बिहार नगर पालिका चुनाव: जीतने के बाद भी उम्मीदवार को गंवाना पड़ सकता है पद, HC में ट्रिपल टेस्ट पर फंसा पेच

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बिहार नगर पालिका चुनाव: जीतने के बाद भी उम्मीदवार को गंवाना पड़ सकता है पद, HC में ट्रिपल टेस्ट पर फंसा पेच

बिहार नगर पालिका चुनाव: जीतने के बाद भी उम्मीदवार को गंवाना पड़ सकता है पद, HC में ट्रिपल टेस्ट पर फंसा पेच

भागलपुर: नगरपालिका चुनाव को लेकर संशय बरकरार है। एक ओर हाई कोर्ट में नगर पालिका चुनाव में आरक्षण को लेकर सुनवाई चल रही है, वहीं दूसरी ओर हाई कोर्ट के सुझाव के बाद निर्वाचन आयोग के जारी पत्र ने उम्मीदवारों की बेचैनी और बढ़ा दी है। कानून के जानकारों की मानें तो फिलहाल ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है कि चुनाव टलने की संभावना प्रबल होती दिख रही है। वहीं अगर हाईकोर्ट का निर्णय सरकार के खिलाफ आता है तो निर्वाचन आयोग की ओर से जारी अधिसूचना रद्द हो जाएगी। और फिर नए सिरे से सभी प्रक्रियाएं अपनानी होगी| यानी नगरपालिका चुनाव में मुख्य पार्षद (मेयर), उप मुख्य पार्षद (उप मेयर) और पार्षद के प्रत्याशियों की चुनौतियां चुनाव जीतने के बाद भी बरकरार रहने वाली है।

प्रथम चरण का चुनाव 10 अक्टूबर को होना है। वहीं नगरपालिका चुनाव में बिना ट्रिपल टेस्ट के आरक्षण देने का यह फैसला अब फंसते हुए दिखने लगा है। इसका एक कारण यह भी है कि मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में चल रही है। फिलहाल चुनाव पर कोर्ट की ओर से रोक नहीं लगाई गई है। लेकिन अभी तक इस मामले में कोई फैसला भी नहीं आया है।

इससे पहले हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुना था। प्रदेश सरकार की ओर से एडवोकेट ललित किशोर के साथ सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने सरकार का पक्ष मजबूती से रखा था। वहीं सुनवाई के दौरान याचिका दायर करने वाले की ओर से दलील दी गई कि सरकार का निर्णय गलत है, क्योंकि चुनाव में आरक्षण के फैसले से सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के निर्देशों की अनदेखी हुई है। कोर्ट ने भी दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा है। संभव है कि चार अक्टूबर को इस मामले में फैसला आ सकता है। कोर्ट ने भी निर्वाचन आयोग को सलाह दी है कि 10 अक्टूबर को होने वाले पहले चरण के चुनाव तारीख को अगर आयोग चाहे तो आगे बढ़ा सकता है।

पिछले साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट का आया था ये फैसला!
दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार तय मानकों को पूरा न होने तक स्थानीय निकाय चुनाव में आरक्षण की अनुमति नहीं दे सकती है। चुनाव के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में मानक तय किए थे। याचिका में इसी के अनुरूप आरोप है कि सरकार ने मानकों को पूरा किए बिना ही चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी। याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटना हाईकोर्ट में इस संबंध में एक फैसला लंबित है। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि 10 अक्तूबर को होने वाले पहले फेज के चुनाव से पहले पटना हाई कोर्ट को अपना फैसला सुना देना चाहिए।

आरक्षण देने के फैसले को चुनौती देते हुए SC में दायर गई थी याचिका!
बता दें कि इस बार के नगरपालिका चुनाव में बिना ट्रिपल टेस्ट के आरक्षण देने के फैसले को सुनील कुमार ने चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। वहीं सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में चल रही है। पिछले 28 और 29 सितम्बर को सुनवाई हुई लेकिन इस बाबत कोई अंतिम फैसला नहीं हो सका है। याचिकाकर्ता सुनील कुमार के मुताबिक, जब तक ट्रिपल टेस्ट नहीं हो जाता, तब तक पिछड़ा वर्ग को आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।

