पुलिस सुधार को हल्के में क्यों लेती हैं सरकारें ?

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पुलिस सुधार
पुलिस सुधार

मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र गृह मंत्री अनिल देशमुख पर धन उगाही का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट से इस केस की CBI जाँच कराने की मांग की. इसी पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने कहा कि पुलिस सुधार एक ऐसा मंत्र है, जो जब जिसे सूट करता है, सिर्फ वहीं जपता है. आज जानते हैं कि पुलिस सुधार की जरूरत और सरकार के सुस्त रवैये का कारण क्या हैं ?

सबसे पहले जानते हैं कि पुलिस सुधार की जरूरत क्यों है. सबसे पहले तो ऐसे आरोप पुलिस पर लगते रहते हैं कि पुलिस अपने अधिकारों का दुरूपयोग करती है. इसके अलावा आज के आधुनिक समय में जब तकनीकी क्षेत्र में बहुत विकास हो रहा है, पुलिस द्वारा भी जांच में आधुनिक तकनीकों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करना चाहिए. इसके अलावा जो सबसे बड़ी समस्या है, वो ये है कि पुलिस बल की संख्या में बहुत कमी है. जिसके कारण पुलिस में काम करने वालों को समय पर आराम नहीं मिल पाता. इसके अलावा कहीं ना कहीं नेताओं के दबाव को भी सामना करना पड़ता है. इन सब बातो को देखते हुए पुलिस सुधार करना वर्तमान समय में बहुत जरूरी हो गया है.

पुलिस सुधार

ऐसा नहीं है कि पुलिस सुधारों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जाता है. पुलिस सुधारों के लिए समय समय पर समितियां बनती रहती है, लेकिन देश का दुर्भाग्य यह है कि इनकी रिपोर्ट को लागू करने की तरफ कभी ध्यान दिया ही नहीं जाता.

पुलिस सुधार

राज्य सरकारें पुलिस सुधार के लिये कितनी सतर्क है, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि  वर्ष 2017 में जब गृह मंत्रालय ने द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की 153 अति महत्त्वपूर्ण सिफारिशों पर विचार करने के लिये मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया जिनमें पुलिस सुधार पर विचार किया जाना था. लेकिन इस सम्मेलन में अधिकतर मुख्यमंत्री अनुपस्थित रहे.

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सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात तो ये हैं कि राज्य सरकारें भी पुलिस सुधार की तरफ ध्यान नहीं देती हैं. जिसके पीछे कहीं ना कहीं उनका स्वार्थ छुपा होता है. किसी से छुपा हुआ नहीं है कि सरकारें कई बार पुलिस प्रशासन का दुरुपयोग भी करती हैं ऐसे आरोप लगते रहते हैं. कभी अपने राजनीतिक विरोधियों से निपटने के लिये तो कभी अपनी किसी नाकामी को छिपाने के लिये संभवत: यही मुख्य कारण है कि राज्य सरकारें पुलिस सुधार के लिये तैयार नहीं हैं.