जानिए नयी एजुकेशन पॉलिसी में क्यों हो रहा है “हिंदी विरोध”

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नई एजुकेशन पॉलिसी में हिंदी भाषा की अनिवार्यता के विरोध के बाद केंद्र सरकार ने इसे इस नीति को वापस ले लिया है. नई एजुकेशन पॉलिसी में तीन भाषा के फार्मूले को लेकर जहाँ पहले हिंदी बनाम स्थानीय भाषा की जंग छिड़ी हुई थी, वहीं हिंदी बनाम अंग्रेजी की तकरार भी कोई बहुत पुरानी नही है.

आइये अब जानते हैं कि नयी शिक्षा नीति में आखिर ऐसा क्या है जिसके कारण से हिंदी भाषा को थोपने का आरोप इसके उपर लगाया जा रहा है, और सरकार को अपनी शिक्षा नीति में हिंदी को लेकर बदलाव करने पड़े.

Hindi language importance -

असल में 2017 में देश में नयी शिक्षा नीति लागू करने के लिए एक समिति बनाई गयी जिसने अपनी रिपोर्ट 31 मई को सौंपी है. इसमें उन स्थानों पर जहां हिंदी या उसकी कोई भी बोली स्थानीय भाषा नहीं है वहां पर भी हिंदी भाषा की अनिवार्यता ने हिंदी विरोध को जन्म दिया.

तमिलनाडु की डीएमके और एआईडीएमके जैसे पार्टियों के विरोध के कारण इस शिक्षा नीति में केंद्र सरकार को बदलाव करना ही पड़ा. आपको बता दें कि 31 मई को सौंपे गये ड्राफ्ट में स्थानीय भाषा, और अंग्रेजी भाषा के अलावा हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से पूरे देश में लागू करने की बात थी, जिसका विरोध हिंदी न बोलने वाले राज्यों में हो रहा था.

हालाँकि अगर भौगोलिक रूप से देखें तो देश के 21 राज्यों और केंद्र शासित राज्यों में हिंदी मुख्य रूप से बोली जाने वाली बोली नही है. लेकिन पिछले कई सालों से प्रवास के कारण हिंदी बोलने वाले लोगो की संख्या में इजाफा उन राज्यों में भी हुआ है जिस राज्य की भाषा मुख्य रूप से हिंदी नही है.

इसके अलावा अंग्रेजी की अनिवार्यता को लागू किये जाने का मुख्य कारण ये बताया जा रहा है कि विज्ञान की मुख्य भाषा अंग्रेजी ही है. कई प्रमुख विज्ञान पत्रिकाएं अंग्रेजी में ही उपलब्ध हो पाती हैं, इस कारण के इस त्रिभाषा नीति के तहत अंग्रेजी को भी शामिल किया गया है.