पाकिस्तान के विदेश सचिव का अचानक से भारत आगमन का भले ही कोई कारण स्पष्ट न किया गया हो लेकिन इस बात में कोई शक-सुबहा नही है कि वे ज़रूर भारतीय प्रधानमंत्री के खातिर कोई न कोई सन्देश लाये होंगे. वैसे भी पिछले कई महीनों से दोनों देशो के मध्य रिश्तों में कोई बहुत सुधार नही हुआ है, बल्कि हालात और बिगड़े ही हैं.
पुलवामा हमले के बाद से ही भारत को आतंकवाद के प्रति कड़ी रणनीति के तहत बालाकोट में एयर स्ट्राइक करने के बाद से ही हालात में गिरावट ज़ारी है, और फिर मसूद अजहर के मसले पर चीन का रुख भी पाकिस्तान को कमज़ोर करने में अहम भूमिका निभाता है.
हम अगर पाकिस्तान की अर्थव्यस्था की बात करें तो उसके हालात भी कोई बहुत अच्छे नही है. पिछले दिनों अगर सऊदी अरब के क्राउन प्रिन्स द्वारा अनुदान प्राप्त न हुआ होता तो शायद पाकिस्तान की अर्थव्यस्था की हालत और बुरी होती. ऐसे में पाकिस्तान ये तो नही चाहेगा कि उसके अगल-बगल के देश का असहयोग ही उसे डुबा बैठे.
वैसे भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का नरम रुख इस बात की तस्दीक करता रहा है कि वे जंग के पक्षधर नही है लेकिन चूँकि ये बात जग-ज़ाहिर है कि पाकिस्तान में प्रधानमन्त्री से ज्यादा वहां के सेना की हुकुमत चलती है. अब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इस बात से कैसे निपटेंगे, ये उनके लिए चुनौती होगी.
फिलहाल दोनों देशो के बीच कई ऐसे मसले हैं जो कि सिर्फ जंग के ज़रिये नही सुलझाए जा सकते हैं, मसलन “कश्मीर विवाद”. भारतीय नवगठित सरकार का रुख कश्मीर में धारा 370 पर साफ़ है. इसके अलावा अलगाववादी गुटों का रुख भी हमेशा कश्मीर में विवाद को उपजाता रहता है.
फिलहाल भारत के रिश्ते पाकिस्तान से कब सुधरेंगे ये बात बहुत दूर की कौड़ी है लेकिन फिर भी दोनों में से कोई भी देश युद्ध की तरफ नही बढ़ना चाहेगा. अब ये देखना महत्वपूर्ण होगा कि कैसे दोनों देश अपने रिश्ते को आगे की ओर ले जाते हैं.