लालू यादव को कहीं महंगा न पड़ जाए मुस्लिम आरक्षण वाला दांव, चुनाव के बीच कैसे बदल गया माहौल?

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लालू यादव को कहीं महंगा न पड़ जाए मुस्लिम आरक्षण वाला दांव, चुनाव के बीच कैसे बदल गया माहौल?

लालू यादव को कहीं महंगा न पड़ जाए मुस्लिम आरक्षण वाला दांव, चुनाव के बीच कैसे बदल गया माहौल?

बिहार में चुनावी माहौल के बीच मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा छाया हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले कांग्रेस और आरजेडी पर एससी, एसटी और ओबीसी का हक छीनकर उनके कोटे से मुसलमानों को आरक्षण देने की मंशा रखने का आरोप लगाया। हाल ही में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने नया दांव खेलकर मुस्लिमों को पूर्ण आरक्षण देने की वकालत कर दी। लोकसभा चुनाव के बीच बीजेपी ने तुरंत इस मुद्दे को पकड़ लिया और आरजेडी पर हमलावर हो गई। बीजेपी के विरोध करते ही लालू यादव भी पीछे हट गए। कुछ ही घंटों के भीतर उन्होंने स्पष्टीकरण दिया और कहा कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि सामाजिक आधार पर दिया जाना चाहिए। ऐसे में लालू के लिए यह दांव चुनाव में कहीं महंगा न पड़ जाए।

लोकसभा चुनाव में बीजेपी नेताओं को लालू यादव के बयान से आरजेडी और INDIA गठबंधन पर निशाना साधने का हथियार मिल गया है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से ही मंडल आयोग की रिपोर्ट पारित की गई थी। आरजेडी और कांग्रेस के लोग संविधान बदलने की कोशिश कर रहे हैं। मुस्लिमों को ओबीसी का हक देने की मंशा किसी भी हालत में मंजूर नहीं की जाएगी।

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इसी तरह बिहार के डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने भी लालू के बयान पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि विपक्षी गठबंधन का पर्दाफाश हो गया है कि कैसे वे पिछड़ी जातियों को भी बख्शने को तैयार नहीं हैं। आरजेडी भ्रष्टाचार और नौकरी के बदले जमीन लेने के लिए जानी जाती है। धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है, यह संविधान बनाने वालों ने ही तय किया था। अब विपक्ष अपना होश खो बैठा है।

वहीं, आरजेडी नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने स्पष्ट किया कि आरक्षण का आधार सामाजिक है। उन्होंने बीजेपी को पिछड़ा और दलित विरोधी पार्टी बताया। साथ ही कहा कि हमने बिहार में जातिगत सर्वेक्षण कराया और आरक्षण का दायरा 65 फीसदी तक बढ़ा दिया। मगर हमारे अनुरोध के बावजूद आरक्षण विरोधी बीजेपी ने इन प्रावधानों को संविधान की नौवीं अनुसूची में नहीं डाला।

चुनाव के बीच एक बार फिर आरक्षण का मुद्दा सिर चढ़कर बोल रहा है। मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा उठने से लोकसभा चुनाव 2024 के बीच पूरा माहौल बदल गया है। 9 साल पहले 2015 के विधानसभा चुनाव में भी आरक्षण का मुद्दा गर्माया था। उस वक्त महागठबंधन को इसका फायदा मिला था। वहीं, इस बार बीजेपी इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत के बाद भी 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। 

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चुनावी जानकारों के मुताबिक इसका एक कारक आरक्षण माना गया। दरअसल, बिहार चुनाव के बीच आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की जरूरत बताते हुए एक बयान दिया। उस समय महागठबंधन में मौजूद आरजेडी और जेडीयू ने इस मुद्दे को तुरंत भुनाया। लालू यादव ने आरोप लगाए कि बीजेपी और आरएसएस आरक्षण को खत्म करना चाहते हैं।

अगले ही दिन आरएसएस और बीजेपी की ओर से स्पष्टीकरण आया कि भागवत के बयान को गलत तरीके से पेश किया गया था। उन्होंने कहा था कि आरक्षण का लाभ समाज के सभी कमजोर वर्गों तक पहुंचना चाहिए। हालांकि, तब तक देर हो चुकी थी। बिहार चुनाव में महागठबंधन ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की और बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा।

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एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के पूर्व निदेशक डीएम दिवाकर ने कहा कि चुनाव के दौरान अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए। क्योंकि जुबान फिसलना या भ्रामक बयान देना महंगा पड़ सकता है। जैसा कि 2015 के चुनाव में देखा गया था। उन्होंने कहा कि वास्तविकता यह है कि बिहार में चुनावों में आरक्षण एक संवेदनशील मुद्दा बना रहता है। मुख्यधारा के राजनीतिक दल लोकसभा के टिकट भी जातिगत कारकों को ध्यान में रखकर बांटते हैं। इस बार भी टिकट बंटवारे में यह देखने को मिला है। इसके अलावा राज्य में आरक्षण का दायरा बढ़ाए जाने के बाद से मुस्लिमों की पिछड़ी जातियों को भी इसका लाभ मिल रहा है। 

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