बिहार के चंपारण में रची गई थी Mahatma Gandhi की हत्या की साजिश, Battakh Miya ने बचाई थी जान

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बिहार के चंपारण में रची गई थी Mahatma Gandhi की हत्या की साजिश, Battakh Miya ने बचाई थी जान

बिहार के चंपारण में रची गई थी Mahatma Gandhi की हत्या की साजिश, Battakh Miya ने बचाई थी जान


Mahatma Gandhi: बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि महात्मा गांधी की हत्या की साजिश सबसे पहले बिहार में रची गई थी। चंपारण की धरती पर महात्मा गांधी की जान लेने की कोशिश की गई थी, लेकिन बत्तख मियां ने उनकी जान बचा ली। आइये जानते हैं बत्तख मियां के बारे में…

 

पटना: महात्मा गांधी ( Mahatma Gandhi ) का बिहार से गहरा रिश्ता रहा। सच कहें तो मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा गांधी बनाने में बिहार की बड़ी भूमिका रही। चंपारण आंदोलन की अगुआई कर महात्मा ने बिहार से अपने रिश्ते को प्रगाढ़ किया। गांधी और बिहार को लेकर कई किस्से प्रचलित हैं। इनमें एक किस्सा गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी बत्तख मियां का है। बत्तख मियां महात्मा गांधी के जीवनदाता बने थे। अगर वह नहीं होते तो नाथूराम गोड्से से पहले अंग्रेज गांधी की हत्या कर चुके होते। बत्तख मियां की सूझबूझ से अंग्रेजों की साजिश का पता चल गया और उनकी जान बच गयी। महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर बत्तख मियां का स्मरण बिहार के लिए गौरव की बात है। बत्तख मियां आजादी की लड़ाई के वैसे गुमनाम नायक (Unsung Hero) हैं, जिन्होंने महात्मा गांधी की जान तो बचा ली, लेकिन खुद अंग्रेजों की यातना के शिकार हुए। इसके बावजूद स्वतंत्रता सेनानी के रूप में दूसरों को तो सरकारी इमदाद मिला, पर बत्तख मियां का परिवार इससे वंचित रहा।

जानिए चंपारण के बत्तख मियां के बारे में

महात्मा गांधी की जान बचाने वाले बत्तख मियां का नाम कभी सरकारी रिकार्ड में उस तरह चर्चित नहीं रहा, जितना की वे हकदार थे। अगर उन्होंने गांधी की जान न बचायी होती तो गोड्से की गोली से पहले गांधी जी अंग्रेजों की ओर से परोसा गया दूध पीकर पहले ही चल बसे होते। यह वाकया 1917 का है। नीलहे आंदोलन के लिए महात्मा गांधी चंपारण की यात्रा पर आए थे। अंग्रेजों ने उनकी हत्या की योजना बनायी। महात्मा गांधी बातचीत के लिए अंग्रेजों ने उन्हें बुलाया। खाने के बाद भोज का कार्यक्रम था। महात्मा गांधी दूध पीते थे, इसलिए उनको दूध देने का जिम्मा बत्तख मियां को सौंपा गया। बत्तख मियां अंग्रेजों के खानसामा थे। उस समय मोतिहारी का अंग्रेज कलक्टर हिकॉक था। उसी ने महात्मा गांधी को बेतिया से मोतिहारी आने का निमंत्रण दिया था। गांधी जी ने उसका आग्रह कबूल किया और डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ वहां पहुंच गये। अंग्रेजों के अपने खानसामा बत्तख मियां को गांधी जी को दूध परोसने को कहा। दूध में पहले से ही जहर मिला हुआ था। यह बात बत्तक मियां को मालूम थी। वे भले अंग्रेजों के मुलाजिम थे, लेकिन एक सच्चे भारतीय की आत्मा उनमें बसती थी। जब उन्होंने महात्मा गांधी को दूध परोसा तो उस वक्त वहां डॉ राजेंद्र प्रसाद भी बैठे हुए थे। बत्तख मियां ने उन्हें जहर मिले होने का राजेंद्र बाबू को इशारा कर दिया। राजेंद्र प्रसाद ने गांधीजी को दूध पीने से रोक दिया। गांधी जी के पूछने पर राजेंद्र बाबू ने उस वक्त यह बात नहीं बतायी, लेकिन दूध में कुछ पड़े होने का संकेत दे दिया। इस तरह महात्मा गांधी की जान बची थी।

