राजनीति वर्तमान समय में एक ऐसा शब्द हो गया है, जिसको सुनते ही सबसे पहले वोट बैंक के लिए किसी भी स्तर तक गिर जाने वालों की छवी बना देता है. ये सवाल चर्चा का विषय रहा है कि राजनीति सेवा है या नौकरी ? अगर संविधान के नजरिए से देखें तो संविधान में कहीं भी नहीं लिखा हुआ है कि राजनीति सेवा है या नौकरी. इस सवाल का जवाब तभी मिल सकता है, जब हम राजनीति की तुलना नौकरी से करकें देखें.
वर्तमान परिदृश्य में राजनीति को एक अच्छे करियर के तौर पर लिया जाता है. आमतौर पर ऐसा कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति अपने बच्चे को अपने से ऊपर करियर बनाते हुए देखना चाहता है. लेकिन लगभग सभी राजनेता अपने परिवार के सदस्यों को राजनीति में लाने के लिए इतने आतुर होते हैं. जिसको देखते हुए राजनीति को सेवा कहना तो उचित नहीं हो सकता वो भी तब जब इसके लिए वेतन, भत्ते और पैंशन सब सुविधाएं दी जाती हैं.
अगर नौकरी की बात करें, तो उसके लिए कुछ योग्यताएं निर्धारित की जाती है. जिसके लिए चुने जाने से पहले परीक्षाएं भी ली जाती हैं. लेकिन राजनीति में ऐसा कुछ नहीं होता है. कोई भी अनपढ़ व्यक्ति अपनी इच्छा से राजनीति में आ सकता है तथा कोई भी पद हासिल कर सकता है.
अगर सिद्धांतिक तौर पर बात करें, तो राजनीति हमें एक ऐसा अवसर प्रदान करती है, जिसमें हम अपने देश की हर तरह से सेवा कर सकते हैं, इसके साथ ही सेवा करने के लिए आपके पास पैसा होने की अनिवार्यता भी नहीं है. आप समाज की सेवा करते हैं, बदले में आपके जीवन यापन के लिए वेतन और भत्ते भी मिलते हैं. लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है, वर्तमान परिदृश्य में राजनीति सेवा और नौकरी से आगे बढ़ते हुए एक बिजनेस की तरह नजर आती है. जिसमें पहले चुनाव के लिए पैसे लगाए जाते हैं, इसके बाद भ्रष्टाचार के माध्यम से पैसे कमाए जाते हैं.
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जिस राजनीति को आरंभ में सेवा माना जाता था, ये हमारा दुर्भाग्य ही है कि आज राजनीति को एक अवसर के तौर पर लिया जाता है तथा राजनीति सिर्फ अमीर और प्रभावशाली लोगों की पहुँच तक ही सीमित होकर रह गई है.