ज्ञानवापी मुद्दा 213 साल से गरमा रहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मामले में अहम मोड़…जानिए कैसे बढ़ता गया विवाद

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ज्ञानवापी मुद्दा 213 साल से गरमा रहा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मामले में अहम मोड़…जानिए कैसे बढ़ता गया विवाद

वाराणसी: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद केस (Gyanvapi Masjid Case) ने अहम मोड़ ले लिया है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इस पूरे मामले पर सुनवाई पर वाराणसी कोर्ट (Varanasi Court) को रोक दिया है। सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को सुनवाई टाली गई तो याचिकाकर्ताओ को लोअर कोर्ट में कोई अन्य मामला दायर करने से रोका। साथ ही, वाराणसी कोर्ट को ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में किसी भी प्रकार का ऐक्शन लेने से बचने का भी निर्देश दिया। इसके बाद माना जा रहा है कि लोअर कोर्ट में भी मामले की सुनवाई को आगे टाला जाएगा। पांच महिलाओं की ज्ञानवापी परिसर में मां गौरी श्रृंगार मंदिर में पूजा करने की मांग के बाद कराए गए सर्वे ने बड़ा राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। इसके साथ ही ज्ञानवापी मामला अब पूरी तरह से गरमा गया है।

ज्ञानवापी विवाद में कोई भी राजनीतिक दल अपनी टांग नहीं फंसाना चाह रहा है। वहीं, ज्ञानवापी मस्जिद के वजूखाने में शिवलिंग मिलने की खबर के बाद जिस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की प्रतिक्रिया सामने आई और सोशल मीडिया पर ‘बाबा मिल गए’ ट्रेंड हुआ, उसके भी राजनीतिक सिग्नल साफ हुए हैं। भाजपा इस प्रकार के मामले में खुद को पीछे नहीं दिखाना चाहती है। यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की बाबा के प्रकटीकरण वाली प्रतिक्रिया हो या फिर बिहार की डिप्टी सीएम रेणु देवी की ‘कब तक ऐसे ही चुप रहेंगे’ वाली प्रतिक्रिया, भाजपा का एजेंडा साफ है। अखिलेश यादव अयोध्या और एटा में मुद्दों को भटकाने वाली राजनीति का आरोप लगाते दिख रहे हैं। ऐसे आरोप उनकी, समाजवादी पार्टी और विपक्ष के लगभग तमाम दलों की ओर से यूपी चुनाव 2022 के दौरान भी लगाए गए। लेकिन, असर नहीं दिखा। भाजपा का पलटवार है, इधर-उधर की बात मत करिए, ज्ञानवापी पर अपना स्टैंड साफ करिए। मुद्दा धार्मिक आस्था से राजनीतिक बनने की दिशा में काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है।

लीक सर्वे रिपोर्ट बना रहे अलग माहौल
ज्ञानवापी मस्जिद का लीक सर्वे रिपोर्ट अलग ही माहौल बना रहा है। वाराणसी कोर्ट में दूसरे एडवोकेट कमिश्नर विशाल सिंह ने अपनी रिपोर्ट सौंपी। इससे पहले पूर्व एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्र ने अपनी रिपोर्ट बुधवार की शाम को ही कोर्ट में जमा कराई थी। इन सर्वे रिपोर्ट में जिस प्रकार के खुलासे हैं, वह अलग ही कहानी बता रहे हैं। भले ही, एडवोकेट कमिश्नरों की ओर से सर्वे रिपोर्ट पर कोई बात सामने नहीं आ पाई है, लेकिन सूत्रों की मानें तो मस्जिद में कमल, डमरू, त्रिशूल समेत कई चिन्ह मिले हैं। मुस्लिम पक्षकारों की ओर से जिस शिवलिंग को वॉटर फाउंटेन बताया जा रहा है, वहां पर पानी का कोई लाइन जाने का चिन्ह नहीं दिखा। फाउंटेन में मोटर से पानी का लाइन होने की स्थिति में प्रयोग होता सामान्य तौर पर पाया जाता है। माना जाता है कि सर्वे रिपोर्ट में सबूत के साथ-साथ दावे किए गए हैं। मूर्तियों पर सिंदूरी रंग लगा मिलने का भी दावा है।

213 साल पुराने विवाद की आग में सर्वे का घी
काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद आज का नहीं है। एक हजार साल का इतिहास रहा है, जो बाबा की नगरी के उजड़ने और फिर से आबाद होने की कहानी को बताता है। फिलहाल, जो ज्ञानवापी मस्जिद विवाद चल रहा है, उसमें सबसे पहला मामला करीब 213 साल पुराना है। काशी को जानने वाले इतिहासकारों के मुताबिक पहली बार मस्जिद के बाहर नमाज पढ़ने के मामले में 1809 में दंगे हुए थे। इसके बाद से हिंदू और मुस्लिम समाज ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर मसले को लेकर भिड़ते रहे हैं।

हाल के वर्षों की बात की जाए तो 38 साल पहले 1984 में दिल्ली की धर्म संसद में हिंदू पक्ष को अयोध्या, काशी और मथुरा पर दावा करने के लिए कहा गया। वर्ष 1991 में वाराणसी कोर्ट में याचिका दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद पर हिंदू पक्ष ने अपना दावा किया। परिसर में पूजा की अनुमति के साथ मस्जिद को ढहाने की मांग की गई। वर्ष 1998 में अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी की याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निचली अदालत में सुनवाई पर रोक लगा दी।

हालांकि, वर्ष 2019 में वाराणसी जिला कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में आर्कियॉलिकल सर्वे कराने की याचिका दायर की गई। वर्ष 2020 में मस्जिद कमेटी ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का एएसआई से सर्वे करानी वाली याचिका का विरोध किया। याचिकाकर्ताओं ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से स्टे नहीं बढ़ाए जाने के बाद लोअर कोर्ट से फिर से सुनवाई शुरू करने का अनुरोध किया। 17 अगस्त 2021 को ज्ञानवापी परिसर में मां श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजा करने के लिए 5 महिलाओं की ओर से याचिका दायर की गई।

वाराणसी कोर्ट ने 5 महिलाओं की याचिका पर पिछले 26 अप्रैल को सुनवाई करते हुए ज्ञानवापी मस्जिद में वीडियोग्राफी और सर्वे कराने का आदेश दिया। इस फैसले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में मस्जिद कमेटी की ओर से चुनौती दी गई। हाई कोर्ट ने सर्वे पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की ओर से भी मुस्लिम पक्षकारों को तत्काल राहत नहीं मिली। इसके बाद 6 और 7 मई को मंदिर के बाहरी भाग का सर्वे हुआ।

मंस्जिद के भीतर सर्वे टीम को घुसने नहीं दिया गया। इसके बाद वाराणसी कोर्ट ने सुरक्षा बलों की मौजूदगी में मस्जिद परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया। इस आदेश पर 14 से 16 मई के बीच मस्जिद के भीतरी भाग का सर्वे हुआ। अब रिपोर्ट लीक के रूप में सामने आ रही है। मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। विवाद पूरी तरह से गरमाया हुआ है।

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