जानिए आरक्षण के प्रावधान में क्या है ‘ट्रिपल टेस्ट’ वाला ये इम्तिहान?
आरक्षण की व्यवस्था में बदलाव करने से पहले ‘ट्रिपल टेस्ट’ एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें तीन चरण पर मूल्यांकन होता है| पहले चरण में एक आयोग का गठन होता है, जो यह देखता है कि आरक्षण प्रतिशत में बदलाव होने पर संबंधित लोगों पर क्या प्रभाव पड़ेगा या फिर जिसके लिए आरक्षण का दायरा बढ़ाया जाएगा, उसे इसकी आवश्यकता है भी या नहीं।

वहीं दूसरे चरण में आयोग की सिफारिश लागू करने से पहले विभिन्न स्थानीय निकायों के लिए अलग – अलग कोटियों के बीच आरक्षण का परसेंटेज सही तरीके से विभाजित करने की प्रकिया को अपनाई जाएगी। इससे किसी के साथ कोई भेदभाव न हो और किसी को कोई शिकायत भी न रहे। इसके बाद तीसरे चरण को अपनाया जाएगा। इसके तहत आरक्षण प्रतिशत में परिवर्तन इस तरह से किया जाएगा कि सभी कोटियां में कुल आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी से अधिक किसी कीमत पर नहीं रहे।

नगरपालिका का चुनाव और हाईकोर्ट में सुनवाई के बीच प्रत्याशियों ने दी अपनी प्रतिक्रिया !
नगरपालिका चुनाव पर संशय के बीच भागलपुर नगर निगम के प्रत्याशियों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। मुख्य पार्षद (मेयर) प्रत्याशी खुशबू कुमारी ने कहा कि यह तो गलत है न, आरक्षण का निर्णय होने के समय ट्रिपल टेस्ट आखिर क्यों नहीं हुआ, यह किसकी जिम्मेदारी थी। हम लोग तमाम प्रत्याशियों ने अपनी ओर से सारी तैयारी शुरू कर दी है। चुनाव प्रचार में सारी ताकत झोंक दी है, ऐसे में अगर चुनाव टाला जाता है या फिर जीत के बाद भी हाई कोर्ट के फैसले से प्रभाव पड़ता है तो यह गलत होगा। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय को जल्द इस मामले में फैसला सुनाना चाहिए, जिससे की सारी स्थिति स्पष्ट हो जाए।

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वहीं हबीबपुर नगर पंचायत से मुख्य पार्षद के प्रत्याशी सबा सुल्ताना ने कहा कि आखिर चुनाव की अधिसूचना जारी होने के पहले और आरक्षण का निर्णय लेते समय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के निर्णयों और ‘ट्रिपल टेस्ट’ का अनुपालन क्यों नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि अगर उस समय सारी प्रक्रियाएं अपनाई गई होती तो आज ये परेशानी क्यों उत्पन्न होती। प्रत्याशी पूरे जोर – शोर से चुनाव प्रचार कर रहे हैं, तमाम परेशानियों को दरकिनार करते हुए पूरी निष्ठा से काम कर रहे हैं। अब ऐसे में अगर चुनाव जितने के बाद भी अगर विजई उम्मीदवार को परेशानी होती है तो इसकी जवाबदेही कौन लेगा। उन्होंने हाईकोर्ट से भी जल्द स्थिति स्पष्ट करने की विनिती की है।

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फैसला सरकार के खिलाफ तो मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच सकता है: अधिवक्ता
वहीं दूसरी ओर इस पूरे मामले में भागलपुर व्यवहार न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता हिमांशु कुमार शेखर ने कहा कि हाई कोर्ट का निर्णय अगर सरकार के पक्ष में आया तो अच्छी बात है लेकिन अगर सरकार के खिलाफ आता है तो मामला और भी ज्यादा पेचीदा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि निर्णय के खिलाफ जीते हुए प्रत्याशी और प्रदेश सरकार दोनों सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दे सकते हैं। हालांकि उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के निर्णयों के आलोक में ही फैसला सुनाएगा, ऐसे में बचाव पक्ष के लिए ज्यादा विकल्प नहीं बचेगा। (रिपोर्ट- रूपेश झा)

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