नेपाल मूल के लोग अपने देश वापस चले गए थे। वह भारत में अब लॉकडाउन में ढील के बाद वापसी करने लगे हैं। औसतन प्रतिदिन 500-600 नेपाली कामगार लौट रहे हैं। नेपाल मूल के नागरिक जो भारत में रह कर व्यवसाय, नौकरी या फिर मजदूरी करते हैं। इन सभी के पास भारतीय आधार कार्ड मौजूद हैं।यही आधार कार्ड दिखा कर वह इस समय भारत में प्रवेश कर रहे हैं। इस तरह से कई लोगों ने अपने आधार कार्ड भी दिखाए। इन लोगों के पास नेपाल की नागरिकता व भारत का आधार कार्ड होने के कारण इन्हें कोई बाधा नहीं है। यह जब चाहे नेपाल में अपनी नागरिकता दिखाकर प्रवेश कर लेते हैं। और जब चाहे भारत में आधार दिखा कर वापस आ जाते हैं। इसी आधार कार्ड पर अधिकांश नेपाली नागरिकों ने भारत में अपना घर व स्कूलों में बच्चों का एडमिशन भी करा लिया है।
चीन के दबाव में नेपाल के प्रधानमंत्री भले ही भारत विरोधी कार्य व टिप्पणी कर रहे हों। लेकिन उनके इस विचार से नेपाल के लोग भी सहमत नहीं हैं। नेपाल में रहने वाले मधेशियों की तरह ही नेपाली मूल के गोरखा भी चीन की चालाकी को समझ रहे हैं। वह नेपाल को अपनी जन्म भूमि मानने के साथ साथ भारत को अपनी मां के समान कहते हैं। ऐसे ही नेपाल के डांग निवासी रामचंद्र कुलश्रेष्ठ जो दिल्ली में करीब बीस वर्ष से परिवार के साथ रह रहे हैं। वहां उनकी दुकान है।
औसतन प्रतिमाह उन्हें सत्तर से अस्सी हजार की आय हो जाती है। उनकी एक बेटी आशा कुलश्रेष्ठ दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा है। इनका कहना है कि जहां जहां चीन का प्रभाव रहा है। वहां-वहां बर्बादी ही हुई है। नेपाल मूल के नागरिक जो भारत में रह कर व्यवसाय, नौकरी या फिर मजदूरी करते हैं। इन सभी के पास भारतीय आधार कार्ड मौजूद हैं। यही आधार कार्ड दिखा कर वह इस समय भारत में प्रवेश कर रहे हैं। इस तरह से कई लोगों ने अपने आधार कार्ड भी दिखाए। इन लोगों के पास नेपाल की नागरिकता व भारत का आधार कार्ड होने के कारण इन्हें कोई बाधा नहीं है।
500-600 प्रवासियों की प्रतिदिन हो रही वापसीनेपाल से प्रतिदिन 500-600 प्रवासी भारत स्थित अपने कामों पर लौट रहे हैं। इस तरह नेपाली प्रवासी श्रावस्ती के जमुनहा, सिरसिया, बहराइच के रुपईडिहा बार्डर पर देखे जा सकते हैं। सिरसिया की ओर से भारत में प्रवेश करने वाले अधिकांश प्रवासी डांग जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले पहाड़ी मूल के हैं। इसमें से ज्यादातर लखनऊ व कानपुर में वर्षों से रह रहे हैं। वहां पर इनमें से अधिकांश लोगों ने या तो अपना घर बना लिया है या फिर किराए के मकान में रहकर बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं। वहां से हुई आय से ही नेपाल के पहाड़ों पर रह रहे परिजनों का गुजारा भी होता है। जबकि रुपईडीहा बार्डर से मुंबई, हिमांचल, दिल्ली व पंजाब क्षेत्र में अधिकांश प्रवासी मजदूर लौट रहे हैं।
यह भी पढ़े:वृश्चिक राशि को सबसे शक्तिशाली राशि क्यों माना जाता है?