पथरीले मैदान पर प्रैक्टिस, नहीं छोड़ी हिम्मत, बनीं टीम इंडिया की कैप्टन | International hockey player Madhu Yadav, jabalpur,Arjuna Awardee | Patrika News
हॉकी के प्रति समर्पित खिलाड़ी मधु यादव बताती हैं कि हम जब अभ्यास करते थे तब आज की तरह अत्याधुनिक एस्ट्रोटर्फ जैसी सुविधाएं नहीं थीं। न अच्छे कोच थे और मैदान। डाइट जैसी चीज बाद में जुड़ी है। बड़ा परिवार था। फिर भी परिस्थितियों को खेल पर हावी नहीं होने दिया। सभी ने मेरा हौसला बढ़ाया। जबलपुर में मॉडल स्कूल में घास का मैदान हुआ करता था। वह आज भी है, उसमें घास भी नाममात्र की होती थी। लेकिन मन में जज्बा था कि देश के लिए खेलना है। तिरंगा का सम्मान बढ़ाना है। सुविधाओं को देखती तो शायद मौका और उपलब्धियंा नहीं मिलती। मैने हॉकी को कुछ देने का प्रयास भी किया है। नए खिलाडिय़ों को तैयार करने का काम निरंतर चल रहा है।
घास के मैदान पर अभ्यास जरुरी
अर्जुन अवार्डी मधु यादव का मानना है कि भले आज एस्ट्रोटर्फ पर हॉकी खेली जाने लगी हैं, लेकिन शुरूआती प्रशिक्षण घास के मैदान पर होना जरुरी है। यह मैदान आपकों एस्ट्रोटर्फ पर खेलने के लिए मजबूत बनाता है। उन्होंने बताया कि हमने 1979 का विश्व कप तक घास के मैदान में खेला था। 80 के दशक में एस्ट्रोटर्फ आया तब देश के बड़े शहरों में अभ्यास कैंप में एस्ट्रोटर्फ देखने और खेलने के लिए मिला था।
विभाग उपलब्ध करवा रहा सुविधा
वे कहती हैं कि रेलवे ने खेल एवं खिलाडिय़ों को बहुत बड़ा मुकाम दिया है। कुछ अन्य विभाग भी हैं जो यह काम कर रहे हैं। ऐसे में खिलाडिय़ों को भी चाहिए कि वे आगे बढ़ें। पहले की तुलना में उनके पास ज्यादा साधन और तकनीक है। हालांकि खेलों में हम पहले की अपेक्षा ज्यादा उन्नत हुए हैं। कई राज्य भी अपने यहां खेलों को बढ़ावा देने के लिए बहुत प्रयास कर रहे हैं। वे खुद भी पुराने मैदान में जाकर खिलाडिय़ों को अभ्यास कराती हैं।
तीन साल महिला टीम की कप्तान
वर्तमान में पश्चिम मध्य रेलवे जबलपुर हेडक्वार्टर में वरिष्ठ खेल अधिकारी मधु यादव 1989 से 1991 तक भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रही हैं। उन्होंने 2 विश्व कप में भागीदारी की। दो बार एशियाई खेल, दो बार एशिया कप एवं अन्य अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में टीम इंडिया में शामिल रहीं। वे कई बार कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियाई खेल, महिला हॉकी चैम्पियन्स चैलेंज, एशिय कप और भारत की टेस्ट हॉकी मैचों में अंतरराष्ट्रीय अंपायर के रूप में नामांकित की गईं। इसी प्रकार प्रबंधक भी रह चुकी हैं। वहीं भारतीय रेलवे पुरुष एवं महिला हॉकी टीमों के चयन के लिए चयन समिति में भी शामिल रहीं। पिछले कॉमनवेल्थ गेम्स में वे भारत सरकार के द्वारा पर्यवेक्षक बनाई गईं थीं। उन्हें वर्ष 2000 में भारत सरकार ने अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया था।
हॉकी के प्रति समर्पित खिलाड़ी मधु यादव बताती हैं कि हम जब अभ्यास करते थे तब आज की तरह अत्याधुनिक एस्ट्रोटर्फ जैसी सुविधाएं नहीं थीं। न अच्छे कोच थे और मैदान। डाइट जैसी चीज बाद में जुड़ी है। बड़ा परिवार था। फिर भी परिस्थितियों को खेल पर हावी नहीं होने दिया। सभी ने मेरा हौसला बढ़ाया। जबलपुर में मॉडल स्कूल में घास का मैदान हुआ करता था। वह आज भी है, उसमें घास भी नाममात्र की होती थी। लेकिन मन में जज्बा था कि देश के लिए खेलना है। तिरंगा का सम्मान बढ़ाना है। सुविधाओं को देखती तो शायद मौका और उपलब्धियंा नहीं मिलती। मैने हॉकी को कुछ देने का प्रयास भी किया है। नए खिलाडिय़ों को तैयार करने का काम निरंतर चल रहा है।
घास के मैदान पर अभ्यास जरुरी
अर्जुन अवार्डी मधु यादव का मानना है कि भले आज एस्ट्रोटर्फ पर हॉकी खेली जाने लगी हैं, लेकिन शुरूआती प्रशिक्षण घास के मैदान पर होना जरुरी है। यह मैदान आपकों एस्ट्रोटर्फ पर खेलने के लिए मजबूत बनाता है। उन्होंने बताया कि हमने 1979 का विश्व कप तक घास के मैदान में खेला था। 80 के दशक में एस्ट्रोटर्फ आया तब देश के बड़े शहरों में अभ्यास कैंप में एस्ट्रोटर्फ देखने और खेलने के लिए मिला था।
विभाग उपलब्ध करवा रहा सुविधा
वे कहती हैं कि रेलवे ने खेल एवं खिलाडिय़ों को बहुत बड़ा मुकाम दिया है। कुछ अन्य विभाग भी हैं जो यह काम कर रहे हैं। ऐसे में खिलाडिय़ों को भी चाहिए कि वे आगे बढ़ें। पहले की तुलना में उनके पास ज्यादा साधन और तकनीक है। हालांकि खेलों में हम पहले की अपेक्षा ज्यादा उन्नत हुए हैं। कई राज्य भी अपने यहां खेलों को बढ़ावा देने के लिए बहुत प्रयास कर रहे हैं। वे खुद भी पुराने मैदान में जाकर खिलाडिय़ों को अभ्यास कराती हैं।
तीन साल महिला टीम की कप्तान
वर्तमान में पश्चिम मध्य रेलवे जबलपुर हेडक्वार्टर में वरिष्ठ खेल अधिकारी मधु यादव 1989 से 1991 तक भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रही हैं। उन्होंने 2 विश्व कप में भागीदारी की। दो बार एशियाई खेल, दो बार एशिया कप एवं अन्य अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में टीम इंडिया में शामिल रहीं। वे कई बार कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियाई खेल, महिला हॉकी चैम्पियन्स चैलेंज, एशिय कप और भारत की टेस्ट हॉकी मैचों में अंतरराष्ट्रीय अंपायर के रूप में नामांकित की गईं। इसी प्रकार प्रबंधक भी रह चुकी हैं। वहीं भारतीय रेलवे पुरुष एवं महिला हॉकी टीमों के चयन के लिए चयन समिति में भी शामिल रहीं। पिछले कॉमनवेल्थ गेम्स में वे भारत सरकार के द्वारा पर्यवेक्षक बनाई गईं थीं। उन्हें वर्ष 2000 में भारत सरकार ने अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया था।