आज़ादी की बात: नमक आंदोलन में खाई गोली, सक्रियता से डरे अंग्रेजों ने ढाई साल किया नजरबंद | Azadi Ki Baat, independence day story, 15 august history in hindi | Patrika News
कई भाषाओं पर थी अच्छी पकड़
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लक्ष्मी शंकर भट्ट के भतीजे चंद्रशेखर दवे ने बताया कि लक्ष्मी शंकर गोविंद शंकर भट्ट का जन्म 15 अप्रेल ,1905 को सम्पन्न गुजराती परिवार में हुआ था। हिन्दी के अलावा गुजराती, अंग्रेजी, संस्कृत और माराठी भाषाओं पर उनकी अच्छी पकड़ थी। जबलपुर में दीक्षितपुरा स्थित वृंदावन गुरु की कुलिया में उनका निवास था। कुछ समय बाद वे मराठी स्कूल के पीछे गोल बाजार में रहने लगे थे। बच्चे नहीं थे, इसलिए उन्होंने भतीजे चंद्रशेखर दवे को अपने पास रख लिया।
दो बार विजयराघवगढ़ से रहे विधायक
चंद्रशेखर दवे ने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लक्ष्मी शंकर भट्ट ने वर्ष 1952 में जबलपुर जिले के विजयराघवगढ़ क्षेत्र से पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते। वर्ष 1967 में दूसरी बार इसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए।
मामा के सत्संग से मिली प्रेरणा
लक्ष्मी शंकर भट्ट बचपन से स्वतंत्र विचारों के रहे। पराधीन भारत को आजाद भारत बनाने के लिए वे स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में शामिल होने का प्रयास करते रहते थे। मामा के सत्संगों से उन्हें इसकी प्रेरणा मिली। परिवार से पूर्ण सहयोग मिला और वे आजादी के समर में कूद गए। उन्होंने पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से मेलजोल बढ़ाया। क्रांतिकारियों के सम्बंध में होम रूल लीग बनाया। वर्ष 1920 में महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए। उनके साथ साथ महात्मा भगवानदीन, दामोदर राव श्रीखंडे, माखनलाल चतुर्वेदी, नाथूराम मोदी तथा शिवप्रसाद वर्मा ने भी कार्य प्रारम्भ किया।
विद्यार्थी समिति का किया गठन
वर्ष 1923 में पं. सुंदरलाल, सुभद्रा कुमारी चौहान आदि के साथ जबलपुर सिविल लाइंस प्रवेश जुलूस में शामिल हुए। जबलपुर झंडा सत्याग्रह में पीडी जटार और शिव प्रसाद वर्मा के साथ काम किया। वर्ष 1924 में लक्ष्मी शंकर भट्ट ने विद्यार्थी समिति की स्थापना की। अन्य स्थानों पर भी इसका गठन कराया। इस दौरान वे खादी प्रचार से भी जुड़े रहे। स्वयं भी खादी को ही अपनाया।
छोटा भाई भी गया जेल
आजादी आंदोलन के कामों में उन्हें छोटे भाई लज्जाशंकर का सहयोग भी मिलता था। उत्तरप्रदेश के क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी के साथ सुकुमार चटर्जी के छोटे भाई प्रणवेश चटर्जी की भी जबलपुर में गिरफ्तारी हुई। इसी सिलसिले में पूछताछ और तलाशी भी हुई। इसी सहयोग के चलते उनके छोटे भाई को अंग्रेज पुलिस ने जेल में डाल दिया था।
नमक कानून प्रदर्शन में खाई गोली
6 अप्रैल 1930 को दुर्गावती समाधि स्थल पर पदयात्रा, सत्याग्रह की प्रतिज्ञा तथा नमक कानून भंग आंदोलन के प्रचार के लिए जगह-जगह सभाएं हुईं। जबलपुर डिस्टीलरी पर धरना दिया गया। 16 जुलाई 1930 को अंग्रेजी हुकूमत ने आंदोलन को दबाने के उद्देश्य से आंदोलनकारियों पर गोलियां चलवा दी। इसमें लक्ष्मी शंकर भट्ट को पैर में गोली लगी। उन्हें नौ महीने जेल में रखा गया। रिहाई के बाद उन्होंने आंदोलन में अपनी सक्रियता बढ़ाते हुए अंग्रेजी अफसरों को परेशान कर दिया। सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने पर प्रदेश के नेताओं के बंबई से लौटते समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। सितम्बर 1942 में एक बार फिर आजादी के आंदोलन में सक्रियता दिखाने पर उन्हें गिरफ्तार किया गया। 14 अप्रेल, १९४३ को उन्हें 6 माह की सजा हुई। दुव्र्यवहार के कारण प्रतिवाद करने पर गुनहखाना और 16 जुलाई 1943 को ‘सीÓ क्लास दिया गया। 13 अक्टूबर १९43 को नजरबंदी के आदेश दिए गए।
52 दिन का अनशन किया
ढाई साल तक नजरबंद रहने के बाद 3 मई 1945 को उन्हें रिहा कर दिया गया। इस बीच उन्होंने 52 दिनों का अनशन भी किया, जो रिहाई के बाद टूटा। आजादी के बाद कांग्रेस के सक्रिय सदस्य बने। कईबड़े पदों पर भी रहे। उन्हें डायरी लिखने का भी शौक था। वे अपने हर छोटे-बड़े अनुभव उसमें लिखते थे, जिसे चंद्रशेखर दवे ने आज भी सम्भाल कर रखा है। 7 जून, 1987 को 82 वर्ष की उम्र में उनका स्वर्गवास हो गया।