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अंग्रेजों ने तब बत्तख मियां को यातनाएं दीं

बत्तख मियां ने महात्मा गांधी की जान तो बचा दी, पर इसकी सजा अंग्रेजों ने उन्हें अपने अंदाज में दी। उनकी आंखों के सामने ही अंग्रेजों ने उनका घर जला दिया। उन्हें जेल की सीखचों में डाल दिया गया। बाद में उनकी मौत हो गयी। बत्तख मियां ने इतनी बड़ी कुर्बानी देकर आजादी के नायक गांधी जी की जान तो बचायी, लेकिन वह खुद एक गुमनाम शहीद बन कर रह गये। बत्तख मियां पूर्वी चंपारण जिले के एकवा परसौनी गांव के रहने वाले थे। आज भी उनके परिवार के लोग एक झोपड़ी में रहते हैं।

चंपारण की यात्रा पर क्यों पहुंचे थे महात्मा गांधी

पंडित राजकुमार शुक्ल ने गांधी जी को नीलहों का दुख देखने के लिए चंपारण आने का न्यौता दिया था। गांधी जी पहली बार 1917 में चंपारण आए थे। ट्रेन जब बेतिया स्टेशन पर पहुंची तो उन्हें देखने के लिए लाखों लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। भीड़ थी कि महात्मा गांधी की ट्रेन स्टेशन पर पहुंच ही नहीं पाई। महात्मा गांधी की लोकप्रियता और चंपारण पहुंचने की बात ने अंग्रेजों के कान खड़े हो गये। तब अंग्रेजों ने उनकी हत्या की योजना बनायी। बत्तख मियां अंग्रेज कलक्टर के खानसामा थे। उन्हें अंग्रेजों ने कहा कि गांधी जब भोजन खत्म कर लें तो उन्हें जहर मिला दूध परोस दें। बत्तख मियां ने दूध तो परोस दिया, लेकिन गांधी जी के पास ही बैठे डॉ राजेंद्र प्रसाद को इस बारे में इशारों से बता दिया। राजेंद्र बाबू ने गांधी जी को दूध पीने से रोक दिया। इस तरह उनकी जान बच गयी।

राजेंद्र प्रसाद ने परिजनों को दी थी जमीन

डॉ राजेंद्र प्रसाद जब भारत के पहले राष्ट्रपति बने तो उन्होंने चंपारण की यात्रा की। वह बत्तख मियां के घर गये। तब तक बत्तख मियां गुजर चुके थे। उन्होंने खस्ताहाल परिवार को मदद नहीं करने की मजबूरी बतायी। उन्होंने कहा कि खजाना खाली हो गया है। यह सुन कर बत्तख मियां की बीवी और बहू ने अपने गहने उन्हें सरकारी खजाने में जमा करने के लिए दे दिए थे। बत्तख मियां के परिजन अब तक उसकी रसीद संभाल कर रखे हुए हैं। अलबत्ता राजेंद्र बाबू ने उन्हें जीवन बसर करने के लिए 35 बीघा जमीन दिला दी थी, लेकिन इस पर ग्रहण लग गया। परिवार को महज 6 एकड़ जमीन ही मिल पायी। जमीन नदी किनारे थी, इसलिए उसका ज्यादातर हिस्सा नदी की कोख में ही चली गयी। कायदे का एक घर भी बत्तख मियां के परिजनों के पास नहीं है। बिहार सरकार भी इस पर अनजान बनी हुई है। मायनॉरिटी वोटों के लिए सरकारें तरह-तरह के नुस्खे अपनाती हैं, लेकिन मायनॉरिटी के नाम पर न सहीं, पर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में तो उनके परिजनों की मदद सरकार तो कर ही सकती है। सच यह है कि सरकारी मदद के इंतजार में आज भी उनका परिवार नदी किनारे झोपड़ी में रहने को विवश है। हमेशा घर के नदी में समा जाने का खतरा बना रहता है। आसपास जंगल होने के कारण जंगली जानवरों का खतरा ऊपर से रहता है।

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