‘हिमालय’ की तरह बहुत खूबसूरत है ‘ऊंचाई’, लेकिन इमोशन्स में बहकर आप खा गए 5 जगह गच्चा
बॉलीवुड के परफेक्ट डायरेक्टर्स की बात हो तो इसमें सूरज बड़जात्या जैसे निर्देशकों का जिक्र होता है। उन्होंने अपने 33 सालों के करियर में महज 7 फिल्मों का निर्देशन किया है। इसमें से सिर्फ दो फिल्में ऐसी रही जिसमें उनके फेवरेट सलमान खान नहीं थे। जी हां, ये हवा हवाई बातें नहीं बल्कि सच है। एक ‘विवाह’ और दूसरी ‘ऊंचाई’। अमिताभ बच्चन, बोमन ईरानी, अनुपम खेर और डैनी डोंगजप्पा को लेकर सूरज बड़जात्या ने 30 करोड़ के बजट में हिमालय की तरह खूबसूरत ‘ऊंचाई’ बनाई। इस फिल्म का दमदार सब्जेक्ट और कास्ट सीधे दिल में उतर जाता है। पर मेरा अनुभव ‘ऊंचाई’ देखने का थोड़ा सा अलग रहा। सूरज बड़जात्या ने इतनी खूबसूरत फिल्म बनाई लेकिन कुछ बातें ऐसी कर दी कि गुस्सा भी आया और हंसी भी। जी हां, ‘ऊंचाई’ के लॉजिक्स की बात कर रहे हैं। सूरज बड़जात्या ने 5 जगह फैंस को गच्चा दे दिया। आइए अब जरा इन तर्क पर बात करते हैं।
1. भाई मुझे भी चाहिए ऐसा नेटवर्क
‘ऊंचाई’ (Uunchai Movie) चार जिगरी दोस्तों की कहानी (Uunchai Movie Story) है। लेकिन ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ या ‘3 इडियट्स’ जैसे दोस्त नहीं। चारों की उम्र 65-70 साल की है। वे जिदंगी के कई पड़ाव पार कर चुके हैं। किसी को उसका प्यार मिला तो किसी को प्यार में धोखा। कोई बड़ा आदमी तो बन गया लेकिन फैमिलीमैन न बन पाया। अभी भी जिंदगी के चैप्टर सीखने बाकि है। ओम (अनुपम खेर), अमित (अमिताभ बच्चन), जावेद (बोमन ईरानी) और भूपेन (डैनी डेन्जोंगपा) चारों बचपन के दोस्त हैं। भूपेन का हमेशा सा सपना रहा है एवरेस्ट पर जाना। पहाड़ उसकी जान है उसकी मोहब्बते है। अब अचानक भूपेन को हार्ट अटैक आता है और वह गुजर जाता है। अमित दोस्त का सपना पूरा करने एवरेस्ट बेस कैंप ट्रिप प्लान करता है। तीनों ऊंचे पहाड़ चढ़ते हैं। तीनों काठमांडू से लुक्का और फिर लोबूचे होते हुए एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचते हैं। इन रास्तों में तमाम कठनाई आती है लेकिन इनके फोन का नेटवर्क 5जी से भी तेज चलता है। वीडियो कॉल भी फर्राटे से हो रही है। भई दिल्ली/नोएडा में नेटवर्क इतना खून पीता है मगर इन दोस्तों का जबरस्त नेटवर्क है। सूरज बड़जात्या से मेरी भी एक दरख्वास्त है कि मुझे भी ऐसा नेटवर्क चाहिए।
2. अमित जी अब आप ऐसा करेंगे हमारे साथ
अमित (अमिताभ बच्चन) जाने माने लेखक है। यूथ उनकी किताबों के लिए पगला रहे होते हैं। अमित इस ग्रुप के समझदार इंसान भी है। वही होते हैं जिनकी वजह से इस ट्रिप का प्लान बन पाता है और भूपेन की आखिरी इच्छा को पूरा किया जाता है। अमित आने-जाने, खाने-पीने, रहने से लेकर ट्रेवलिंग-फिटनेस वगैरह सबका ध्यान रखता है। मगर हैरत तब होती है जब वह अपनी ही दवाई को ठीक से नहीं रखता। फिर पहाड़ पर जाकर उन्हें याद आता है कि उनकी दवा खत्म होने वाली है। भाई इतना लंबा ट्रिप है। बड़े बड़े झोले लेकर सब दिल्ली से नेपाल पहुंच गए हैं लेकिन एक छोटा सा दवाई का पत्ता रखने में इन्हें तकलीफ हो गई।
