नाराजगी की चादर ओढ़े रहते हैं उपेंद्र कुशवाहा, नीतीश से दूर ओर पास की ‘रिले रेस’ चलती रही है
Upendra Kushwaha News: उपेंद्र कुशवाहा फिर से चर्चा में हैं। एक बार फिर से वो पार्टी लाइन के उलट बयान दे रहे हैं। हालांकि नीतीश कुमार के साथ उनका ऐसा रिश्ता शुरू से ही रहा है। कभी वो उनसे नाराज हो जाते हैं तो कभी गले लग जाते हैं। हर बार वजह अलग-अलग रही।
बात है। मकर संक्रांति के बाद मंत्रिमंडल विस्तार नहीं होने जा रहा है। राजद से दो मंत्री हंटे हैं उसके स्थान पर राजद की ओर से दो नाम आयेगा, वे मंत्री बन जायेंगे। कांग्रेस का भी एक बाकी है, वो भी लेना चाहे तो ले सकते हैं।’
कुशवाहा की उम्मीद का धराशाई होना
राजनीतिक गलियारों में उपेंद्र कुशवाहा के एमएलसी बनते ही यह बात फैल गई थी की उपेंद्र कुशवाहा इतने भर के लिए तो नही आएंगे। इस उम्मीद में कि आगे उप मुख्यमंत्री बनाया जायेगा। शायद इसी उम्मीद में जदयू के अन्य नेताओं से कहीं ज्यादा नीतीश कुमार को समर्थन करते रहे। हाल में ही उन्होंने राजद के सुधाकर सिंह के बयान का जबरदस्त तरीके से विरोध करते यह भी कह डाला कि नीतीश कुमार और मेरा डीएनए भी एक है। यहां तक कि कृषि रोड मैप के समर्थन में भी जम कर तर्क दिया। यह वह समय था जब कृषि मंत्री रहते सुधाकर सिंह जहर उगल रहे थे।
अब फिर नाराज हो गए कुशवाहा
इस बार उनकी नाराजगी समाजवादी नेता शरद यादव के निधन के दिन निकली।उन्होंने शरद यादव को याद करते यह कहा कि बिहार के वे नेता जो शरद यादव के शिष्य कहे जाते हैं उन्होंने उनके अंतिम समय में हाल तक नहीं पूछा। शरद यादव ने निश्चित रूप से बिहार के दो प्रमुख नेता लालू यादव और नीतीश कुमार की राजनीति को तराशने का काम किया।लेकिन अंतिम दिनों में शरद यादव और नीतीश कुमार के बीच कुछ मसले को ले कर बात नही बनी और शरद यादव ने नई पार्टी बना ली।
पहले भी नाराजगी और मेल की आंखमिचौली खेलते रहे
उपेंद्र कुशवाहा का राजनीतिक इतिहास कुछ इस तरह का है। वर्ष 2000 में वे समता पार्टी से विधायक बने। बावजूद नीतीश कुमार ने उन्हें विधायक दल का नेता और नेता प्रतिपक्ष भी बनाया। इसको ले कर पार्टी के शीर्ष नेताओं ने काफी नाराजगी भी व्यक्त की थी। 2005 में वे चुनाव हार गए। बावजूद नीतीश ने उन्हें एमएलसी बनाया। लेकिन किसी कारण से नाराज हुए और अलग हो गए। वर्ष 2009 में उपेंद्र कुशवाहा को फिर नीतीश कुमार अपने साथ लाए और उन्हें राज्य सभा भेजा। मगर एक बार फिर उन्होंने नीतीश कुमार से दूरी बना ली। चर्चा यह हुई कि 2010 विधानसभा चुनाव में वे पत्नी को चुनाव लड़ाना चाहते थे, पर टिकट नहीं मिला। वर्ष 2014 रालोसपा बना लिया। एनडीए गठबंधन में आए। 2020 में तो बतौर सीएम के उम्मीदवार के रूप में नीतीश कुमार के खिलाफ चुनाव लड़े। तब उनके साथ बसपा और एआईएमआईएम भी साथ थी। फिर 2021 में वापस जदयू में आ गए।
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