कभी साबुन-तेल बेचते थे, आज हर रोज ₹1.3 करोड़ दान कर देता है ये कारोबारी, कहानी सबसे बड़े दानवीर की

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कभी साबुन-तेल बेचते थे, आज हर रोज ₹1.3 करोड़ दान कर देता है ये कारोबारी, कहानी सबसे बड़े दानवीर की

कभी साबुन-तेल बेचते थे, आज हर रोज ₹1.3 करोड़ दान कर देता है ये कारोबारी, कहानी सबसे बड़े दानवीर की

​पिता को पाकिस्तान आने के मिला ऑफर

अजीम प्रेमजी के दादा चावल के कारोबार से जुड़े थे। उनके पिता मोहम्मद हुसैन प्रेमजी ने भी पिता के कारोबार को आगे बढ़ाया। चावल के कारोबार में बहुत मुनाफा नहीं हो रहा था। घाटा बढ़ता जा रहा था। पैसे की किल्लत बढ़ रही थी। उन्होंने एक मिल मालिक को कर्ज दिया था, जिसकी वसूली के लिए महाराष्ट्र गए। कर्ज चुकाने में नाकाम रहने पर मिल मालिक ने उन्हें अपना तेल मिल ही सौंप दिया। इसी के साथ मोहम्मद हुसैन प्रेमजी की एंट्री तेल कारोबार में हो गई। उन्होंने कंपनी का नाम वेस्टर्न वेजीटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड ( Western Indian Vegetable Limited) रखा। साल 1945 में मुंबई में ही अजीम प्रेमजी का जन्म हुआ। साल 1947 में देश के बंटवारे के वक्त मोहम्मद अली जिन्ना ने मोहम्मद प्रेमजी को पाकिस्तान आने और वित्त मंत्री बनने का प्रस्ताव दिया, लेकिन प्रेमजी ने उनका ये ऑफर ठुकरा दिया।

​तेल-साबुन से आईटी कंपनी तक

​तेल-साबुन से आईटी कंपनी तक

पिता ने अजीम प्रेमजी को पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेज दिया। लेकिन साल 1966 में पिता की मौत के बाद उन्हें पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत आना पड़ा। उन्होंने पिता की कंपनी संभाल ली। पिता की मौत से एक साल पहले साल 1965 में अजीम प्रेमजी के बड़े भाई फारुख प्रेमजी परिवार का साथ छोड़कर पाकिस्तान चले गए। पिता के कारोबार को संभालने के साथ-साथ उन्होंने कई और कारोबार में हाथ आजमाया। साल 1977 में उन्होंने कंपनी का नाम बदलकर विप्रो (Wipro) कर दिया। अजीम प्रेमजी वक्त की मांग और भविष्य को भांप गए थे। उन्होंने समझ लिया कि आगे बढ़ना है कि आईटी सेक्टर में उतरना होगा। साल 1980 में जब बड़ी आईटी कंपनी आईबीएम (IBM) भारत में अपना कारोबार समेट रही थी । इसी दौर में अजीम प्रेमजी ने आईटी सेक्टर में कदम रख दिया। वो समझ गए थे कि इस सेक्टर में काफी काम आने वाला है। इसी सोच के साथ उन्होंने विप्रो की शुरुआत की। शुरुआत करने के साथ ही कंपनी उड़ान भरने लगी। हार्डवेयर के साथ-साथ सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में विप्रो ने अपना कदम बढ़ाना शुरू कर दिया। आज विप्रो देश की तीसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी है।

​दान देने में अव्वल​

​दान देने में अव्वल​

अजीम प्रेमजी को इंडिया का बिल गेट्स कहा जाता है। उन्हें सबसे बड़े दानवीर की उपाधि दी जाती है। कारोबार से अरबों की संपत्ति बनाने वाले अजीम प्रेमजी को दौलत का बहुत मोह नहीं है। अपनी संपत्ति का अधिकांश हिस्सा वो दान कर देते हैं। साल 2001 में उन्होंने एक गैर सरकारी संगठन अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की स्थापना की। अपनी इस संस्था के जरिए उन्होंने अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा दान किया।

​हर दिन करोड़ों का दान

​हर दिन करोड़ों का दान

अज़ीम प्रेमजी ने 2019-20 में परोपकार कार्यों के लिए हर दिन करीब 22 करोड़ रुपये यानी करीब 7904 करोड़ रुपये का दान दिया। साल 2022-21 में प्रेमजी दानवीरों की लिस्ट में सबसे ऊपर थे। उन्होंने 9713 करोड़ रुपये दान किया। साल 2022 मं उन्होंने रोज 27 करोड़ रुपये का दान किया। हालांकि साल 2022 में वो दानवीरों की लिस्ट में दूसरे नंबर पर खिसक गए। उन्होंने कुल 484 करोड़ रुपये का दान किया। अजीम प्रेमजी फाउंडेशन, विप्रो और विप्रो एंटरप्राइजेज ने कोरोना महामापरी से निपटने के लिए 1125 करोड़ रुपए दान किए थे। साल 2019 में उन्होंने रिटायरमेंट ले ली। उन्होंने कंपनी की जिम्मेदारी अपने बड़े बेटे रिशद प्रेमजी विप्रो को सौंप दी।

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