्रमोद कुमार की आँखे भर आई ,जिसके बाद उन्होंने बेबी की किताब को हिंदी में ट्रांस्लेट कियाl कुमार ने किताब को दोस्तों और परिचितों को पढने के लिए भेजी,और किताब पढने के बाद सभी ने प्रशंसा पत्र भेजाl जिसके बाद उन्होंने किताब को प्रकाशन में छपने भेजाl जैसे ही बेबी ने सबसे पहले किताब को देखा तो उन्हें को यकीन नहीं हुआ कि उन्होंने इतना शानदार लिखा हैl

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अब तक कुल चार किताबें लिख चुकी है बेबी
आपको बता दें कि वर्ष 2002 में बेबी की पहली किताब ‘आलो आंधारी’ नाम से आईl इसी साल उनकी ये किताब अंग्रेजी में पब्लिश हुई थीl साहित्य की दुनिया में बेबी हैल्डर अब एक चर्चित नाम हैl उनकी इस किताब को अब तक 24 से ज्यादा भाषाओं में ट्रांसलेट किया जा चूका है l 2002 से अब तक बेबी कुल चार किताबें लिख चुकी है l देश -विदेश में होने वाले कई लिट्रेचर फेस्टिवल का वह हिस्सा रह चुकी है l

अपने आप में एक मिसाल है बेबी हैल्डर की कहानी 
बेबी की कहानी अपने आप में संघर्ष और सफलता की एक अनोखी मिसाल है l जो देश की कई महिलाओं को प्रेरित करती हैंl बेबी की इस सफलता का श्रेय अगर उनके बाद किसी और को जाता है तो वह है प्रमोद कुमार ,जिन्होंने ना सिर्फ बेबी को आश्रय दिया बल्कि उनके अन्दर के लेखक को जगा कर उन्हें जीने की एक नयी वजह दी l