कई भाषाओं पर थी अच्छी पकड़
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लक्ष्मी शंकर भट्ट के भतीजे चंद्रशेखर दवे ने बताया कि लक्ष्मी शंकर गोविंद शंकर भट्ट का जन्म 15 अप्रेल ,1905 को सम्पन्न गुजराती परिवार में हुआ था। हिन्दी के अलावा गुजराती, अंग्रेजी, संस्कृत और माराठी भाषाओं पर उनकी अच्छी पकड़ थी। जबलपुर में दीक्षितपुरा स्थित वृंदावन गुरु की कुलिया में उनका निवास था। कुछ समय बाद वे मराठी स्कूल के पीछे गोल बाजार में रहने लगे थे। बच्चे नहीं थे, इसलिए उन्होंने भतीजे चंद्रशेखर दवे को अपने पास रख लिया।
दो बार विजयराघवगढ़ से रहे विधायक
चंद्रशेखर दवे ने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लक्ष्मी शंकर भट्ट ने वर्ष 1952 में जबलपुर जिले के विजयराघवगढ़ क्षेत्र से पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते। वर्ष 1967 में दूसरी बार इसी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए।
मामा के सत्संग से मिली प्रेरणा
लक्ष्मी शंकर भट्ट बचपन से स्वतंत्र विचारों के रहे। पराधीन भारत को आजाद भारत बनाने के लिए वे स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में शामिल होने का प्रयास करते रहते थे। मामा के सत्संगों से उन्हें इसकी प्रेरणा मिली। परिवार से पूर्ण सहयोग मिला और वे आजादी के समर में कूद गए। उन्होंने पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से मेलजोल बढ़ाया। क्रांतिकारियों के सम्बंध में होम रूल लीग बनाया। वर्ष 1920 में महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर नागपुर के कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए। उनके साथ साथ महात्मा भगवानदीन, दामोदर राव श्रीखंडे, माखनलाल चतुर्वेदी, नाथूराम मोदी तथा शिवप्रसाद वर्मा ने भी कार्य प्रारम्भ किया।
विद्यार्थी समिति का किया गठन
वर्ष 1923 में पं. सुंदरलाल, सुभद्रा कुमारी चौहान आदि के साथ जबलपुर सिविल लाइंस प्रवेश जुलूस में शामिल हुए। जबलपुर झंडा सत्याग्रह में पीडी जटार और शिव प्रसाद वर्मा के साथ काम किया। वर्ष 1924 में लक्ष्मी शंकर भट्ट ने विद्यार्थी समिति की स्थापना की। अन्य स्थानों पर भी इसका गठन कराया। इस दौरान वे खादी प्रचार से भी जुड़े रहे। स्वयं भी खादी को ही अपनाया।
छोटा भाई भी गया जेल
आजादी आंदोलन के कामों में उन्हें छोटे भाई लज्जाशंकर का सहयोग भी मिलता था। उत्तरप्रदेश के क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी के साथ सुकुमार चटर्जी के छोटे भाई प्रणवेश चटर्जी की भी जबलपुर में गिरफ्तारी हुई। इसी सिलसिले में पूछताछ और तलाशी भी हुई। इसी सहयोग के चलते उनके छोटे भाई को अंग्रेज पुलिस ने जेल में डाल दिया था।
नमक कानून प्रदर्शन में खाई गोली
6 अप्रैल 1930 को दुर्गावती समाधि स्थल पर पदयात्रा, सत्याग्रह की प्रतिज्ञा तथा नमक कानून भंग आंदोलन के प्रचार के लिए जगह-जगह सभाएं हुईं। जबलपुर डिस्टीलरी पर धरना दिया गया। 16 जुलाई 1930 को अंग्रेजी हुकूमत ने आंदोलन को दबाने के उद्देश्य से आंदोलनकारियों पर गोलियां चलवा दी। इसमें लक्ष्मी शंकर भट्ट को पैर में गोली लगी। उन्हें नौ महीने जेल में रखा गया। रिहाई के बाद उन्होंने आंदोलन में अपनी सक्रियता बढ़ाते हुए अंग्रेजी अफसरों को परेशान कर दिया। सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होने पर प्रदेश के नेताओं के बंबई से लौटते समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। सितम्बर 1942 में एक बार फिर आजादी के आंदोलन में सक्रियता दिखाने पर उन्हें गिरफ्तार किया गया। 14 अप्रेल, १९४३ को उन्हें 6 माह की सजा हुई। दुव्र्यवहार के कारण प्रतिवाद करने पर गुनहखाना और 16 जुलाई 1943 को ‘सीÓ क्लास दिया गया। 13 अक्टूबर १९43 को नजरबंदी के आदेश दिए गए।
52 दिन का अनशन किया
ढाई साल तक नजरबंद रहने के बाद 3 मई 1945 को उन्हें रिहा कर दिया गया। इस बीच उन्होंने 52 दिनों का अनशन भी किया, जो रिहाई के बाद टूटा। आजादी के बाद कांग्रेस के सक्रिय सदस्य बने। कईबड़े पदों पर भी रहे। उन्हें डायरी लिखने का भी शौक था। वे अपने हर छोटे-बड़े अनुभव उसमें लिखते थे, जिसे चंद्रशेखर दवे ने आज भी सम्भाल कर रखा है। 7 जून, 1987 को 82 वर्ष की उम्र में उनका स्वर्गवास हो गया।