3. लंगोटिया यार को दोस्त के बारे में ही नहीं पता
इन चारों दोस्तों की कहानी बहुत खूबसूरत है। कभी हंसाती है तो कभी रूलाती है। पर….आपका ध्यान अगर अमित के एंगल पर ठीक से गया होता तो आपका भी दिमाग मेरी तरह जरूर ठनका होता। कई बार चारों बताते हैं कि वह चारों बचपन के लंगोटिया दोस्त हैं। अमित तो सबके किस्सों और परिवार को अच्छे से जानता है लेकिन अमित के बारे में कोई नहीं जानता। आखिर उसकी बीवी कहां है…उसका बीवी के साथ क्या लफड़ा हुआ.. किसी को कुछ पता ही नहीं है। क्या यार… ऐसे कैसे हम दर्शकों के साथ कर दिया आपने।
4. भाई… पैसा था तो हेलीकॉप्टर से ही चले जाते
अच्छा हां। ये हेलीकॉप्टर वाली बात भी सुन लीजिए। तीनों दोस्त हेलीकॉप्टर से भी तो जा सकते थे…ठीक वैसे ही जैसे आते हैं। भूपेन की पहाड़ और हिमालय वाली बात ही तो आपको माननी थी। दोस्त ने ये तो नहीं कहा था न कि आप हेलीकॉप्टर से नहीं जाएंगे। क्या यार हद करते हैं आप लोग कभी कभी।
5. फैमिली तो दिखाई लेकिन कम दिखाई
ये बात बार बार कह रही हूं कि इमोशनली इस फिल्म का कोई जवाब नहीं। स्टोरीटेलिंग भी अच्छी थीऔर विषय भी दमदार था। मगर कुछ कुछ सीन्स के साथ पूरा न्याय नहीं हो पाया। जैसे जावेद (बोमन ईरानी) की बेटी शीबा के पार्ट को मेकर्स अच्छे से दिखा सकते थे। भाई शीबा का फार्म हाउस जैसा आलीशान घर है मगर दो दिन के लिए आए पैरेंट्स के लिए जगह नहीं है। ठीक है.. मेकर्स शायद ज्यादा समय तक इस सीन को खींचना नहीं चाहते थे लेकिन वह सीन जस्टिफाय नहीं लगता। अधूरा सा दिखता है। यही सेम चीज गोरखपुर की हवेली और अमित की वाइफ वाले सीन के साथ भी लगती है। सभी दोस्तों की फैमिली दिखाई तो लेकिन वो दृश्य अधूरे से लगते हैं।
1. भाई मुझे भी चाहिए ऐसा नेटवर्क
‘ऊंचाई’ (Uunchai Movie) चार जिगरी दोस्तों की कहानी (Uunchai Movie Story) है। लेकिन ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ या ‘3 इडियट्स’ जैसे दोस्त नहीं। चारों की उम्र 65-70 साल की है। वे जिदंगी के कई पड़ाव पार कर चुके हैं। किसी को उसका प्यार मिला तो किसी को प्यार में धोखा। कोई बड़ा आदमी तो बन गया लेकिन फैमिलीमैन न बन पाया। अभी भी जिंदगी के चैप्टर सीखने बाकि है। ओम (अनुपम खेर), अमित (अमिताभ बच्चन), जावेद (बोमन ईरानी) और भूपेन (डैनी डेन्जोंगपा) चारों बचपन के दोस्त हैं। भूपेन का हमेशा सा सपना रहा है एवरेस्ट पर जाना। पहाड़ उसकी जान है उसकी मोहब्बते है। अब अचानक भूपेन को हार्ट अटैक आता है और वह गुजर जाता है। अमित दोस्त का सपना पूरा करने एवरेस्ट बेस कैंप ट्रिप प्लान करता है। तीनों ऊंचे पहाड़ चढ़ते हैं। तीनों काठमांडू से लुक्का और फिर लोबूचे होते हुए एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचते हैं। इन रास्तों में तमाम कठनाई आती है लेकिन इनके फोन का नेटवर्क 5जी से भी तेज चलता है। वीडियो कॉल भी फर्राटे से हो रही है। भई दिल्ली/नोएडा में नेटवर्क इतना खून पीता है मगर इन दोस्तों का जबरस्त नेटवर्क है। सूरज बड़जात्या से मेरी भी एक दरख्वास्त है कि मुझे भी ऐसा नेटवर्क चाहिए।
2. अमित जी अब आप ऐसा करेंगे हमारे साथ
अमित (अमिताभ बच्चन) जाने माने लेखक है। यूथ उनकी किताबों के लिए पगला रहे होते हैं। अमित इस ग्रुप के समझदार इंसान भी है। वही होते हैं जिनकी वजह से इस ट्रिप का प्लान बन पाता है और भूपेन की आखिरी इच्छा को पूरा किया जाता है। अमित आने-जाने, खाने-पीने, रहने से लेकर ट्रेवलिंग-फिटनेस वगैरह सबका ध्यान रखता है। मगर हैरत तब होती है जब वह अपनी ही दवाई को ठीक से नहीं रखता। फिर पहाड़ पर जाकर उन्हें याद आता है कि उनकी दवा खत्म होने वाली है। भाई इतना लंबा ट्रिप है। बड़े बड़े झोले लेकर सब दिल्ली से नेपाल पहुंच गए हैं लेकिन एक छोटा सा दवाई का पत्ता रखने में इन्हें तकलीफ हो गई।
3. लंगोटिया यार को दोस्त के बारे में ही नहीं पता
इन चारों दोस्तों की कहानी बहुत खूबसूरत है। कभी हंसाती है तो कभी रूलाती है। पर….आपका ध्यान अगर अमित के एंगल पर ठीक से गया होता तो आपका भी दिमाग मेरी तरह जरूर ठनका होता। कई बार चारों बताते हैं कि वह चारों बचपन के लंगोटिया दोस्त हैं। अमित तो सबके किस्सों और परिवार को अच्छे से जानता है लेकिन अमित के बारे में कोई नहीं जानता। आखिर उसकी बीवी कहां है…उसका बीवी के साथ क्या लफड़ा हुआ.. किसी को कुछ पता ही नहीं है। क्या यार… ऐसे कैसे हम दर्शकों के साथ कर दिया आपने।
4. भाई… पैसा था तो हेलीकॉप्टर से ही चले जाते
अच्छा हां। ये हेलीकॉप्टर वाली बात भी सुन लीजिए। तीनों दोस्त हेलीकॉप्टर से भी तो जा सकते थे…ठीक वैसे ही जैसे आते हैं। भूपेन की पहाड़ और हिमालय वाली बात ही तो आपको माननी थी। दोस्त ने ये तो नहीं कहा था न कि आप हेलीकॉप्टर से नहीं जाएंगे। क्या यार हद करते हैं आप लोग कभी कभी।
5. फैमिली तो दिखाई लेकिन कम दिखाई
ये बात बार बार कह रही हूं कि इमोशनली इस फिल्म का कोई जवाब नहीं। स्टोरीटेलिंग भी अच्छी थीऔर विषय भी दमदार था। मगर कुछ कुछ सीन्स के साथ पूरा न्याय नहीं हो पाया। जैसे जावेद (बोमन ईरानी) की बेटी शीबा के पार्ट को मेकर्स अच्छे से दिखा सकते थे। भाई शीबा का फार्म हाउस जैसा आलीशान घर है मगर दो दिन के लिए आए पैरेंट्स के लिए जगह नहीं है। ठीक है.. मेकर्स शायद ज्यादा समय तक इस सीन को खींचना नहीं चाहते थे लेकिन वह सीन जस्टिफाय नहीं लगता। अधूरा सा दिखता है। यही सेम चीज गोरखपुर की हवेली और अमित की वाइफ वाले सीन के साथ भी लगती है। सभी दोस्तों की फैमिली दिखाई तो लेकिन वो दृश्य अधूरे से लगते हैं।